राम मंदिर के लिए कानून बनाने की राह नहीं होगी आसान

नई दिल्‍ली विजयदशमी के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि सरकार को राम मंदिर निर्माण के लिए कानून लाना चाहिए। इससे पहले संतों की धर्म संसद में भी ऐसी मांग उठी थी। उसी के बाद इस तरह की कयासबाजी शुरू हुई कि 2019 के चुनाव से पहले अयोध्या में राममंदिर निर्माण के लिए कानून लाया जा सकता है। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आरएसएस और वीएचपी की ओर से केंद्र सरकार पर कानूनी राह अपनाने के लिए दबाव बढ़ा दिया गया है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या सुप्रीम कोर्ट में मामला पेंडिंग रहते हुए सरकार इस बारे में कानून ला सकती है ?

1993 में केंद्र सरकार ने अयोध्या अधिग्रहण ऐक्ट के तहत विवादित स्थल और आसपास की जमीन का अधिग्रहण कर लिया था और पहले से जमीन विवाद को लेकर दाखिल तमाम याचिकाओं को खत्म कर दिया था। सरकार के इस ऐक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। तब सुप्रीम कोर्ट ने इस्माइल फारुखी जजमेंट में 1994 में तमाम दावेदारी वाले सूट (अर्जी) को बहाल कर दिया था और जमीन केंद्र सरकार के पास ही रखने को कहा था और निर्देश दिया था कि जिसके फेवर में अदालत का फैसला आता है, जमीन उसे दी जाएगी। रामलला विराजमान की ओर से ऐडवोकेट ऑन रेकॉर्ड विष्णु जैन बताते हैं कि दोबारा कानून लाने पर कोई रोक नहीं है लेकिन उसे सुप्रीम कोर्ट में फिर से चुनौती दी जा सकती है।

दोबारा कानून नहीं
इस विवाद में मुस्लिम पक्ष के वकील जफरयाब जिलानी का कहना है कि जब अयोध्या अधिग्रहण ऐक्ट 1993 में लाया गया तब उस ऐक्ट को चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने तब यह व्यवस्था दी थी कि ऐक्ट लाकर सूट को खत्म करना गैर संवैधानिक है। पहले अदालत सूट पर फैसला ले और जमीन को केंद्र तब तक कस्टोडियन की तरह अपने पास रखे। कोर्ट का फैसला जिसके भी पक्ष में आए, सरकार उसे जमीन सुपुर्द करे।

अब नए सिरे से केस पेंडिंग रहने के दौरान सरकार कानून नहीं ला सकती है। यह न्यायिक प्रक्रिया में दखलअंदाजी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट में पहले से व्यवस्था दी हुई है कि अदालत के किसी फैसले को खारिज करने के लिए सरकार या विधायिका कदम नहीं उठा सकती। वह सुपर कोर्ट की तरह काम नहीं कर सकती, बल्कि वह कानूनी प्रावधान में संशोधन कर सकती है।

यथास्थिति का आदेश पहले ही आ चुका है
इलाहाबाद हाई कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस एसआर सिंह बताते हैं कि विधायिका सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट को निष्प्रभावी या खारिज करने के उद्देश्य से कानून में बदलाव नहीं कर सकती, बल्कि वह उस आधार में बदलाव कर सकती है जिसके आधार पर जजमेंट दिया गया है। अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट में केस पेंडिंग है और इस दौरान वहां यथास्थिति रखने को कहा गया है। ऐसे में उसमें किसी तरह का बदलाव अदालती प्रक्रिया में दखल की तरह होगा। यथास्थिति से संबंधित आदेश में बदलाव के बिना यह कैसे हो सकता है।

अपील पेंडिंग रहने तक कानून नहीं
दिल्ली हाई कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस आरएस सोढ़ी बताते हैं कि अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 1994 में जो फैसला दिया था, उसके बाद ही सूट रिवाइव हुआ और फिर इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला आया और उस फैसले को तमाम पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। अपील अभी पेंडिंग है। अपील पेंडिंग रहने के दौरान विवादित स्थल पर यथास्थिति बहाल रखने के लिए कहा गया है। इस स्थिति में सरकार आधिकारिक तौर पर दखल नहीं दे सकती। हां, अगर पक्षकार चाहें तो किसी भी स्टेज पर समझौता कर सकते हैं।