मप्र विधानसभा चुनाव- अबकी बार क्या…? भाजपा 130 पार, और क्या…!

मध्यप्रदेश विधानसभा का चुनाव पास हैं। राज्य की 230 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवारों के चयन के लिए 28 नवंबर को वोट डाले जायेंगे। चुनाव के नतीजे 11 दिसंबर को आएंगे। राज्य में भाजपा जहां चौथी बार सरकार बनाने के लिए चुनाव प्रचार में जुटी है तो प्रतिपक्ष कांग्रेस पन्द्रह सालों का सत्ता का वनवास समाप्त कर सरकार में वापसी के जतन कर रही है।
मध्यप्रदेश में चुनाव इस बार सत्तारूढ़ दल भाजपा के लिए आसान नहीं हैं। राज्य में 2003 से भाजपा सत्ता पर काबिज है। एंटी-इनकम्बेंसी ने भाजपा की नींद उड़ा रखी है। शिवराज सरकार के साथ-साथ मोदी सरकार के साढ़े चार बरस का कामकाज भी मध्यप्रदेश समेत तमाम उन राज्यों में कसौटी पर है जहां विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। राज्य में भाजपा के लिए राह इस बार कुछ कठिन जरूर है, लेकिन चौथी बार सरकार बनाने के करीब आज की तारीख में तो भाजपा साफ-साफ नजर आ रही है। कुल सीटों के मान से भाजपा को ‘जीत का चौका’ लगाने (पुन: सरकार बनाने) के लिए 116 सीटों पर जीत की जरूरत है। यानी 116 सीटें पाकर पुन: सरकार बनाई जा सकती है। भाजपा ने इस लक्ष्य से इतर ‘अब की बार 200 पार’ का नारा दिया है।
भाजपा ने भले ही ‘200 पार’ का नारा दिया है, लेकिन 150 तक पहुंच पाना आज की तारीख में तो मुमकिन नजर नहीं आ रहा है। राज्य में चुनावी तस्वीर इस बार बेहद जुदा है। सत्तारूढ़ दल के लिए एकतरफा माहौल पिछले तीन चुनावों की तरह नजर नहीं आ रहा है। सरकार के खिलाफ एंटी-इनकम्बेंसी फेक्टर स्पष्ट तौर पर नजर आ रहा है। बिखराव वाले हालात हैं। सत्ता विरोधी माहौल और मौजूदा विधायकों के खिलाफ माहौल होने के बावजूद कांग्रेस के लिए राह आसान नहीं है। कमलनाथ की अगुवाई में मध्य प्रदेश कांग्रेस अपने पत्ते खोल रही है। कांग्रेस ने एक बार फिर अपने चमकीले चेहरे ज्योतिरादित्य सिंधिया को आगे किया हुआ है। चूंकि, मुख्यमंत्री का चेहरा देने में कांग्रेस कतरा गई, लिहाजा वोटर चाहकर भी अपना मन स्पष्ट तौर पर नहीं बना पाया है। सरकार के नाराज होने के बावजूद वोटर के पास बहुत खुले तौर पर कोई सुस्पष्ट विकल्प नहीं है। हालांकि, विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार एक बड़ा कार्ड होता है। सत्तारूढ़ दल भाजपा और मुख्य विपक्ष कांग्रेस ने इस पत्ते को नहीं खोला (उम्मीदवार घोषित नहीं किए) है।
हालांकि, जब यह स्टोरी आप पढ़ रहे होंगे (अखबार छपकर आयेगा) संभवतया तब कांग्रेस और भाजपा में नामों को लेकर कुंहासा कुछ हद तक छंट चुका होगा। मध्यप्रदेश में चुनाव की तस्वीर पूरी तरह से तो नतीजे आने के बाद साफ होगी। पिक्चर अभी धुंधली है। बावजूद इसके भाजपा की सरकार बनने के आसार कुछ ज्यादा नजर आ रहे हैं। यद्यपि चुनावी पंडित भाजपा की राह आसान नहीं बता रहे हैं। कांग्रेस के चांसेस सरकार बनने के ज्यादा बताए जा रहे हैं। कई विश्लेषक एजेंसियों ने मध्यप्रदेश में कांग्रेस का अपर-हैंड बताया है। ओपिनियन पोल्स के ज्यादातर संकेत कांग्रेस के ही पक्ष में हैं। इन सर्वेक्षणों में दावा किया जा रहा है कि भाजपा बहुमत से कुछ सीटें दूर रह जाएगी। इस सबके बीच मेरा आकलन है, ‘भाजपा 130 प्लस सीटें लाकर एक बार पुन: मध्यप्रदेश में सरकार बनाएगी।’ सवर्ण वर्ग सरकार से खफा है। आरक्षित वर्ग को भी सरकार चाहकर भी खुश नहीं कर सकी है। पिछड़े वोटर अलग राग आलाप रहे हैं। आदिवासी वर्ग भी खफा-खफा सा है। अनुसूचित जाति वर्ग के वोटरों का मिजाज इस बार कुछ अलग-सा है। तमाम स्थितियों को देखते हुए राज्य में आदिवासी और सवर्ण कार्ड भी कुछ नए-नवेले दल खेल रहे हैं। रिटायर्ड आईएएस अफसरों का एक पूरा का पूरा कुनबा चुनावी मैदान में है। सपाक्स नाम के संगठन के प्रमुख दलों का चुनावी गणित फेल करने के लिए ताल ठोक रखी है। इस संगठन की बागडोर उन हीरालाल त्रिवेदी के हाथों में है जिन पर सरकार से उपकृत होने के आरोप हैं। हीरालाल नामक एक अन्य युवा लीडर ने आदिवासियों के नेतृत्व का झंडा चुनावी मैदान में थाम रखा है। हीरालाल त्रिवेदी के समान ये दूसरे हीरालाल (हीरालाल अलावा) भी भाजपा और कांग्रेस का खेल बिगाडऩे को तैयार खड़े हैं।
शिवराज का जादू बरकरार
प्रदेश में भाजपा की सरकार बनना तय मानने संबंधी मेरे आकलन की बड़ी वजह, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का चेहरा है। प्रेक्षकों के तमाम तर्कों के बीच मेरा अभिमत है कि सत्तारूढ़ दल और विरोधी दलों में जितने भी चेहरे चुनाव के मैदान में हैं, उनके शिवराज सबसे ज्यादा जाना-पहचाना और लोगों के बीच निरंतर पहुंचते रहने वाला चेहरा है। पिछले पन्द्रह सालों में 13 सालों के लगभग के समय से शिवराज सीएम हैं। उन्होंने जो योजनाएं राज्य में दी हैं, उनका असर अभी लोगों में मुकम्मल तौर पर है। लोग मान रहे हैं सरकार ने काम किए हैं। मंत्री और विधायकों के प्रति नाराजगी अलबत्ता लोगों में है। इस बात से मुख्यमंत्री और पार्टी भिज्ञ है। बड़ी तादाद में टिकटों में बदलाव तय है।
सबसे बड़ा ट्रम्प कार्ड
प्रदेश में सबसे बड़ा तुरूप का पत्ता किसान है। कुछ हिस्से हैं, जहां किसानों ने सरकार के प्रति नाराजगी दिखाई है। मगर अनेक हिस्से ऐसे भी हैं, जहां किसान सरकार से कामकाज के प्रति संतुष्ट नजर आया है। कई हिस्से ऐसे भी हैं, जहां किसान अभी अपने पत्ते नहीं खोल रहा है। बावूजद इसके 60 प्रतिशत किसान तबका एक बार फिर कमल के संग जाने को तैयार नजर आ रहा है। यदि 60 प्रतिशत किसानों ने कमल का साथ दिया तो भाजपा की सीटों का आंकड़ा 150 पार पहुंचना तय हो जाएगा। यदि 10-12 प्रतिशत वोट किसान का कम होता है तो भी भाजपा 130 सीटों के करीब आसानी से पहुंच जाएगी, यह अपने को तो तय नजर आ रहा है।
मुख्यमंत्री पद के छह दावेदार
कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के पांच दावेदार हैं। पहले दावेदार कमलनाथ हैं। दूसरे दावेदार ज्योतिरादित्य सिंधिया। दोनों केन्द्र की राजनीति के महारथी हैं। सरकार बनाने योग्य नंबर मिल जाने की स्थिति में नाथ और सिंधिया के नाम के बाद अजय सिंह भी सीएम बनने का ख्वाब पाले बैठे हुए हैं। उधर, आदिवासी वर्ग होने की वजह से दिग्विजय सिंह के अत्याधिक कृपापात्रों में से एक कांतिलाल भूरिया भी इस पद के एक दावेदार हैं। प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुम यादव के मन में भी सीएमशिप की भरपूर अभिलाषा है। वे और उनके समर्थक मानते हैं कि कांग्रेस को सरकार बनाने का अवसर मिला और मुख्यमंत्री पद के लिए मारामारी हुई तो वे समझौता वाले उम्मीदवार के तौर पर सीएमशिप के लिए बाजी मारने की हैसियत रखते हैं। केन्द्र में अपने संबंधों की वजह से सुरेश पचौरी को भी मुख्यमंत्री पद का एक दावेदार प्रेक्षक मानते हैं। मुख्यमंत्री पद की कुर्सी के लिए मारामारी वाले हालात तब ही बन पाएंगे, जब कांग्रेस 116 सीटें हासिल करेगी।
बाजी पलटने वाला मुद्दा नहीं
मतदान में अब महीना भर के करीब ही शेष है। चुनाव का प्रचार पूरे शबाब पर है। कांग्रेस पिछले दो-तीन महीनों में एक भी ऐसा मुद्दा वोटरों के बीच नहीं उछाल पाई है जो उसके पक्ष में माहौल को बनाए कांग्रेस ने जितने भी मुद्दे अब तक गिनाए हैं उन्हें वह 2008 और 2013 के चुनावों में ज्यादातर पर दांव खेल चुकी है। बाजी पलटने वाला एक भी मुद्दा कांग्रेस ने अभी तक तो जनता के बीच नहीं उछाला है। बेहद सतही मुद्दों को लेकर ही कांग्रेस आगे बढ़ रही है। चुनाव घोषणा पत्र अभी कांग्रेस और भाजपा का आना है। दोनों ही दलों ने घोषणा पत्र को अंतिम रूप दे दिया है। दोनों दल माह के आखिर में घोषणा पत्र जनता के बीच लेकर पहुंचेंगे।
राहुल गांधी पर मोदी पड़ रहे भारी
युवा और आम वोटर से बात करने पर दोनों का ही झुकाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष में ज्यादा नजर आया है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मध्यप्रदेश में इस बार चुनाव प्रचार के अब तक दौर में जमकर पसीना बहाया है। उनके निशाने पर मोदी रहे हैं। रफाल का मुद्दा राहुल गांधी ने मध्यप्रदेश की हर चुनावी सभा और अपने रोड शो में उछाला है। रफाल मध्य प्रदेश के वोटरों में बहुत ज्यादा असर छोड़ता नहीं दिखा है। महंगाई अलबत्ता लोगों को बुरी तरह परेशान किए हुए है। इस मुद्दे को कांग्रेस अध्यक्ष गांधी ने उस ढंग से नहीं खेला है, जिसकी दरकार है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में मोदी और राहुल की तुलना को लेकर वोटरों को टटोलने पर बड़ी संख्या में वोटरों का रुझान मोदी के प्रति राहुल से कहीं ज्यादा नजर आ रहा है।