आरबीआर्इ विवाद के बीच नेहरू की चिट्ठी देगी पीएम मोदी को ताकत

मंगलभारत नर्इ दिल्ली। अगर इतिहास आैर उसके पात्र मजबूत हो तो आपको वर्तमान को आैर ज्यादा बल एवं ताकत देते हैं। एेसा ही बल आैर ताकत लेने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की उस चिट्ठी की सहारा लेने जा रहे हैं जो उन्होंने 1956 में आरबीआर्इ गवर्नर को लिखी थी। जिसमें उन्हाेंने आबीआर्इ की स्वायत्ता से लेकर सरकार की आरबीआर्इ की नीतियों में भागेदारी तक सब चीजों के बारे में लिखा था। उस समय भी तत्कालिक गर्वनर सर बेनेगल रामा राव आैर वित्त मंत्री टीटी कृष्णमाचारी के बीच अनबन की खबरें सामने आर्इ थी। जिसमें नेहरू को भी बीच में कूदना पड़ा था। आइए आपको भी बताते हैं कि उस समय आखिर नेहरू ने इस बारे में क्या कहा था… जब नेहरू ने कहा था आरबीआर्इ है सरकार की गतिविधियों में भागीदार सर बेनेगल रामा राव आरबीआई के चौथे गवर्नर थे। उन्होंने करीब 90 महीनों तक आरबीआर्इ की सेवा की आैर 1957 में इस्तीफा दे दिया। उस समय नेहरू ने कहा था कि आरबीआई सरकार की विभिन्न गतिविधियों की भागीदार है। उस समय गवर्नर ने पीएम को वित्त मंत्री के अक्खड़पन की शिकायत की थी। दोनों में एक बजट प्रस्ताव से मतभेद शुरू हुए थे। टीटीके ने आरबीआई को बतौर वित्त मंत्रालय के ही एक खंड के रूप में पेश किया और इसे आरक्षित करार दिया। साथ् ही उन्होंने संसद में आरबीआर्इ के बारे में कहा था कि उसमें कुछ सोचने आैर समझने की क्षमता नहीं है। सरकार के कहने पर चलना होगा उस वक्त नेहरू ने गवर्नर को एक लेटर में कहा था कि आरबीआई सरकार को सिर्फ एडवाइज दे सकती है आैर उसे सरकार के कहने पर ही चलना होगा। उन्होंने एक कदम आैर आगे बढ़ते हुए कहा था कि जब भी गवर्नर को लगे कि वो अब पद पर रहकर काम नहीं कर सकते हैं तो वो अपना इस्तीफा दे सकते हैं। जिसके बाद गवर्नर ने अपना इस्तीफा दे दिया। आरबीआर्इ की स्वायत्ता पर नेहरू का जवाब पंडित नेहरू ने आरबीआर्इ की स्वायत्ता पर जोर देते कहा था कि आरबी आर्इ पूरी तरह से स्वायत्त हैै, लेकिन आरबीआर्इ को केंद्र सरकार के आदेशों आैर दिशा निर्देशों को भी मानना होगा। मौद्रिक नीतियों की निर्भरता निश्चित रूप से सरकार की व्यापक नीतियों पर ही होनी चाहिए। आरबीआई उन व्यापक नीतियों के दायरे में ही सलाह दे सकता है। यह सरकार के प्रमुख उद्देश्यों एवं नीतियों को चुनौती नहीं दे सकता। वहीं नेहरू ने यह भी कहा था कि आरबीआर्इ आैर सरकार की नीतियां विरोधाभासी नहीं हो सकती हैं। बजट प्रस्ताव पर उभरा था मतभेद दरअसल, आरबीआई को लगता था कि टीटीके के बजट प्रस्ताव से ब्याज दरें प्रभावी तौर पर बढ़ जाएंगी, इसलिए उन्होंने सेंट्रल बोर्ड का एक प्रस्ताव सरकार को भेज दिया। 12 दिसंबर, 1956 को बोर्ड ने कहा, ‘बोर्ड का सरकार से अनुरोध है कि वह मौद्रिक ढांचे एवं नीति को विशेष रूप से प्रभावित करने वाले मुद्दों पर पहले आरबीआई के साथ बातचीत कर ले।’ नेहरू ने उसी दिन गवर्नर को पत्र लिखकर उनके ‘अनुचित व्यवहार’ की कड़ी आलोचना की। नेहरू ने कहा कि उनकी सोच केंद्र सरकार के खिलाफ आक्रोश से भरा है।