MP चुनाव 2018: इंदौर के चुनावी दंगल में खून के रिश्ते आमने-सामने

मंगल भारत -: कैलाश विजयवर्गीय ने दोस्त ललित पोरवाल से अपनी भतीजी की शादी करवाई थी. कन्यादान भी उन्होंने ही किया था. लेकिन वही दामाद अब विजयवर्गीय के बेटे के खिलाफ खड़ा हो गया है

एमपी में विधानसभा चुनाव के अखाड़े में इस बार कई दिलचस्प लड़ाइयां लड़ी जा रही हैं. कहीं परिवारों के बीच लड़ाई है तो कहीं सगे रिश्तेदार आमने सामने आ गए हैं. इससे अब चुनावी मुकाबला मजेदार हो गया है. इंदौर में दो हाई प्रोफाइल रिश्तेदारों की जंग ने चुनाव को रोचक बना दिया है.

कैलाश विजयवर्गीय के बेटे को टक्कर देने के लिए उनके दामाद मैदान में उतर गए हैं.

मजे की बात तो यह है कि रिश्तेदार और निकट संबंधी होने के बावजूद वो एक दूसरे पर निजी हमले करने से बाज नहीं आ रहे. इंदौर में कैलाश विजयवर्गीय के सबसे अच्छे मित्र और दामाद ललित पोरवाल, उनके बेटे के सामने ही ताल ठोक रहे हैं. कहा जाता है कि बीजेपी नेता ललित पोरवाल जब शादी नहीं करना चाहते थे, तब कैलाश विजयवर्गीय ने ही उन्हें शादी के लिए राजी किया. इतना ही नहीं कैलाश विजयवर्गीय ने ललित पोरवाल की शादी अपनी भतीजी सपना विजयवर्गीय से करवाई.

भतीजी सपना का कन्यादान भी कैलाश विजयवर्गीय ने ही किया था. लेकिन आज वही मित्र बगावत का बिगुल बजा रहे हैं और कैलाश विजयवर्गीय पर भाई भतीजावाद, वंशवाद के आरोप लगा रहे हैं. उनका कहना है कि रिश्तेदारी का अर्थ यह नहीं होता कि किसी का गला काट दो.

वहीं अपनों से घिरे बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का कहना है कि ललित पोरवाल इतने बड़े नेता नहीं कि उन पर कोई टिप्पणी की जाए. मैं उनसे बोलने भी नहीं जाऊंगा कि वो अपना नामांकन वापस ले लें और चुनाव न लड़ें. हालांकि विजयवर्गीय यह एलान भी कर चुके हैं कि अपने बेटे आकाश के चुनाव प्रचार के लिए नहीं जाएंगे.

 

रिश्तेदारों की इस लड़ाई ने कांग्रेस को भी बीजेपी पर हमला बोलने का मौका दे दे दिया है. कांग्रेस की मीडिया प्रभारी शोभा ओझा का कहना है कि चाल, चरित्र, चेहरे की बात करने वाली बीजेपी का इस चुनाव में असली चेहरा सामने आ गया है. कैलाश विजयवर्गीय अपने दामाद को ही नहीं संभाल पा रहे हैं तो पार्टी को क्या संभालेंगे.

दरअसल 35 साल से बीजेपी जुड़े रहे ललित पोरवाल चार बार पार्षद रहने के साथ ही इंदौर विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष भी रहे हैं. वह इंदौर की तीन नंबर सीट से अरसे से टिकट की मांग कर रहे थे. इस बार उषा ठाकुर का विरोध होने के चलते उन्हें टिकट मिलने की उम्मीद थी. लेकिन बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने यहां से अपने बेटे आकाश विजयवर्गीय को टिकट दिला दिया. इससे नाराज होकर वो निर्दलीय चुनाव मैदान में कूद पड़े हैं.