हवा के बीच लडखड़ाई कांग्रेस!

हवा के बीच लडखड़ाई कांग्रेस!

छह महीने पहले, तीन उपचुनावों की बेकग्राउंड में राजस्थान में कांग्रेस की सघन आंधी थी। अजमेर, अलवर जैसे लोकसभा क्षेत्र के सभी (हां, सभी) विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा हारी थी। तब अनुमान बना था कि विधानसभा चुनावों में भाजपा का सूपड़ा साफ होगा। 200 सीटों में से भाजपा 30-40 सीटे भी मुश्किल से जीतेगी। लेकिन राहुल गांधी, उनकी नाबालिग नई कांग्रेस टीम और पुराने मैनेजरों ने आज उसी अजमेर जिले की सभी सीटों में भाजपा-कांग्रेस में बराबरी का मुकाबला बनवा दिया है! जिस लोकसभा उपचुनाव में भाजपा एक भी विधानसभा क्षेत्र में बढ़त में नहीं थी और अजमेर शहर की भगवाई अजमेर उत्तर सीट में भी भाजपा के मंत्री वासुदेव देवनानी अपने इलाके में तब जीता नहीं पाए थे वहां वे आज मुकाबलें में दम के साथ हंै। ऐसे ही किशनगढ़, अजमेर दक्षिण, नसीराबाद, दूदू में भाजपा कांटे की टक्कर दे रही है। मतलब छह-आठ महीने पहले आंधी में कांग्रेस की एकतरफा जीत अब जानकारों को बराबरी की टक्कर में बदली दिख रही है तो क्या यह आश्चर्यजनक नहीं? क्या यह कांग्रेस के अपने पांवों पर कुल्हाडी मारने और गलत चुनावी प्रबंधों का प्रमाण नहीं?

और यह राजस्थान के मौजूदा चुनाव में हर जिले की कहानी है। क्या कोई और पार्टी है जो अपने पांवों खुद कुल्हाड़ी मारने की ऐसी आत्मघाती राजनीति करती है? यों मेरा निजी तौर पर मानना है कि जनता के पांच साल के अनुभव कांग्रेस के पांवों पर कुल्हाड़ी मारने के बावजूद गुल खिलाएंगे। कांग्रेस की अच्छी जीत होनी चाहिए। बावजूद इसके वह तो नहीं होगा जो उपचुनावों में हुआ था? मोदी- शाह को लोकसभा चुनाव के लिए भगवा जमीन तैयार करने का मौका तो मिलेगा। वह भी कई तरह से। प्रदेश में आज कांग्रेसी नेताओं में ही कोई 35-40 टिकट बेचें जाने का हिसाब है। बिना जमीन के पठ्ठों को पार्टी ने उम्मीदवार बनाया। ऐसे पठ्ठों की संख्या कोई 60-65 उम्मीदवारों की है। जनता में हवा बनाने वाली जातियों को तरजीह नहीं दी। 40-42 बागी उम्मीदवार बनवा दिए। पार्टी के लिए प्रचार और पैसे खर्च करने मे प्रदेश नेताओं की कंजूसी मगर अपने लिए जरूर टीवी चैनलों को पैसा देते हुए व अखबारों में भी निज मार्केटिंग!

सो परिणाम? कांग्रेस के हाथ-पांव फूले हुए हैं। आत्मविश्वास पैंदे पर है। अहमद पटेल, मुकुल वासनिक, गुलाम बनी आजाद जयपुर जा कर बैठें हंंै और इंतहा जो अहमद पटेल, राजीव शुक्ला, मुकुल वासनिक आदि निर्दलीय राजनीति करने वाले चंद्रराज सिंघवी के घर जा कर अनुनय करने पहुंचे कि यदि विधानसभा त्रिशंकु आए तो वे नतीजों के बाद कांग्रेस के लिए निर्दलीय जुटाने की भागदौड़ करें।

संदेह नहीं कांग्रेस की यह शर्मनाक दशा खुद कांग्रेस नेताओं द्वारा अपने हाथों बनाई हुई है। मैंने मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस नेताओं की गड़बड़ी का जिक्र किया था। वहां वचनपत्र में जबरदस्ती संघ की शाखाओं पर प्रतिबंध जैसी बातों से कांग्रेस ने संघ की मशीनरी को करों-मरों के मोड में पहुंचाया था। वहां भी 230 में से प्रदेश नेताओं की पठ्ठागिरी मतलब अपने पठ़ठों को टिकट देने की प्रवृति से 30-40 सीटो के नुकसान की हकीकत बनी। मगर राजस्थान में तो कांग्रेस ने अति की। उस नाते राजस्थान से साबित है कि राहुल गांधी के बस में संगठन चलाना नहीं है। उनके नए पदाधिकारी नाबालिग राजनीति वाले हंै तो पुरानों के बस में ले दे कर अपना अस्तित्व बचाएं रखने की राजनीति है। उम्मीदवार तय करने के राहुल गांधी के तमाम पैमाने ऐन वक्त की लॉबिग में फेल होते हंै। राहुल गांधी की तकनीकी याकि आंकड़ों की प़डताल करने वाली टीम एक दिशा में बिना राजनैतिक हकीकत, समझ लिए है तो जमीनी पकड़ वाले नेताओं की टीम दूसरी दिशा में। परस्पर कोई तालमेल नहीं। तभी जमीनी हकीकत के अनुसार समझ के साथ दमदार उम्मीदवार, माइक्रों प्रंबंधन की चिंता नहीं हुई।

जैसा मैने ऊपर लिखा और बार-बार लिख रहा हूं कि जमीनी समझ, जनता की नब्ज पर प्रदेश में कांग्रेस की हवा दिख रही है मगर तीन उपचुनावों में भाजपा के सूपड़ा साफ हो सकने वाला माहौल लुप्त है तो ऐसा कांग्रेस की करनियों के चलते हंै। भाजपा कहीं चुनाव लड़ती हुई दिखलाई नहीं देनी चाहिए थी और आज यदि मुझे 28-30 सीटों पर उलटे कांग्रेस तीसरे स्थान पर व भाजपा बनाम बागी कांग्रेसी या तीसरी पार्टी में मुकाबला दिख रहा है तो यह सौ टका कांग्रेसियों के अपने पांवों कुल्हाड़ी मारने की बदौलत है।

यह तब है जब कांग्रेस मुख्यालय में इन दिनों अशोक गहलौत सर्वेसर्वा है। महासचिव अविनाश पांडे अर्से से राजस्थान में तैनात थे। राहुल गांधी को राजस्थान की फीडबैक में भंवर जितेंद्र, सीपी जोशी जैसे पुराने भरोसेमंद नेता भी उपलब्ध थे। उस नाते कांग्रेस में उम्मीदवारों का चयन, रणनीति, प्रचार के बंदोबस्त सब एडवांस में बहुत पहले हो जाने थे। मगर भाजपा में अमित शाह बनाम वसुंधरा राजे की खुन्नस के बावजूद भाजपा के उम्मीदवार पहले तय हुए और कांग्रेस में ऐन वक्त लिस्ट बनी। वह भी ऐसी जिससे पुराने कांग्रेसी भड़के और दर्जनों बागी मैदान में उतर आएँ। कांग्रेस का राजधानी जयपुर में न मीडिया कंट्रोल रूम है और न मीडिया में प्रचार। न प्रदेश स्तर के प्रवक्ता पत्रकारों को औपचारिक, अनौपचारिक ब्रीफ देने के लिए और न विपक्ष याकि भाजपा की कमियों, सभाओं की सफलतता- असफलता वाला नैरेटिव बनवाने जैसा कोई प्रबंधन। ठिक विपरित भाजपा ने हर मामले में फौज उतारी हुई है। मुख्यमंत्री और प्रदेश संगठन के अलग प्रबंध तो अमित शाह खुद जयपुर बैठ सभी प्रवक्ताओं, योगी आदित्यनाथ से ले कर शिवराजसिंह आदि सबसे प्रचार करवाते हुए।

जाहिर है कांग्रेस जीतेगी तो जनता के उसकी तरफ से चुनाव लड़ने के चलते। जनता का मनोभाव है, पांच साल के उसके अनुभवों की घायल दशा है जो कांग्रेस को जीतवाएगी। मगर वह यदि जैसी –तैसी जीत हुई या कांग्रेस लुढक ही गई तो तय माने कि पांच महिने बाद लोकसभा की प्रदेश की 25 सीटों में कांग्रेस बुरी तरह लुढ़की हुई मिलेगी।

सचमुच नरेंद्र मोदी-अमित शाह ने खराब माहौल के बावजूद छतीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान तीनों जगह विधानसभा चुनाव की रणनीति को लोकसभा चुनाव के टारगेट को ध्यान में रख कर बनाया। बिगड़ी जमीन को सुधारने के लिए काम किया लेकिन कांग्रेस ने तैयार जमीन में भी कांग्रेसी घास पैदा करने वाले बीज डाले। सभी जिलों में बराबरी का ऐसा मुकाबला बनवा दिया जो लोकसभा चुनाव तक पार्टी को और खोखला, बिना दिशा वाला बना देगा