कर्जमाफी फार्मूले ने कांग्रेस को बनाया हिट

मध्यप्रदेश में 2013 में तीसरी बार सरकार बनाने में सफल रही भाजपा का इस बार भी भाजपा का फोकस गांव और गरीब रहा। इनको कई सौगातें दीं, घोषणाएं भी कीं, लेकिन कांग्रेस का किसानों की कर्ज माफी का फॉर्मूला उसकी सभी नीतियों और योजनाओं पर भारी पड़ गया। प्रदेश में 230 में से 184 विधानसभा क्षेत्र ग्रामीण हैं। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इनमें से 122 विधानसभा क्षेत्रों में सफलता हासिल की थी, लेकिन इस चुनाव में भाजपा को मात्र 84 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा।

वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस को इस बार 95 सीटें मिलीं, जबकि 2013 के विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस का 56 ग्रामीण विधानसभा क्षेत्रों में जीत मिली थी। यानी कांग्रेस को पिछली बार की तुलना में इस बार 39 सीटों का इजाफा हुआ है।
भाजपा को इन सीटों पर ज्यादा नुकसान
राज्य के दो दर्जन ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां भाजपा को करारी हार मिली। यहां भाजपा प्रत्याशी 30 हजार और उससे अधिक मतों से चुनाव हारे। इनमें श्योपुर, डबरा, राघौगढ़, बिजावर, शहपुरा, डिंडोरी, भैंसदेही, बड़वाह, महेश्वर, थांदला, सरदारपुर, कुक्षी, मनावर, बडनगऱ, शाजापुर और गंधवानी प्रमुख है।
इस वजह से भी हारी भाजपा
केंद्र सरकार ने पिछले तीन सालों में किसानों पर अधिक ध्यान दिया गया। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत मुफ्त गैस कनेक्शन दिए गए। सौभाग्य योजना के तहत शत प्रतिशत गांवों में बिजली पहुंचाना है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत सरकारी खर्च पर टॉयलेट बनाए गए। प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत सभी के बैंक अकाउंट खोले गए, लेकिन इन योजनाओं का असर नहीं दिखा। राज्य की भाजपा सरकार ने कन्यादान योजना, तीर्थ दर्शन योजना, लाड़ली लक्ष्मी योजना, सम्बल योजना साहित अनेक योजनाएं शुरू कीं। लाखों लोगों को इसका लाभ मिला। लाभार्थियों की संख्या देख भाजपा खुश थी लेकिन इन लाभार्थियों को भाजपा वोट बैंक में तब्दील नहीं कर पाई। जबकि, इन योजनाओं के भुनाने के लिए पार्टी ने अलग से प्लान तैयार किया था।