राफेल डील: कौन झूठा, कौन सच्चा

– कांग्रेस के आरोप: डील के जरिये निजी कंपनी को फायदा पहुंचा रही है एनडीए सरकार
– भाजपा का बचाव: गोपनीयता क्लॉज की वजह से नहीं कर सकते डील सार्वजनिक
लगता है कि कांग्रेस को बोफोर्स घोटाले का जवाब मिल गया है। राफेल सौदे को लेकर जिस तरह कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां मोदी सरकार को घेर रही हैं, उससे तो लगता है कि अगले लोकसभा चुनाव आते-आते इस मुद्दे की आग में और घी डालने की तैयारी विपक्षी दल कर रहे हैं। हालांकि, सरकार का स्पष्ट कहना है कि गोपनीयता क्लॉज की वजह से इस सौदे की बारीकी को विस्तार से सार्वजनिक नहीं कर सकती। दरअसल, काले धन को लेकर तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार भी अंतरराष्ट्रीय करारों में फंसी थी और भाजपा समेत तमाम दलों ने उसे नाम सार्वजनिक करने के लिए दबाव बनाया था। यह दिलचस्प रहेगा कि राहुल इस लड़ाई को कहां तक ले जाते हैं…

अखिलेश द्विवेदी .प्रधान संपादक. मंगल भारत राष्ट्रीय समाचार पत्रिका:
नई दिल्ली (डीएनएन)। भारतीय वायु सेना को अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए कम से कम 42 लडाक़ू स्क्वाड्रंस की जरूरत थी, लेकिन उसकी वास्तविक क्षमता घटकर महज 34 स्क्वाड्रंस रह गई। ऐसे में वायुसेना की मांग आने के बाद 126 लड़ाकू विमान खरीदने का सबसे पहले प्रस्ताव अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार ने रखा था। लेकिन इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाया कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने। रक्षा खरीद परिषद, जिसके मुखिया तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी थे, ने 126 एयरक्राफ्ट की खरीद को अगस्त, 2007 में मंजूरी दी थी। यहां से ही बोली लगने की प्रक्रिया शुरू हुई। इसके बाद आखिरकार 126 विमानों की खरीद का आरएफपी जारी किया गया। यह डील उस मीडियम मल्टीर-रोल कॉम्बेदट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) कार्यक्रम का हिस्सा है, जिसे रक्षा मंत्रालय की ओर से इंडियन एयरफोर्स (आईएएफ) लाइट कॉम्बट एयरक्राफ्ट और सुखोई के बीच मौजूद अंतर को खत्म करने के मकसद से शुरू किया गया था। एमएमआरसीए के कम्पीटिशन में अमेरिका के बोइंग एफ/ए-18ई/एफ सुपर हॉरनेट, फ्रांस का डैसो रफाल, ब्रिटेन का यूरोफाइटर, अमेरिका का लॉकहीड मार्टिन एफ-16 फाल्कपन, रूस का मिखोयान मिग-35 और स्वीडन के साब जैस 39 ग्रिपेन जैसे एयरक्राफ्ट शामिल थे। छह फाइटर जेट्स के बीच रफ़ाल को इसलिए चुना गया क्योंकि राफेल की कीमत बाकी जेट्स की तुलना में काफी कम थी। इसका रख-रखाव भी काफी सस्ताब था।
भारतीय वायुसेना ने कई विमानों के तकनीकी परीक्षण और मूल्यांकन किए और साल 2011 में यह घोषणा की कि राफेल और यूरोफाइटर टाइफून उसके मानदंड पर खरे उतरे हैं। साल 2012 में राफेल को एल-1 बिडर घोषित किया गया और इसके मैन्युफैक्चरर दसाल्ट एवि एशन के साथ कॉन्ट्रैक्ट पर बातचीत शुरू हुई। लेकिन आरएफपी अनुपालन और लागत संबंधी कई मसलों की वजह से साल 2014 तक यह बातचीत अधूरी ही रही।
यूपीए सरकार के दौरान इस पर समझौता नहीं हो पाया, क्योंकि खासकर टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के मामले में दोनों पक्षों में गतिरोध बन गया था। डैसो एविएशन भारत में बनने वाले 108 विमानों की गुणवत्ता की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं थी। डैसो का कहना था कि भारत में विमानों के उत्पादन के लिए 3 करोड़ मानव घंटों की जरूरत होगी, लेकिन एचएएल ने इसके तीन गुना ज्यादा मानव घंटों की जरूरत बताई, जिसके कारण लागत कई गुना बढ़ जानी थी।
साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी सरकार बनी तो उसने इस दिशा में फिर से प्रयास शुरू किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फ्रांस यात्रा के दौरान साल 2015 में भारत और फ्रांस के बीच इस विमान की खरीद को लेकर समझौता किया। इस समझौते में भारत ने जल्द से जल्द 36 राफेल विमान फ्लाइ-अवे यानी उड़ान के लिए तैयार विमान हासिल करने की बात कही। समझौते के अनुसार दोनों देश विमानों की आपूर्ति की शर्तों के लिए एक अंतर-सरकारी समझौता करने को सहमत हुए।
समझौते के अनुसार विमानों की आपूर्ति भारतीय वायु सेना की जरूरतों के मुताबिक उसके द्वारा तय समय सीमा के भीतर होनी थी और विमान के साथ जुड़े तमाम सिस्टम और हथियारों की आपूर्ति भी वायुसेना द्वारा तय मानकों के अनुरूप होनी है। इसमें कहा गया कि लंबे समय तक विमानों के रखरखाव की जिम्मेदारी फ्रांस की होगी। सुरक्षा मामलों की कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद दोनों देशों के बीच 2016 में आईजीए हुआ। समझौते पर दस्तखत होने के करीब 18 महीने के भीतर विमानों की आपूर्ति शुरू करने की बात है यानी 18 महीने के बाद भारत में फ्रांस की तरफ से पहला रफ़ाल लड़ाकू विमान दिया जाएगा।
एनडीए सरकार ने दावा किया कि यह सौदा उसने यूपीए से ज्यादा बेहतर कीमत में किया है और करीब 12,600 करोड़ रुपये बचाए हैं। लेकिन 36 विमानों के लिए हुए सौदे की लागत का पूरा विवरण सार्वजनिक नहीं किया गया। सरकार का दावा है कि पहले भी टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की कोई बात नहीं थी, सिर्फ मैन्युफैक्चरिंग टेक्नोलॉजी की लाइसेंस देने की बात थी। लेकिन मौजूदा समझौते में ‘मेक इन इंडिया’ पहल किया गया है। फ्रांसीसी कंपनी भारत में मेक इन इंडिया को बढ़ावा देगी।
लेकिन मीडिया में आई तमाम खबरों में यह दावा किया गया कि यह पूरा सौदा 7.8 अरब रुपये यानी 58,000 करोड़ रुपए का हुआ है और इसकी 15 फीसदी लागत एडवांस में दी जा रही है। भारत को इसके साथ स्पेयर पार्ट और मेटोर मिसाइल जैसे हथियार भी मिलेंगे जिन्हें कि काफी उन्नत माना जाता है। बताया जाता है कि यह मिसाइल 100 किमी दूर स्थित दुश्मन के विमान को भी मार गिरा सकती है। अभी चीन या पाकिस्तान किसी के पास भी इतना उन्नत विमान सिस्टम नहीं है। विपक्ष सवाल उठा रहा है कि अगर सरकार ने हजारों करोड़ रुपए बचा लिए हैं तो उसे आंकड़े सार्वजनिक करने में क्या दिक्कत है। कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि यूपीए 126 विमानों के लिए 54,000 करोड़ रुपये दे रही थी, जबकि मोदी सरकार सिर्फ 36 विमानों के लिए 58,000 करोड़ दे रही है। कांग्रेस का आरोप है कि एक प्लेन की कीमत 1555 करो? रुपये हैं, जबकि कांग्रेस 428 करोड़ में रुपये में खरीद रही थी। कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी सरकार के सौदे में ‘मेक इन इंडिया’ का कोई प्रावधान नहीं है। विरोधियों का कहना है कि यूपीए सरकार 18 बिल्कुल तैयार विमान खरीदने वाली थी और बाकी 108 विमानों का भारत में एसेंबलिंग की जानी थी। इसके अलावा इस सौदे में ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी की बात कही गई थी, ताकि खुद बाद में भारत में इन विमानों को बनाया जा सके। कांग्रेस का कहना है कि जब यूपीए सरकार सस्ते, बेहतर और व्यापक सौदे पर बात कर रही थी, तो इस सौदे को करने की एनडीए सरकार को इतनी हड़बड़ी क्यों थी।
सौदे के आलोचकों का कहना है कि यूपीए के सौदे में विमानों के भारत में एसेंबलिंग में सार्वजनिक कंपनी हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट लिमिटेड को शामिल करने की बात थी। भारत में यही एक कंपनी है जो सैन्य विमान बनाती है। लेकिन एनडीए के सौदे में एचएएल को बाहर कर इस काम को एक निजी कंपनी को सौंपने की बात कही गई है। किसी भरोसेमंद सरकारी कंपनी की जगह अनाड़ी नई निजी कंपनी को शामिल करना कैसे उचित हो सकता है। यानी विरोधियों के मुताबिक एनडीए सरकार एक निजी कंपनी को फायदा पहुंचा रही है। कांग्रेस का आरोप है कि सौदे से एचएएल को 25000 करोड़ रुपये का घाटा होगा।
राफेल सौदे में बड़ा घोटाला: राहुल गांधी
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने रफ़ाल सौदे में गोपनीयता संबंधी समझौते को लेकर रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन पर ढुलमुल रवैया अपनाने का आरोप लगाया। राहुल गांधी का दावा है कि इस लड़ाकू विमान सौदे में निश्चित तौर पर ‘घोटाला’ हुआ है। उन्होंने इस मुद्दे को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी निशाना साधा और आरोप लगाया कि विमान की कीमतों के बारे में पूछे जाने पर मोदी घबराते हैं। राहुल ने इस मुद्दे को लेकर एक ट्वीट भी किया। उन्होंने लिखा कि हमारी रक्षा मंत्री ने कहा कि वह (खुलासा) करेंगी या लेकिन अब कह रही हैं कि खुलासा नहीं करेंगी।
राहुल ने कहा: वह गोपनीय है और गोपनीय नहीं है, के बीच फंसी हुई हैं। जब प्रधानमंत्री से राफेल के विमान के बारे में पूछा जाता है तो वह घबराते हैं और मेरी आंखों में आंख डालकर नहीं देख पाते। निश्चित तौर पर बड़े घोटाले की बू आ रही है।’ खास बात यह है कि बीते 20 जुलाई को लोकसभा में सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान राहुल गांधी ने राफेल विमान सौदे में घोटाले का आरोप लगाते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी ‘चौकीदार नहीं बल्कि भागीदार’ हैं। गौरतलब है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भारत द्वारा लड़ाकू विमान खरीदने के लिए किये जाने वाले संभावित सौदे की खबरों को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधते हुए आशंका जतायी कि वह अपने मित्रों को फायदा पहुंचा सकते हैं।
राफेल की कीमत बताकर दुश्मनों की मदद नहीं करेंगे: रक्षा मंत्री
रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि राहुल गांधी की मांग है कि राफेल लड़ाकू विमान की कीमत का खुलासा किया जाए, लेकिन ऐसा करना दुश्मन की मदद करने जैसा होगा। उन्होंने कहा कि इसलिए इस एयरक्राफ्ट की कीमत का खुलासा वह नहीं कर सकतीं। निर्मला सीतारमण की प्रतिक्रिया कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा सरकार से रकम का खुलासा करने को कहे जाने के बाद आई है। राहुल ने फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू जेट के सौदे में अनियमितताओं का आरोप लगाया था। एक कार्यक्रम में रक्षा मंत्री ने कहा, ‘राहुल गांधी सरकार के खिलाफ युद्ध सामग्री की तलाश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें कुछ भी नहीं मिला।’ उन्होंने कहा, हमारी वायु सेना को मदद करने में राफेल अंतर-सरकारी समझौता का एक बेहतरीन उदाहरण है। हमने हर रूप में एक अच्छा सौदा किया है चाहे वे तत्परता की बात हो या कीमत की। रक्षा मंत्री ने कहा, लेकिन कीमत का खुलासा करना राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ समझौता करने जैसा होगा। मैं राहुल गांधी के अहम को संतुष्ट और इस परिष्कृत विमान के लिए देश के परिस्थितियों के अनुसार हवाई जहाज, युद्ध सामग्री और बदलावों के विवरण का खुलासा नहीं करना चाहती।
सीतारमन देश को गुमराह कर रही हैं, 2008 में राफेल से कोई समझौता नहीं हुआ था: एंटनी
पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी ने कहा है कि इस मामले में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण देश को गुमराह कर रही हैं क्योंकि 2008 में राफेल से कोई समझौता नहीं हुआ था। 2012 में राफेल को एल-1 के तौर पर चुना गया तब 18 राफेल विमान सीधे आने थे और बाकी एचएएल में बनने थे और राफेल बनाने वाली कंपनी तकनीकी ट्रांस?र करती। पूर्व रक्षा मंत्री ने कहा कि 2008 का कोई समझौता नहीं था इसलिए गोपनीयता की कोई शर्त नहीं थी। प्रधानमंत्री मोदी ने सुरक्षा की कैबिनेट कमेटी की मं?ूरी के बिना सौदा बदला जिसमें विमान की कीमत काफी अधिक हो गई।
क्या है राफेल?
राफेल डबल इंजन वाला मल्टीरोल फाइटर प्लेन है जो कि फ्रांसीसी कंपनी डैसो बनाती है। 2012 में इंडियन एयरफोर्स ने कहा कि राफेल इसका पसंदीदा एयरक्राफ्ट है। 2015 में पीएम नरेंद्र मोदी के फ्रांस दौरे के समय भारत ने फ्रांस से 36 एयरक्राफ्ट की ‘फ्लाई-अवे’ स्थिति में डिलीवर करने के लिए कहा। उम्मीद की जा रही है कि राफेल की पहली स्क्वाड्रन इंडियन एयरफोर्स की पहली फ्लीट 2019 में ज्वाइन करेगी। जहां एक तरफ इस डील की वजह से इंडियन एयरफोर्स की शक्ति बढ़ेगी वहीं इस डील ने तमाम सवाल भी खड़े कर दिए हैं। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि सरकार ने ज्यादा पैसे देकर ये डील की है।

नीयता क्लॉज की वजह से नहीं कर सकते डील सार्वजनिक
लगता है कि कांग्रेस को बोफोर्स घोटाले का जवाब मिल गया है। राफेल सौदे को लेकर जिस तरह कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां मोदी सरकार को घेर रही हैं, उससे तो लगता है कि अगले लोकसभा चुनाव आते-आते इस मुद्दे की आग में और घी डालने की तैयारी विपक्षी दल कर रहे हैं। हालांकि, सरकार का 

स्पष्ट कहना है कि गोपनीयता क्लॉज की वजह से इस सौदे की बारीकी को विस्तार से सार्वजनिक नहीं कर सकती। दरअसल, काले धन को लेकर तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार भी अंतरराष्ट्रीय करारों में फंसी थी और भाजपा समेत तमाम दलों ने उसे नाम सार्वजनिक 

राहुल के खिलाफ लोकसभा में विशेषाधिकार हनन का नोटिस

राहुल के खिलाफ लोकसभा में विशेषाधिकार हनन का नोटिसराहुल के खिलाफ लोकसभा में विशेषाधिकार हनन का नोटिस
लोकसभा में मोदी सरकार के खिलाफ टीडीपी द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा मोदी सरकार पर राफेल विमान सौदे में कीमत छिपाने को लेकर दिए गए बयान पर सदन को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए भारतीय जनता पार्टी के सांसद प्रहलाद जोशी ने विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया है। अपने विशेषाधिकार हनन नोटिस में बीजेपी सांसद प्रहलाद जोशी का कहना है कि राहुल गांधी ने फ्रांस के साथ हुई राफेल डील का जिक्र करते हुए कहा था कि मोदी सरकार ने यूपीए की डील को रद्द कर फ्रांस से राफेल विमानों को लेकर जो डील की उसकी वजह से राफेल का दाम 1600 करोड़ हो गया, जो यूपीए के समय मे 520 करोड़ प्रति विमान था। प्रहलाद जोशी ने आरोप लगाया है कि राहुल गांधी द्वारा दिया गया बयान तथ्यों से परे है और सदन को गुमराह करने वाला है। कांग्रेस अध्यक्ष का बयान प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री की छवि खराब करने के लिए दिया गया है।
भारत को 32 जगुआर फाइटर प्लेन मुफ्त में देगा फ्रांस
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा में विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान राफेल डील को लेकर सरकार पर गंभीर आरोप लगाए थे। राहुल गांधी ने कहा था कि नरेंद्र मोदी सरकार को इस सवाल का जवाब देना चाहिए कि राफेल विमानों को खरीदने के लिए वह क्यों फ्रांस को यूपीए सरकार की तुलना में अधिक पैसे दे रही है। शायद कांग्रेस अध्यक्ष को इस बात की खबर नहीं थी कि फ्रांस भारत को 32 सेंकेड हैंड जगुआर विमान मुफ्त में दे रहा है। भले ही ये 32 जगुआर विमान पुराने हों लेकिन भारतीय वायुसेना के लिए काफी फायदेमंद साबित होंगे। इससे भारत के सैकड़ों करोड़ रुपये की बचत भी होगी। अगर स्पीड की बात करें तो एक जगुआर विमान 1700 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ सकता है। यही नहीं फ्रांस भारत को दो मिराज-2000 लड़ाकू विमान देने भी जा रहा है। मिराज वही विमान है जिसने कारगिल युद्ध के दौरान अपनी क्षमता सिद्ध की थी। आपको बता दें कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने संसद में रक्षा मंत्री पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दबाव में झूठ बोलने का आरोप लगाया था। राहुल ने कहा था कि जब फ्रांस के राष्ट्रपति दिल्ली आए थे तो उन्होंने स्वयं उनसे मुलाकात की थी। राहुल ने दावा किया था इस मुलाकात के दौरान फ्रांस के राष्ट्रपति ने उन्हें बताया था कि राफेल के विमानों की कीमत गुप्त रखने की कोई शर्त नहीं है और आप पूरे देश को इसकी कीमतों के बारे में बता सकते हैं। हालांकि, राहुल के इस बयान के तुंरत बाद फ्रांस सरकार ने बयान जारी करते हुए कहा था कि एक इंटरव्यू के दौरान हमारे राष्ट्रपति ने पहले ही साफ कर दिया था कि राफेल डील एक गोपनीय प्रक्रिया के तहत हुई है इसलिए सुरक्षा कारणों को देखते हुए इसकी कीमत का खुलासा नहीं कर सकते।
राफेल सौदे की जानकारी गोपनीय: फ्रांस
राहुल गांधी द्वारा राफेल लड़ाकू विमान सौदे को लेकर मोदी सरकार पर झूठ बोलने का आरोप लगाए जाने पर फ्रांस सरकार ने बयान जारी कर अपना पक्ष रखा है। फ्रांस ने कहा कि भारत के साथ 2008 में किया गया सुरक्षा समझौता गोपनीय है और दोनों देशों के बीच रक्षा उपकरणों की संचालन क्षमताओं के संबंध में इस गोपनीयता की रक्षा करना कानूनी रूप से बाध्यकारी है। फ्रांस के यूरोप एवं विदेश मामलों के मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, हमने भारतीय संसद में श्री राहुल गांधी के बयान को देखा-सुना. फ्रांस और भारत के बीच 2008 में एक सुरक्षा समझौता हुआ था, जिसके चलते दोनों देश सभी सुरक्षा उपकरणों की ऑपरेशनल तथा सुरक्षा क्षमताओं को प्रभावित कर सकने वाली पार्टनर द्वारा उपलब्ध करवाई गई गोपनीय जानकारी को छिपाने के लिए कानूनी तौर पर बाध्य हैं। यही प्रावधान स्वाभाविक रूप से 23 सितंबर, 2016 को हुए सौदे पर भी लागू होते हैं।