चुनावी साल में शिव सरकार ने उमा-दिग्विजय से छीना वीआईपी का तमगा

चुनावी साल में शिव सरकार ने अपने राजनैतिक रुप से विरोधी माने जाने वाले प्रदेश के दो दिग्गज नेताओं को बड़ा झटका दिया है। यह झटका उनका वीआईपी रसूख छीनकर दिया गया है। यह दोनों नेता है पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह और भाजपा की फायरब्रांड नेता और केन्द्रीय मंत्री उमा भारती। इन दोनों नेताओं से पहले हाईकोर्ट के निर्देश पर उनके शासकीय आवास छीने गए और अब उनसे वीआईपी का तमगा छीनकर पूर्व से मिली सुरक्षा भी वापस ले ली गई है। इसमें भी खास बात यह है कि शिव सरकार ने ऐसा पैंतरा चला की सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्री के नाते मिले बंगलों का आवंटन निरस्त कर अपने ही दल के तीन नेताओं को फिर से अन्य रास्ते से बंगले वापस दे दिए । चार में से सिर्फ दिग्विजय सिंह ही ऐसे हैं जिन्हें सरकार ने अब तक बंगला नए सिरे से आवंटित नहीं किया है। इसके पीछे सरकार का तर्क है कि श्री सिंह ने बंगला के लिए आवेदन ही नहीं दिया है। इसके बाद सरकार ने सुरक्षा रिव्यू के नाम पर दिग्विजय सिंह व उमा भारती से वीआईपी का दर्जा छीन लिया। खास बात यह है कि इस वीआईपी सूची में बाबूलाल गौर को बनाए रखा गया है। दरअसल यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब प्रदेश में विधानसभा का चुनाव होने वाले हैं। इसे राजनैतिक रुप से उठाए जाने वाले कदम के रुप में देखा जा रहा है। प्रदेश की राजनीति मेें इन दोनों ही नेताओं को मुख्यमंत्री चौहान के राजनैतिक विरोधी के रूप में जाना जाता है। श्री सिंह तो सरकार के खिलाफ पूरी तरह से सक्रिय हैं। ऐसे में उन्हें घेरने की रणनीतिक रुप से पैंतरेबाजी की जा रही है। प्रदेश की राजनीति में श्री सिंह को अब भी ऐसे नेता के रुप में जाना जाता है जिनका जनाधार आज भी हर जिले में व्यापक रुप से है। उधर प्रदेश में भाजपा की राजनीति में उमा भारती की कभी भी श्री चौहान से पटरी नहीं बैठी। यही वजह है कि प्रदेश सरकार द्वारा उनकी लगातार उपेक्षा की जाती रही है।
सुरक्षा के नाम पर घटाया कद
प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्रियों को कैबिनेट स्तर का दर्जा मिला हुआ था। इस वजह से उन्हें सुरक्षा के नाम पर वह पूरी सुविधा उपलब्ध कराई जा रही थी जो एक कैबिनेट मंत्री को दी जाती है। इसके लिए सरकार द्वारा वीआईपी की सूची तैयार की गई थी। जिसमें दिग्विजय सिंह को चौथे नंबर पर रखा हुआ था। इस क्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व उमा भारती संयुक्त रुप से तीसरे नंबर पर थे, जबकि बाबूलाल गौर को दूसरे नंबर पर रखा गया था। सरकार ने रिव्यू के नाम पर उमा भारती और दिग्विजय सिंह को अब वीआईपी की सूची से बाहर कर दिया। श्री सिंह के नंबर पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ को शामिल किया गया है। जबकि उमा भारती के स्थान पर अभी किसी को जगह नहीं दी गई है। बाकी शीर्ष के दोनों क्रम को पूर्व की भांति ही बरकरार रखा गया है।
उमा—दिग्विजय को तबज्जो नहीं
चुनावों के मौके पर उमा भारती और दिग्विजय सिंह की सुरक्षा कम किए जाने को राजनीतिक नफा—नुकसान से जोडक़र देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि शिवराज सरकार दोनों को ही मध्यप्रदेश में ज्यादा तवज्जो देने के मूड़ में नहीं है। यही वजह है कि सुरक्षा के बहाने दोनों के कद को सीमित करने की कोशिश की गई है। दरअसल उमा भारती चुनावों के दौरान टिकटों के बंटवारे में दखल चाहती हैं और मध्यप्रदेश में राजनीति में सक्रिय भूमिका की मांग कर रही हैं वह भाजपा और सरकार में बैठे लोगों को पसंद नहीं आ रही है। वहीं, दिग्विजय सिंह की सुरक्षा कम कर कमलनाथ की बढ़ाकर सरकार ने कांग्रेस खेमे में झगड़े बढ़ाने की रणनीति बनाई है। हालांकि सरकार अपने मकसद में कितनी कामयाब होती, यह फिलहाल कहना मुश्किल है।
डीजीपी बोले, हम तय नहीं करते सुरक्षा
पूर्व मुख्यमंत्री की सुरक्षा में कटौती के मामले में डीजीपी ऋषि शुक्ला सामने आए हैं। उन्होंने कहा कि वीआईपी तय करने का काम पुलिस नहीं करती है। यह काम राज्य सुरक्षा समिति करती है। हम तो उसके आधार पर ही सभी को सुरक्षा मुहैया कराते हैं।