एम करुणानिधि: जानिए हीरो का कैरेक्टर लिखने से लेकर खुद हीरो बनने तक का सफर, कभी नहीं हारे चुनाव

दिल्‍ली। ततमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) अध्यक्ष एम करुणानिधि का शाम 6.10 पर निधन हो गया। पिछले दस दिन से वो चेन्‍नई के कावेरी हॉस्पिटल के आईसीयू में भर्ती थे। उनको यूरिनरी इन्फेक्शन के बाद कई और तरह की बीमारियों ने घेर लिया था। आइए नजर डालते हैं कई दशकों से तमिलनाडु की राजनीति के एक ध्रुव बने हुए करुणानिधि के राजनीतिक जीवन पर।

करुणानिधि की शुरुआती जिंदगी

करुणानिधि का जन्म मुत्तुवेल और अंजुगम के यहां 3 जून 1924 को तमिलनाडु के नागपट्टिनम के तिरुक्कुभलइ में हुआ था। वे इसाई वेल्लालर समुदाय से संबंध रखते थे। करुणानिधि ने तमिल फिल्म उद्योग में एक पटकथा लेखक के रूप में अपने करियर का शुभारंभ किया। अपनी बुद्धि और भाषण कौशल के माध्यम से वे बहुत जल्द एक राजनेता बन गए। वे द्रविड़ आंदोलन से जुड़े थे और उसके समाजवादी और बुद्धिवादी आदर्शों को बढ़ावा देने वाली ऐतिहासिक और सामाजिक (सुधारवादी) कहानियां लिखने के लिए मशहूर थे। उन्होंने तमिल सिनेमा जगत का इस्तेमाल करके पराशक्ति नामक फिल्म के माध्यम से अपने राजनीतिक विचारों का प्रचार करना शुरू किया।

करुणानिधि की राजनीति में एंट्री

जस्टिस पार्टी के अलगिरिस्वामी के एक भाषण से प्रेरित होकर करुणानिधि ने 14 साल की उम्र में राजनीति में प्रवेश किया और हिंदी विरोधी आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने अपने इलाके के स्थानीय युवाओं के लिए एक संगठन की स्थापना की। उन्होंने इसके सदस्यों को मनावर नेसन नामक एक हस्तलिखित अखबार परिचालित किया। बाद में उन्होंने तमिलनाडु तमिल मनावर मंद्रम नामक एक छात्र संगठन की स्थापना की जो द्रविड़ आन्दोलन का पहला छात्र विंग था। करूणानिधि ने अन्य सदस्यों के साथ छात्र समुदाय और खुद को भी सामाजिक कार्य में शामिल कर लिया। यहां उन्होंने इसके सदस्यों के लिए एक अखबार चालू किया जो डीएमके दल के आधिकारिक अखबार मुरासोली के रूप में सामने आया। उनकी बेहतरीन भाषण शैली को देखकर उन्हें ‘कुदियारासु’ का संपादक बना दिया।

1957 में पहली बार बने विधायक और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा

1957 में हुए चुनाव में वो पहली बार विधायक बने। इस दौरान उनके अलावा पार्टी से 12 अन्य लोग भी विधायक बने थे। करुणानिधि ने राजनीति के क्षेत्र में जमकर पसीना बहाया और 1967 के चुनावों में पार्टी ने बहुमत हासिल किया और अन्नादुराई तमिलनाडु के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने। डीएमके के सत्ता में आने के बाद तमिलनाडु में कांग्रेस की हालत ऐसी हुई कि आज तक वहां सहयोगी के रूप में ही बनी हुई है।

मुख्‍यमंत्री की कुर्सी पर बैठे 5 बार

1957 में जब करुणानिधि पहली बार विधायक बने तो केंद्र में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर जवाहरलाल नेहरू विराजमान थे। करुणानिध जब पहली बार सीएम बने तो देश की पीएम की कुर्सी पर इंदिरा गांधी विराजमान थीं। गौर हो कि आपातकाल के दौरान भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने वाले आयोग की सिफारिशों के आधार पर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने करुणानिधि की सरकार को बर्खास्त कर दिया था। इसके बाद करुणानिधि तीसरी बार सीएम बने। उस वक्त राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। चौथी बार सीएम बने तो पीवी नरसिम्हा राव पीएम थे और पांचवी बार सीएम बने तो मनमोहन सिंह पीएम थे।

वफादारी के लिए जाने जाते थे करुणानिधि, बीमार पत्‍नी को छोड़कर की थी पार्टी की बैठक

एम करुणानिधि डीएमके के प्रति अपनी वफादारी के लिए जाने जाते हैं। एक वाक्या है जो उनकी पार्टी के प्रति वफादारी को उचित ठहराता है। दरअसल, करुणानिधि के जीवन में एक समय ऐसा भी आया, जब उनकी पहली पत्नी पद्मावती मृत्युशैया पर थीं, लेकिन वो इनके पास ठहरने के बजाय पार्टी की बैठक के लिए चले गए थे। उनके इस कदम ने पार्टी कार्यकर्ताओं में उन्हें काफी लोकप्रिय बना दिया था और पार्टी में उनका कद काफी बढ़ गया था।

करुणानिधि ने भी की थीं कई सियासी गलतियां

अपने 6 दशकों से भी ज्यादा लंबे सियासी करियर में करुणानिधि ने एक ऐसी गलती की, जिसका शायद उन्हें हमेशा मलाल रहा। 1972 में जब पार्टी के ताकतवर कोषाध्यक्ष और तमिल फिल्मों के आइकन एमजी रामचन्द्रन (MGR) ने करुणानिधि और उनके कैबिनेट सहयोगियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए तो उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। बाद में MGR ने ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) की स्थापना की। DMK से निकाले जाने के 5 वर्षों के भीतर MGR राजनीतिक तौर पर इतने ताकतवर हो गए कि 1977 में पहली बार सूबे के मुख्यमंत्री बने। एक बार MGR तमिलनाडु के मुख्यमंत्री क्या बने, एक तरह से करुणानिधि का सियासी वनवास भी शुरू हो गया। मुख्यमंत्री बनने के बाद MGR जब तक जिंदा रहे, तब तक करुणानिधि को सत्ता में नहीं आने दिया। 1987 में MGR का निधन हो गया, लेकिन तब तक जयललिता के रूप में उन्होंने करुणानिधि का एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी तैयार कर दिया था।

करुणानिधि ने की थी 3 शादियां, हैं 4 बेटे और 2 बेटियां

करुणानिधि ने तीन शादियां की हैं। उनकी पहली पत्नी पद्मावती, दूसरी पत्नी दयालु अम्माल और तीसरी पत्नी रजति अम्माल हैं। तीन पत्नियों में से पद्‍मावती का निधन हो चुका है, जबकि दयालु और रजती जीवित हैं। उनके 4 बेटे और 2 बेटियां हैं। बेटों के नाम एमके मुथू, जिन्हें पद्मावती ने जन्म दिया था, जबकि एमके अलागिरी, एमके स्टालिन, एमके तमिलरासू और बेटी सेल्वी दयालु अम्मल की संतानें हैं। करुणानिधि की तीसरी पत्नी रजति अम्माल कनिमोझी की मां हैं।

विवादों से भी रहा है नाता, जा चुके थे जेल

करुणानिधि का विवादों से भी गहरा नाता रहा है। उन्‍होंने रामसेतू पर सवाल उठा दिया था। सेतुसमुद्रम विवाद के जवाब में करुणानिधि ने हिन्दुओं के आराध्य भगवान श्रीराम के वजूद पर ही सवाल उठा दिए थे। उन्होंने कहा था, ‘लोग कहते हैं कि 17 लाख साल पहले कोई शख्स था, जिसका नाम राम था। कौन हैं वो राम? वो किस इंजीनियरिंग कॉलेज से ग्रेजुएट थे? क्या इस बात का कोई सबूत है?’ उनके इस सवाल और बयान पर खासा बवाल हुआ था।

लिट्टे के साथ संबंध के आरोप

राजीव गांधी की हत्या की जांच करने वाले जस्टिस जैन कमीशन की अंतरिम रिपोर्ट में करूणानिधि पर लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया था। अंतरिम रिपोर्ट ने सिफारिश की कि राजीव गांधी के हत्यारों को बढ़ावा देने के लिए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करूणानिधि और डीएमके पार्टी जिम्मेदार माना जाए। अंतिम रिपोर्ट में ऐसा कोई आरोप शामिल नहीं था। अप्रैल 2009 में करूणानिधि ने एक विवादस्पद टिप्पणी की कि “प्रभाकरण मेरा अच्छा दोस्त है” और यह भी कहा कि “राजीव गांधी की हत्या के लिए भारत एलटीटीई को कभी माफ नहीं कर सकता”।