मप्र के विस चुनाव को लेकर कांग्रेस पूरी तरह फार्म में है। वह किसी भी तरह सत्ता पाने की जुगत में है। सपा और बसपा से गठबंधन न होने के बाद अब पार्टी के बड़े नेता जयस के साथ तालमेल के लिए तैयार हैं। कहा जा रहा है कि कांग्रेस ने जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन के साथ
मिलकर चुनाव लडऩे की तैयारी कर ली है। प्रदेश की 21 प्रतिशत आदिवासी आबादी पर अपना जनाधार खो चुकी कांग्रेस अब सत्ता में आने के लिए जयस को साथ ले रही है। जयस ने 47 सीटों पर अपने उम्मीदवार तय करते हुए लिस्ट कांग्रेस को सौंपी है।
ये सीटें चाहता है जयस
जयस ने कांग्रेस से धार, कुक्षी, मनावर, गंधवानी, अलीराजपुर, जोबट, भाभरा, झाबुआ, थांदला, रतलाम ग्रामीण, पेटलावद, सैलाना, बड़वानी, सेंधवा, पानसेमल, महेश्वर, नेपानगर, खरगोन, सीट्स मांगी हैं। इनमें से अधिकतर सीट्स पिछले तीन चुनाव से भाजपा से पास हैं। मुश्किल, कुक्षी सीट को लेकर है। यहां पर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के खास हनी बघेल विधायक हैं। खरगोन और झाबुआ में जयस को सीट्स देने का मतलब है, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया और अरुण यादव को झटका देना। यहां की कुछ सीटों पर उनके समर्थक दावेदार हैं।
आदिवासी इलाकों में कांग्रेस की पकड़ कमजोर
देखा जाए तो आदिवासी इलाकों में कांग्रेस के पास नेताओं की भरमार है, लेकिन उनकी जमीनी ताकत पिछले डेढ़ दशक में खत्म हो चुकी है। कांग्रेस यहां कितनी बुरी हालत में है इसका उदाहरण 2013 का चुनाव है, जो प्रदेश के सबसे बड़े आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया के नेतृत्व में लड़ा गया था, लेकिन उनके गढ़ झाबुआ में ही कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था। पिछले चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच आठ फीसदी वोटों का अंतर था। कांग्रेस अगर आदिवासी बेल्ट में फिर मजबूती हासिल कर ले तो यह वोटों का अंतर चार फीसदी पर सिमट सकता है।