प्रदेश में विधानसभा की सत्ता तक पहुंचाने वाली आरक्षित विस सीटें इस बार कांग्रेस व भाजपा दोनों के लिए ही चिंता का विषय बनी हुई हैं। जिस दल को इन सीटों पर जीत हासिल होती है उसकी ही प्रदेश में सरकार बनती रही है। यह सीटें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं। इसमें से आदिवासी बाहुल्य 47 सीटों का मिजाज इस बार कुछ अलग दिख रहा है। करीब डेढ़ दशक पहले तक आदिवासी वर्ग का कांग्रेस को समर्थन रहा करता था। इसके बाद उसका झुकाव भाजपा के पक्ष में हो गया जिसकी वजह से ही प्रदेश में बीते तीन चुनावों में भाजपा की सरकार बनती रही है , लेकिन इस बार जय युवा आदिवासी संगठन
(जयस) और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोंगपा) इस वर्ग में जिस तरह से सक्रिय हैं उससे कांग्रेस व भाजपा दोनों की ही नींद उड़ी हुई है। खास बात यह है कि इन सीटों का भाजपा व संघ द्वारा अपने स्तर पर कराए गए विभिन्न सर्वे में जो जानकारी सामने आयी है उससे भाजपा के रणनीतिकार परेशान बने हुए हैं। गौरतलब है कि इन 47 में से 32 पर भाजपा व 15 पर कांग्रेस का कब्जा है।
भाजपा ने आदिवासी नेताओं को सौंपा जिम्मा
भाजपा ने आदिवासी सीटों के लिए चुनावी रणनीति बनाने और लागू करने का जिम्मा पूर्व केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते को दिया है। महाकौशल में ओमप्रकाश धुर्वे और रामलाल रौतेल को पूरे क्षेत्र में सक्रिय रहने और आदिवासी नेताओं से संपर्क करने के लिए कहा गया है। मालवा में अंतरसिंह आर्य और निर्मला भूरिया को चुनाव प्रबंधन कार्य से जोड़ा है।
फिल्म अभिनेताओं और आदिवासी नेताओं की सभा
भाजपा आदिवासी क्षेत्रों में फिल्म अभिनेता और देश के बड़े आदिवासी नेताओं की सभाएं करेगी। राज्यसभा सदस्य हेमामालिनी, गायक और दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी, केंद्रीय आदिम जाति कल्याण मंत्री जुएल उरांव, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, केंद्रीय इस्पात राज्यमंत्री विष्णुदत्त साय, छत्तीसगढ़ के नेता नंदकुमार साय के साथ ही प्रदेश के बड़े नेताओं को प्रचार में लगाया जाएगा। वहीं, आदिवासी क्षेत्र में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सभाएं ज्यादा कराई जा रही हैं।
कांग्रेस को राहुल के दौरों से उम्मीदें
कांग्रेस का सर्वे आदिवासी सीटों पर उसके लिए बहुत संभावनाएं बता रहा है। इसके बाद से कांग्रेस इन 47 विधानसभा क्षेत्रों में संजीवनी तलाश रही है। पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी का धार, झाबुआ और अलीराजपुर के दौरे का प्लान इसी का हिस्सा है। कांग्रेस की कोशिश है कि राहुल का क्रेज युवा आदिवासी वोटर को एक बार फिर उससे जोड़ दें। पार्टी के सांसद कांतिलाल भूरिया मालवा और निमाड़ के आदिवासी बेल्ट में बड़ा फैक्टर हैं। उनके बेटे विक्रांत भूरिया झाबुआ में टिकट की दावेदारी भी कर रहे हैं। कांतिलाल लोकसभा मुख्य चुनाव 2014 में हार के बाद से लगातार अपने क्षेत्र में जुटे हुए हैं। वे लोकसभा उपचुनाव जीतकर सांसद बने हैं। भूरिया पार्टी की बाकी गतिविधियों को छोडक़र सिर्फ आदिवासी इलाकों में सक्रिय हैं। पार्टी ने निमाड़ में बाला बच्चन की ड्यूटी भी लगाई है। कांग्रेस ने भील-भिलाला, गोंड, कोल, कोरकू और सहरिया समुदाय को लेकर अलग रणनीति बनाई है।
जयस से बिगड़ सकते हैं सियासी समीकरण
जयस आदिवासी सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के सियासी समीकरण बिगाड़ सकता है। हालांकि, कांग्रेस की जयस से गठबंधन की संभावना है। कांग्रेस प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया से जयस अध्यक्ष डॉ. हीरालाल अलावा की चर्चा हुई थी, लेकिन कुक्षी सीट पर मतभेद को लेकर मामला अटका है। जयस ने कांग्रेस की परंपरागत सीट कुक्षी को मांगा है, लेकिन कांग्रेस इसे देने को तैयार नहीं। वहीं, जयस से निपटने के लिए भाजपा युवा और बेरोजगार आदिवासियों को साधने में जुटी हुई है। बड़वानी, धार, खरगौन, झाबुआ, अलीराजपुर में संगठन के नेताओं ने युवा आदिवासियों के साथ बैठकें कर रहे हैं।
गोंगपा महाकौशल में बनी परेशानी
गोंगपा महाकौशल में भाजपा-कांग्रेस के लिए परेशानी बनी हुई है। कांग्रेस की महाकौशल और विंध्य में गोंड मतदाताओं पर नजर है। यहां से 2003 में गोंगपा के तीन प्रत्याशी जीते थे। कांग्रेस उससे गठजोड़ कर तमाम आदिवासी मतदाताओं को अपने साथ जोडऩा चाहती है। प्रदेश की 21 फीसदी आबादी आदिवासी की हैं। इसमें करीब सात फीसदी गोंड हैं। शहडोल, अनूपपुर, डिंडौरी, कटनी, बालाघाट, छिंदवाड़ा जैसे जिलों में गोंगपा का प्रभाव है।
आदिवासियों के बड़े मुद्दे
वनाधिकार पट्टे नहीं मिलना।
बेरोजगारी और मजदूरी के लिए पलायन।
फ्लोराइडयुक्त पानी से होने वाली बीमारियां और कुपोषण।
बिजली और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी।
शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की खराब हालात।
सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार।