नई दिल्ली पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के साथ ही प्रदेश की सियासत भी गरमा गई है। भाजपा ने जहां अपने मंत्रियों, सांसदों व पदाधिकारियों को जनवरी तक के लिए लोकसभा चुनाव का एजेंडा थमा दिया है, वहीं सपा, बसपा व राष्ट्रीय लोकदल के बीच गठबंधन को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं।
भाजपा के कई मंत्रियों व संगठन पदाधिकारियों को छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश व राजस्थान में विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी गई है। सबसे ज्यादा लोग मध्य प्रदेश में लगाए गए हैं। जो मंत्री, सांसद, विधायक, पदाधिकारी और वरिष्ठ नेता पड़ोसी राज्यों में विधानसभा चुनाव में नहीं गए हैं, वे 2019 के एजेंडे पर काम करने में लगे हैं।
बूथ स्तरीय कार्यकर्ताओं के अभिनंदन के साथ शुरुआत
इसकी शुरुआत शनिवार को बूथ स्तरीय कार्यकर्ताओं के अभिनंदन से हो गई है। यह सिलसिला 15 नवंबर तक चलेगा। 17 नवंबर को सभी 80 लोकसभा क्षेत्रों में कमल संदेश बाइक रैली निकाली जाएगी। 1 से 15 दिसंबर के बीच सभी विधानसभा क्षेत्रों में 150 किमी पदयात्रा निकाली जाएंगी। हर विधानसभा क्षेत्र में 25-25 लोगों की 6 टोलियां बनाई जाएंगी। 26 जनवरी को बूथ स्तर पर केंद्र व प्रदेश सरकार की योजनाओं के लाभार्थियों के घर-घर जाकर कमल दीपक जलाया जाएगा।
वहीं विपक्षी दल भी पूरी तरह सक्रिय हो गए हैं। सपा साइकिल यात्राएं निकालने के बाद हर विधानसभा क्षेत्र में बूथ स्तरीय कार्यकर्ताओं के सम्मेलन कर चुकी है। अखिलेश यादव भी दौरे कर रहे हैं। रालोद अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह व उपाध्यक्ष जयंत चौधरी पश्चिमी यूपी में लगातार दौरे कर रहे हैं। बसपा भी संगठनात्मक ढांचे को मजबूती देने में जुटी है।
विपक्षी गठबंधन अंतिम दौर में
विपक्षी दलों के बीच गठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर लगभग सहमति बन गई है। माना जा रहा है कि गठबंधन में सबसे बड़ी हिस्सेदारी बसपा की रहेगी। वह लगभग आधी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। सपा जूनियर पार्टनर रहेगी। रालोद को पश्चिमी यूपी में तीन सीट दिए जाने की अटकलें हैं।
कांग्रेस गठबंधन में शामिल नहीं रहेगी लेकिन अमेठी व रायबरेली सीट उसके लिए छोड़ी जा सकती हैं। सूत्रों का कहना है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम आने के बाद ही यूपी में विपक्षी दलों के गठबंधन का एलान होगा।