कांग्रेस 2013 में बुंदेलखंड की 29 विधानसभा सीटों में से केवल 6 सीटों ही जीत पाई थी
भोपाल । प्रदेश की सत्ता में भाजपा की सरकार बनवाने में अहम भूमिका निभाने वाले बुंदेलखंड अंचल पर अब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की निगाह लग गई है। यही वजह है कि वे जल्द ही इस अंचल में चुनावी दौरे पर आ सकते हैं। इसके लिए पार्टी द्वारा उनका दौरा तय किया जा रहा है। वैसे भी बुंदेलखंड अंचल को राहुल गांधी की राजनीतिक पाठशाला के रूप में माना जाता है। यूपीए-2 की केन्द्र में सरकार के समय राहुल गांधी की वजह से ही इस अंचल के लिए आर्थिक मदद शुरू की गई थी। इसके बाद भी इस अंचल से कांग्रेस को चुनावी
फायदा नहीं हुआ था। यही वजह है कि इस बार भी अभी सफलता व असफलता के कयास ही लगाए जा रहे हैं। गौरतलब है कि इस अंचल के तहत प्रदेश की 29 विस सीटें आती हैं। इसमें से बीते चुनाव में कांग्रेस को महज 6 सीटों पर ही सफलता मिल सकी थी। अप्रैल, 2008 में राहुल गांधी ने बुंदेलखंड से भारत के पिछड़े इलाकों की सियासत का ककहरा सिखना शुरु किया था। अपने बुंदेलखंड दौरे के समय वे कई मजदूरों से मिले थे। इस दौरान उन्होंने स्थानीय लोगों से वादा किया था कि बुंदेलखंड मे विकास की गंगा बहाई जाएगी और रोजगार के अवसर पैदा किए जाएंगे। यही वजह है कि सूखे के गहरे सकंट से जूझ रहे इस अंचल के लिए 7,622 करोड़ रुपए का पैकेज जारी किया गया था। हालांकि इसके बाद भी कांग्रेस को न तो 2013 के विधानसभा चुनाव में और न ही 2014 के लोकसभा चुनाव में कोई फायदा नहीं हुआ।
राहुल के दौरे का यह हो सकता है प्रभाव
श्री गांधी सागर जिले के देवरी कस्बे में आम सभा को संबोधित करेंगे। 2013 के चुनाव में सागर जिले की आठों सीटों में से कांग्रेस को केवल देवरी सीट पर ही सफलता मिली थी। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि राहुल देवरी से पूरे बुंदेलखंड को साधेंगे और यहां की स्थानीय समस्याओं पर पूरा फोकस कर सकते हैं। माना जा रहा है कि इस दौरान वे प्रदेश में सरकार बनने पर बुंदेलखंड के विकास के रोडमैप तैयार करने की घोषणा भी कर सकते हैं। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि राहुल गांधी बेरोजगारी की मार झेल रहे बुंदेलखंड मे रोजगार के अवसर पैदा करने की बात करेंगे। हालांकि कांग्रेसी दावा कर रहे हैं कि वे बुंदेलखंड की 29 सीटों में से 15 सीटें जीतेंगे।
भाजपा के प्रभावी होने की यह है वजह
बुंदेलखंड में बीजेपी के प्रभाव की बड़ी वजह है उसके पास इस क्षेत्र में कई कद्दावर नेताओं का होना। पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान मे केंद्रीय कैबिनेट मिनिस्टर उमा भारती के अलावा प्रदेश के कई कैबिनेट मंत्री गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह, जयंत मलैया, नरोत्तम मिश्रा इसी अंचल से आते हैं। इसके अलावा राज्य मंत्री ललिता यादव भी बुंदेलखंड से संबंध रखती हैं। इसके उलट कांग्रेस के पास इस अंचल में कोई दिग्गज नेता नही है।
इस बार जातीय समीकरण कांग्रेस के पक्ष मेें
प्रभावी नेताओं के अभाव के बाद भी कांग्रेस ने इस बार प्रत्यासी चयन में इलाके की जातियों को साधने का पूरा प्रयास किया है। यही वजह है कि इस बार कांग्रेस ने लोधी, ब्राहमण, जैन, यादव और राजपूत बाहुल्य इस इलाके में इन्हीं जातियों के प्रत्यासियो को महत्व दिया है। जिसकी वजह से भाजपा के कई दिग्गजों को इस बार कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ रहा है। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक इस बार जातीय समीकरण के हिसाब से कांग्रेस ने जो टिकट वितरण किया है, इसका फायदा उसे मिलना तय है।
बीजेपी के बागी भी कांग्रेस के लिए फायदेमंद
बुंदेलखंड से दो कद्दावर नेता रामकृष्ण कुसमारिया और कुसुम मेहदेले बीजेपी से नाराज चल रहे हैं। कुसमारिया दमोह और पथरिया से चुनावी मैदान में है, जिसके चलते कांग्रेस को फायदा हो सकता है। जबकि कुसम मेहदेले की नाराजगी भी पार्टी को भारी पड़ सकती है।
बुन्देलखण्ड की मौजूदा तस्वीर
– मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड में 7 जिले शामिल है। जिनमें सागर, दमोह, पन्ना, छतरपुर, टीकमगढ़, दतिया शामिल हैं, जबकि हाल ही में टीकमगढ़ से पृथक कर निवाड़ी को भी नया जिला बनाया गया है।
– सागर जिले की आठ विधानसभा सीटों में से कांग्रेस के पास केवल एक सीट है। बाकि की सात सीटें बीजेपी के पास हैं।
– दमोह जिले की चार सीटों में से भी कांग्रेस के पास एक सीट है। जबकि तीन सीटों पर बीजेपी का कब्जा है।
– पन्ना जिले की तीन सीटों में भी कांग्रेस के पास एक सीट है। जबकि दो सीटें बीजेपी के पास हैं।
– छतरपुर जिले की 6 विधानसभा सीटों में से भी एक सीट कांग्रेस के पास तो पांच सीटें बीजेपी के पास हैं।
– टीकमगढ़ और निवाड़ी की पांच सीटों में से कांग्रेस के पास 2 सीटें, तो तीन सीटें बीजेपी के पास हैं।
– दतिया जिले की सभी तीन सीटों पर बीजेपी का कब्जा है।
बुंदेलखंड अंचल के प्रमुख मुद्दे
बुंदेलखंड अंचल में बेरोजगारी, पानी की कमी, जीवनयापन के लिये लोगों का पलायन, और मानव तस्करी जैसी समस्यायें दशकों से चली आ रही हैं। इन सब के अलावा बुंदेलखंड सूबे का वो अंचल है जहां जातिवाद का मुद्दा भी जमकर हावी रहता है। बुंदेलखंड में सवर्ण, ओबीसी और एससी-एसटी वर्गों के बीच तालमेल की समस्यायें अब भी नजर आती हैं।