चाल, चरित्र और चेहरा की बात करने वाली भाजपा तो अपने दावे पर खरा उतरी है, मगर कांग्रेस अब भी दाग छिपाने में ही जुटी है। मप्र के 230 प्रत्याशियों में से करीब 70 प्रत्याशियों पर आपराधिक प्रकरण दर्ज हैं, जबकि कांग्रेस अब तक इस बात की गिनती नहीं कर पाई है कि उसके 229 प्रत्याशियों में से कितनों पर आपराधिक प्रकरण दर्ज हैं। चुनाव आयोग के निर्देश के बाद भी
प्रत्याशी अपने आपराधिक प्रकरणों के संबंध में अखबारों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में विज्ञापन कराने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहे हैं। साथ ही और राजनीतिक दलों ने भी अपने प्रत्याशियों के आपराधिक रिकॉर्ड के संबंध में विज्ञापन कराने को लेकर चुप्पी साध रखी है, जबकि विज्ञापन कराने के लिए सिर्फ एक हफ्ता बचा है। आयोग के निर्देशानुसार प्रत्याशियों को 15 नवंबर से 26 नवंबर के बीच आपराधिक प्रकरणों के संबंध में विज्ञापन करवाना है। पांच दिन बीत गए, लेकिन चुनाव प्रचार में दिन-रात एक कर रहे राजधानी के किसी भी प्रत्याशी ने अपने आपराधिक रिकॉर्ड का विज्ञापन कराने की तरफ ध्यान नहीं दिया है।
क्या है सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट के गत 25 सितंबर को जारी आदेशानुसार विधानसाा चुनाव में प्रत्याशी को अपने लंबित आपराधिक प्रकरण एवं दोष सिद्ध प्रकरण के संबंध में घोषणा करना होगी। इसके लिए नामांकन पत्र के साथ शपथ पत्र ‘फार्म-26’ में इसका उल्लेख करना होगा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तारतम्य में चुनाव आयोग द्वारा इस संबंध में जारी निर्देशों के अनुसार हर प्रत्याशी को चुनाव आयोग द्वारा दिए गए प्रारूप एवं उसमें दिए गए सभी विवरण को भरेगा। यदि प्रत्याशी किसी राजनीतिक दल से चुनाव लड़ रहा है, तो उसे स्वयं पर लंबित आपराधिक प्रकरणों के संबंध में उस राजनीतिक दल को सूचना देना अनिवार्य होगा।
पार्टियां वेबसाइट पर नहीं दे रहीं जानकारी
सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार राजनीतिक दल अपने प्रत्याशी द्वारा दिए गए स्वयं पर लंबित आपराधिक प्रकरणों की जानकारी स्वयं की वेबसाइट में दिखाए जाने के लिए बाध्य होंगे, लेकिन किसी भी पार्टी ने अपनी वेबसाइट पर इसकी जानकारी नहीं दी है। प्रत्याशी एवं संबंधित राजनीतिक दल को इस बारे में समाचार पत्रों एवं इलेट्रॉनिक मीडिया में प्रसारित/प्रकाशित कराना होगा। तीन बार पार्टी और तीन बार प्रत्याशी आपराधिक प्रकरणों का विज्ञापन कराएगा।