11 दिसम्बर को ये बनेगा सरकार के लिए सबसे बड़ा विलेन, 230 प्रत्याशियों में चिंता!
जबलपुर. विधानसभा चुनावों में ‘नोटा’ को लेकर मतदाताओं से लेकर प्रत्याशियों तक में असमंजस की स्थिति थी। आचार संहिता लागू होने से मतदान के दिन तक मतदाताओं का नोटा के प्रति रुझान नजर नहीं आया। पिछली बार के मुकाबले निर्वाचन आयोग ने भी इसका प्रचार-प्रसार नहीं किया। इससे कयास लग रहे हैं कि इस विधानसभा चुनाव में नोटा का आंकड़ा पिछली चुनावों के मुकाबले कम हो सकता है।
news facts-
चुनाव आयोग की तरफ से भी नहीं किया गया ज्यादा प्रचार
नहीं दिखा रुझान, घट सकता है ‘नोटा’
ये है नोटा- यदि कोई मतदाता किसी भी प्रत्याशी के पक्ष में मतदान नहीं करना चाहता है, तो वह नोटा दबा सकता है।
IMAGE CREDIT:पिछली बार चौथे स्थान पर-
पूर्व और पश्चिम में 2013 के विधानसभा चुनाव में नोटा चौथे स्थान पर रहा, लेकिन इन दोनों विधानसभाओं में नोटा ने चुनाव को प्रभावित किया। यहां भाजपा प्रत्याशी अंचल सोनकर को 67617 मत मिले थे, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी लखन घन्घोरिया को 66012 मत मिले। यहां भाजपा प्रत्याशी की जीत 1155 मतों से हुई। नोटा को 2761 मिले थे। पश्चिम विधानसभा में कांग्रेस प्रत्याशी तरुण भनोत को 62668 व भाजपा प्रत्याशी हरेंद्रजीत सिंह को 61745 मत मिले थे। तरुण ने 914 मतों से चुनाव जीता था। नोटा का आंकड़ा यहां से 3693 पर पहुंच गया था।
IMAGE CREDIT:सर्वाधिक सिहोरा, सबसे कम केंट-
पिछले विधानसभा चुनाव में सर्वाधिक नोटा का उपयोग किया गया था। यहां 4697 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया। दूसरे स्थान पर बरगी विधानसभा थी, यहां 3833 मतदाताओं ने इसका उपयोग किया। तीसरे स्थान पर पश्चिम था, जहां 3693 मतदाताओं ने इसका उपयोग किया। सबसे कम केंट विधानसभा के 2545 मतदाताओं ने नोटा दबाया था।
नोटा से चुनाव की दिशा क्या होगी, इसके नीति निर्धारित करनी चाहिए। पिछली बार कोई परिणाम सामने नहीं आया।
– हेमंत सक्सेना, मतदाता
पिछली बार के विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार नोटा का असर नहीं दिखा। नोटा के सभी पहलुओं से पर्दा उठाया जाए।
– आदित्य श्रीवास्तव, मतदाता