शिक्षा और रोजगार :पंकज पाठक

 

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पंकज पाठक

मंगल भारत : देश मे प्रचलित सारे धर्मशास्त्र रोजगार और शिक्षा की बातें करते हैं लेकिन हमारी सरकारें इस मुद्दे से बचती आई हैं.. रोजगार पर सरकारी मौन तब और खतरनाक हो जाता है जब भारत में 35 वर्ष से कम आयु के युवाओं की 66% जनसंख्या के तहत दुनिया में सबसे अधिक आबादी है जिसमें बेरोजगारी की दर रोज बढ़ रही है…पहली बार सत्ता में बैठे लोगों ने देश के साथ कुछ ऐसे प्रयोग किये जिससे एशिया में भारत सबसे बड़ा बेरोजगार बनकर उभरा..नोटबन्दी की मार से जिन संस्थानों में ताला लगा उनमें से ज्यादातर देश में रोजगार बांटने वाले संस्थान थे..मसलन भारत का टेलीकॉम सेक्टर 2015 तक सर्वादिक रोजगार देने वाला क्षेत्र था और सरकार की मनमानी आर्थिक नीतियों ने इस क्षेत्र को भी कंगाल बना दिया..!

वस्त्र उद्योग जो माध्यमवर्गीय परिवारों के लिए रोजगार पैदा कर रहा था वह जीएसटी की मार से खत्म हो गया..इस क्षेत्र में रोजगार तो गया ही, वस्त्र उद्योग के मालिक भी सड़क पर आ गये..! अब बेरोजगारी इस स्थान पर पहुँच गई है कि उत्तर प्रदेश के राज्य सचिवालय में 23 लाख पदों के लिए 36 लाख लोगों ने आवेदन किया था..आवेदकों में, 255 पी.एच.डी और  2 लाख से अधिक बी.टेक, बीएससी, एम.काम और एम.एससी जैसे डिग्री धारकों ने आवेदन किया था..यही हाल मध्य प्रदेश में पटवारियों की भर्ती में हुआ..9500 पदों के लिए साढ़े 12 लाख आवेदन हुए जिसमें कई पीएचडी धारी भी शामिल है..!

गौरतलब है कि जिन देशों में रोजगार की स्थिति नहीं सुधरी वहां अपराध और आतंकवाद में जबरदस्त इजाफा हुआ..! सरकार जिन समस्याओं से लड़ने की बात करती है उन सबका मूल धर्म नहीं बेरोजगारी है..!