कमलनाथ को कहिए कमिटमेंट नाथ

कांग्रेस के सामने जब भी चुनौतियां आईं कमलनाथ संकटमोचक बनकर उभरे। उन्होंने न केवल मध्यप्रदेश में कांग्रेस की वापसी और हिंदुत्व की अजेय प्रयोगशाला से भाजपा को सत्ता से बाहर करने की चुनौती स्वीकार की बल्कि मात्र 100 दिन में 15 साल से जमी सत्ता को उखाड़ फेंक एक बार फिर साबित किया कि उन्हें ‘टास्क मास्टर या कमिटमेंट नाथ’ क्यों कहते हैं?

मंगल भारत भोपाल:- लेखक मनीष द्विवेदी प्रबंध संपादक मंगल भारत राष्ट्रीय समाचार पत्रिका.


नाथ कहें या कमलनाथ… वे यथा नाम तथा वस्तु को चरितार्थ करते हैं, ऐसा मानने वालों में हमें सियासी गलियारों से लेकर अंतिम छोर के आदिवासी मजदूर बुधुआ जैसे हजारों लोग मिल जाएंगे, जिनका कभी न कभी कमलनाथ से सीधा संपर्क-संबंध स्थापित हुआ है। बताते हैं, कि वे जिससे भी रिश्ता जोड़ते हैं वह सदा के लिए होता है… और चाहे जितना कठिन टास्क हो या विरोधी हो अगर वे ठान लें तो उसे नाथ कर के ही मानते हैं… इसलिए उन्हें इनर सर्कल में ‘द नाथ’ भी कहा जाता है। कमलनाथ के ‘टास्क मास्टर’ होने की ख्याति उसी वक्त से बढऩे लगी थी जब उन्होंने इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस संगठन में कई महत्वपूर्ण काम किए। लक्ष्य को साधने की उनकी खूबी को पहचानते हुए उन्हें छिंदवाड़ा से चुनाव लडऩे के लिए भेजा गया, जिसमें जीत हासिल करके उन्होंने खुद को सिद्ध किया। कांग्रेस के सामने जब भी चुनौतियां आर्इं कमलनाथ संकटमोचक बनकर उभरे। वर्ष 2014 में पराजय के बाद कांग्रेस को लगातार हार का सामना करना पड़ा। भाजपा हर मोर्चे पर कांग्रेस को पीछे धकेलना चाहती थी। राज्यसभा चुनावों में कांग्रेस की राह रोकने के लिए भाजपा ने कई तरह की चालें चलीं। पर्याप्त संख्याबल न होने पर भी अपने प्रत्याशी उतारे। मध्यप्रदेश में भी भाजपा ने यह फार्मूला अपनाया। ऐसे वक्त में कमलनाथ ने कमान संभाली और विरोधियों की सारी चालें ध्वस्त कर विवेक तन्खा को राज्यसभा पहुंचाया। यहीं से कमलनाथ के मध्यप्रदेश में प्रवेश का रास्ता खुला। उन्होंने न केवल मध्यप्रदेश में कांग्रेस की वापसी और हिंदुत्व की अजेय प्रयोगशाला से भाजपा को सत्ता से बाहर करने की चुनौती स्वीकार की बल्कि मात्र 100 दिन में 15 साल से जमी सत्ता को उखाड़ फेंक एक बार फिर साबित किया कि उन्हें ‘टास्क मास्टर या कमिटमेंट नाथ’ क्यों कहते हैं? सत्ता परिवर्तन के बाद कमलनाथ ने न केवल प्रदेश की बेफिक्री के आलम में डूबी नौकरशाही को दुरुस्त किया बल्कि शपथ लेते ही वचन-पत्र में दिए गए वचनों को निभाने और आर्थिक तथा समााजिक दृष्टि से प्रदेश के लिए दूरगामी असर डालने वाले मामलों पर चर्चा शुरू की।
कमलनाथ ने जब प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला तब किसी को इस बात का गुमान भी नहीं था कि इतने अल्प समय में कमलनाथ 15 साल से जमी मजबूत संगठन वाली बीजेपी को इतनी सहजता से मात दे देंगे। खास तौर पर तब जबकि धार्मिक रूप से जनता को ध्रुवीकृत करने की कोशिशें की जा रही हों। चुनाव के निकट मंदिर-मस्जिद और आस्थाजन्य अन्य मुद्दों का शोर था। हालांकि, कमलनाथ खुद भगवान शंकर और हनुमान के परम भक्त हैं। छिंदवाड़ा में उन्होंने एक विशाल हनुमान मंदिर का निर्माण कराया है और कहा जाता है कि चुनाव के दौरान वे करीब आठ बार केदारनाथ के दर्शन करने भी गए। लेकिन सियासत में धर्म का तडक़ा लगाकर चुनाव जीतने के दौर में भी उन्होंने कभी इसे सार्वजनिक नहीं किया। अलबत्ता एक बार छिंदवाड़ा में हनुमान मंदिर बनवाने का जिक्र जरूर किया, जब उन पर व्यक्तिगत धार्मिक आक्षेप लगे। इन तमाम सियासी दांव-पेंच के बीच कमलनाथ ने जैसे-जैसे काम तेज किया विरोधियों के सामने भी यह साफ होता गया कि इस बार मुकाबले में वह कांग्रेस नहीं जिसे गुटों में बांटकर कर उसकी ताकत को सहजता से तोड़ा जा सकता है। कमलनाथ ने इसके लिए जिम्मेदारी दी, अपने सबसे नजदीकी और विश्वस्थ साथी दिग्विजय सिंह को… उन्होंने ने भी इसे दिल से निभाया। दिग्गी ने इसकी शुरुआत सपत्नीक नर्मदा तटों से की। लेकिन जिन रामेश्वर नीखरा को इस यात्रा में साथी चुना उनसे उनका मतभेद सर्ववदित था, लेकिन एक स्वप्न जिसमें उन्हें मां नर्मदा का साथ परिक्रमा का आदेश हुआ था उसके कारण साथ में लिया। दिग्विजय के इसी गुण ने उन्हें पूरी कांग्रेस को एकजुट करने में बड़ी मदद की जब वे पंगत-संगत द्वारा समन्वय पर निकले। ऐसा ही जोर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पूरे ग्वालियर-चंबल अंचल समेत प्रदेश के कई इलाकों में लगा दिया। इतना ही नहीं कमलनाथ का नाम भर सुन कर हजारों ऐसे कांग्रेसी घरों से निकल कर सडक़ पर साथ आ गए जिन्होंने लगातार तीन बार की हार के बाद सियासत से तौबा कर ली थी। जैसे-जैसे दिन निकलते गए और चुनाव नजदीक आए कांग्रेस लोगों की पसंद बनती गई और 2014 के चुनाव के मुकाबले उसके वोटों का प्रतिशत 4.6 तक बढ़ गया और कुल वोटर्स के आधार पर ग्रोथ रेट सात फीसदी से भी ऊपर पहुंच गया जो कांग्रेस की जीत का आधार बना। अब जबकि कमलनाथ वचन-पत्र के माध्यम से बकायदा वचन दे कर सत्ता में आए हैं तो लोग यह तय मानकर चल रहे हैं कि वे सारे काम समय सीमा ने पूरे करा कर ही दम लेंगे। बहुत संभव है कि वह ब्यूरोक्रेसी को 100 दिनों का लक्ष्य दें और उसमें वचनपत्र के अनुसार अपनी प्राथमिकताएं निर्धारित कर दें। अगर कोई बहुत बड़ी सियासी या अन्य बाधा नहीं आती है तो तय है कि प्रदेश की प्रगति में और तेजी आएगी। क्योंकि नाथ का मूल स्वभाव है वह बहुत धैर्य और ध्यान से सबकी सुनते हैं और फिर न्यायोचित तरीके से वही निर्णय लेते हैं जिसमें सभी का अधिकतम भला हो सके।