नई दिल्ली आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को 10 पर्सेंट आरक्षण देने के लिए संविधान में संशोधन वाले विधेयक का प्रपोजल सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने केवल एक दिन में तैयार किया था। इसके बारे में केंद्रीय मंत्रियों को भी जानकारी नहीं दी गई थी। माना जा रहा है कि तीन राज्यों की विधानसभा चुनावों में हार के बाद अपने वोट बैंक को खुश करने के लिए मोदी सरकार ने यह फैसला किया।
1 दिन में बनाया कैबिनेट नोट
सूत्रों ने बताया कि सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने सोमवार को मीटिंग के लिए कैबिनेट नोट एक दिन में बनाया था। इसे केंद्रीय मंत्रियों को भी नहीं दिखाया गया था। एक वरिष्ठ मंत्री ने ईटी को बताया, ‘सरकार संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत करने की योजना नहीं बना रही थी। फैसला उच्चतम स्तर पर लिया गया और मंत्रालय को एक प्रपोजल तैयार करने के लिए कहा गया था।’
कानून मंत्रालय कर रहा है सुधार
मंत्रालय ने प्रपोजल तैयार करने के लिए ‘आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों’ की परिभाषा के लिए पहले से दिए गए मापदंड का इस्तेमाल किया। हालांकि, मंत्रिमंडल से इसे स्वीकृति मिल गई है, लेकिन अभी कानून मंत्रालय संविधान में संशोधन को लेकर इसमें कुछ सुधार कर रहा है।
अपर कास्ट को खुश करने की कवायद?
इस विधेयक के साथ मोदी सरकार ने ऊपरी जातियों के अपने मुख्य वोटबैंक को खुश करने की कोशिश की है। इसके साथ ही उसने प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस से इस मुद्दे पर बढ़त भी ले ली है। कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान सवर्णों से संबंधित आरक्षण पर सुझाव देने के लिए जनरल एस आर सिन्हो की अगुवाई में 2006 में एक कमेटी बनाई गई थी। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट 2010 में दी थी। हालांकि, इसके बाद सरकारों ने रिपोर्ट पर कोई कदम नहीं उठाया था।
BJP के आंतरिक सर्वेक्षण भी इस बिल का कारण
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में हार के बाद बीजेपी सरकार को इस तरह का कदम उठाने की जरूरत महसूस हुई थी। बीजेपी के आंतरिक सर्वेक्षणों से पता चला है कि पिछड़े वर्गों के लिए राष्ट्रीय आयोग को संविधान में संशोधन के जरिए संवैधानिक दर्जा देने का मतदाताओं पर कोई प्रभाव नहीं हुआ है।
विधानसभा चुनाव परिणाम के कारण यह कदम: सूत्र
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी को समर्थन देते रहे ओबीसी को इस बार कांग्रेस ने अपने पक्ष में करने में सफलता हासिल की और इन दोनों राज्यों में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। सरकार के एक मंत्री ने कहा, ‘आर्थिक तौर पर पिछड़े सवर्णों के लिए आरक्षण के प्रस्ताव पर सिन्हो कमेटी के 2010 में रिपोर्ट देने के बाद से बात हो रही थी, लेकिन इसे लेकर अभी कदम उठाने का कारण हाल के विधानसभा चुनावों के परिणाम थे। हमें अपने कोर वोटरों को फिर से साथ लाने की जरूरत है।’