साल 2008 में एक फिल्म आई थी, अ वेडनसडे। इसमें नसीरुद्दीन शाह ने एक ऐसे सामान्य शख्स का अभिनय किया था, जो सिस्टम से नाराज रहता है और इसे सुधारने का असामान्य और अराजक प्रयास करता है। इस दौरान उनकी फोन पर एक पुलिस ऑफिसर प्रकाश राठौर से बात होती है। जब उनसे पुलिस ऑफिसर यह यह पूछते हैं कि आप हिन्दू हो या मुसलमान। तब यह सामान्य आदमी जवाब देता है कि मैं कामन मैन हूं, जिसका कोई धर्म नहीं
होता। मैं वह सामान्य इंसान हूं जो अपनी दुकान का नाम रखते हुए यह अवश्य सोचता है कि क्या रखूं, दंगों के वक्त नाम देखकर दुकानें अक्सर जला दी जाती हैं। दरअसल नसीरुद्दीन शाह इस समय अपने कथित बयानों को लेकर चर्चा में हंै। शाह ने देश के माहौल पर सवाल उठाए हैं। शाह ने कहा, हमारे आजाद मुल्क का संविधान 26 नवंबर-1949 को लागू हुआ। शुरू ही के सत्रों में उसके उसूल लागू कर दिए गए। जिनका मकसद यह था कि देश के हर नागरिक को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक न्याय मिल सके। सोचने की, बोलने की और किसी भी धर्म को मानने की और किसी भी तरह की इबादत करने की आजादी हो।
‘नसीरुद्दीन ने आगे कहा कि हर इंसान को बराबर समझा जाए। हर इंसान की जान की इज्जत की जाए। हमारे मुल्क में जो लोग गरीबों के घरों को, जमीनों को और रोजगार को तबाह होने से बचाने की कोशिश करते हैं, करप्शन के खिलाफ आवाज बुलंद करते हैं, दरअसल यह लोग हमारे उसी संविधान की रखवाली करते हैं। हालात यह हैं कि अब हक के लिए आवाज उठाने वाले लोग जेलों में बंद हैं। मजहब के नाम पर नफरत की दीवारें खड़ी की जा रही हैं। मासूमों तक का अब कत्ल किया जा रहा है। नसीरुद्दीन ने कहा कि पूरे मुल्क में नफरत और जुल्म का बेखौफ नाच जारी है और इन सबके खिलाफ आवाज उठाने वालों के दफ्तरों पर रेड डालकर, लाइसेंस कैंसल करके, उनके बैंक अकाउंट फ्रीज करके उन्हें खामोश किया जा रहा है, ताकि वो सच बोलने से बाज आ जाएं। हमारे संविधान की क्या यही मंजिल है। क्या हमने ऐसे ही मुल्क का ख्वाब देखा था, जहां मतभेद की कोई गुंजाइश न हो। जहां सिर्फ अमीर और ताकतवर की ही आवाज सुनी जाए। जहां गरीब और कमजोर को हमेशा कुचला जाए। जहां कानून था वहां अब अंधेरा है।
इसके पहले नसीर ने कहा था कि इस वक्त खराब माहौल है। आज देश में गाय की जिंदगी एक पुलिस अफसर की जान से ज्यादा हो गई है। उन्होंने कहा कि मुझे देश में डर नहीं लगता लेकिन गुस्सा आता है। अपने बच्चों के लिए फिक्र होती है क्योंकि उनका मजहब ही नहीं है। शाह के इस बयान के बाद से लगातार बयानबाजी जारी है। उन्हें पाकिस्तान का टिकट बुक करा दिया गया और उनके विचारों को देश के प्रति अहसान फरामोशी की तरह देखा जा रहा है। नसीरुद्दीन शाह इस देश के ऐसे नामचीन अभिनेता हंै जो परिचय के मोहताज नहीं हैं। वे दुनिया भर के उच्च कोटि के कलाकारों में शुमार किए जाते हैं। शाह को साल 1987 में पद्म श्री और 2003 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है। साल 1979 में फिल्म ‘स्पर्शÓ और 1984 में ‘पारÓ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। 2006 में फिल्म ‘इकबालÓ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।1981 में फिल्म ‘आक्रोशÓ, 1982 में फिल्म ‘चक्रÓ व 1984 में ‘मासूमÓ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्मफेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया। वर्ष 2000 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी अवार्ड से सम्मानित किया गया।
देश में इतने सम्मानों से नवाजे जाने वाले कलाकार के किसी बयां का मतलब बेशक कुछ तो मायने रखता है। उनके दर्द की पड़ताल करते हुए हमे यह समझना पड़ेगा कि हम आधुनिक भारत की तुलना प्रगतिशील देशों से करते हैं या हमारी नजरें पाकिस्तान और बांग्लादेश पर होती है। भारत में मजहब यदि कोई मसला नहीं है तो फिर देश के हालात पर हमें गौर करना होगा। 2018 में पश्चिम बंगाल में आसनसोल में रामनवमी के जुलूस के बाद भड़की हिंसा और तनाव के दौरान कई घरों और दुकानों को आग लगा दी गई। यहां के हावड़ा में स्थित एक हिन्दू मंदिर में की गई तोड़ फोड़ कर वहां रखी देवी-देवताओं की तस्वीरों पर कीचड़ भी लगाया गया। इसके साथ ही बदमाशों ने वहां रखे हुए त्रिशूल को भी तोड़ दिया था। मुस्लिम बाहुल्य इस इलाके में इस घटना को तब अंजाम दिया गया जब यहां उर्स मनाया जा रहा था। जिन दुकानों और मकानों को आग के हवाले किया गया, वे हिंदुओं के थे।
2018 में ही झारखंड के रांची के पास एक गांव मांडर कस्बे में नाच-गाने से मना करने पर भीड़ ने कथित तौर पर एक मुस्लिम युवक की पीट-पीट कर हत्या कर दी थी। 19 साल का वसीम अंसारी हत्या के दो दिन पहले ही वो पुणे से मजदूरी कर लौटा था और उसका गुनाह यह था कि उसने एक उत्सव के दौरान भीड़ को कब्रिस्तान के पास नाचने गाने से मना किया तो हत्या कर दी गई। नसीरुद्दीन भारतीय हैं अत: हम उन्हें रोक सकते हैं लेकिन विदेशों में भारत की छवि एसी घटनाओं से किस तरह खराब हो रही है, यह जानना भी बेहद जरूरी है। साल 2018 में ही अलवर जिले के रामगढ़ थाना क्षेत्र में कथित गोरक्षकों ने रकबर की बुरी तरह पिटाई की थी, जिसके बाद वह गंभीर रूप से घायल हो गया था। यह बात भी सामने आई कि रकबर को अस्पताल ले जाने में पुलिस ने कोताही बरती। पुलिस कोई तीन घंटे बाद रकबर को पास के सरकारी अस्पताल ले गई, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। द गार्जियन ने इससे जुड़ी खबर को शीर्षक दिया था ‘भीड़ के हमले में घायल शख्स की मदद से पहले भारतीय पुलिस ने चाय पी।Ó जिस रकबर की हत्या की गई थी वह 28 साल का था, उसकी पत्नी गर्भवती थी। रकबर के पिता सुलेमान मूलत: उनका दूध बेचने का ही काम करते हैं। रकबर के पास तीन गाय पहले से मौजूद थीं और वो अपने काम को बढ़ाने के लिए दो और दूधारू गाय खरीदने अलवर गया था। पूरे मेवात के इलाके में जमीनी जलस्तर काफी नीचे है, सदियों से यहां के लोगों की आजीविका का एक ही सहारा है – गोपालन और दूध का व्यवसाय। हिंदुओं से ज्यादा मेवात के मुसलमान गोपालन करते हैं और गोधन का संरक्षण भी। रकबर की हत्या के बाद इस इलाके का भाईचारा कितना प्रभावित हुआ होगा, अंदाजा है।
अलीमुद्दीन अंसारी को गो तस्करी के शक में हत्या और इसके बाद केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा द्वारा अलीमुद्दीन अंसारी की हत्या के अभियुक्तों को माला पहनाने की खबर द न्यूयार्क टाइम्स में छपी थी। इस खबर का शीर्षक दिया गया, नफरत के नशे में भारतीय नेता ने जान लेने वाली भीड़ का सम्मान? इसके पहले पूर्वोत्तर के राज्य मेघालय के शिलांग में वहां बसने वाले सिखों को निशाना बनाने की घटनाओं को भी देखा गया था। कश्मीर के पत्रकार शुजात बुखारी की आतंकियों द्वारा हत्या कर दी गई। इन सबके बीच भीमा कोरेगांव की घटनाओं को दरकिनार नहीं किया जा सकता। भीड़ को भड़काने वाले सियासी एकबोटे, खालिद और जिग्नेश खुली हवा में सांस ले रहे हैं। आखिर हम किस घटना को नजरअंदाज करें। यदि हम सौ फीसदी देशभक्त होने का दावा करते है तो नसीरुद्दीन शाह भी देशभक्त हैं और उन्होंने यह साबित भी किया है। वे सही मायने में और पारिवारिक तौर पर भी धर्मनिरपेक्ष हैं जो मुल्क की असली पहचान है। नसीरुद्दीन विदेश जाकर भी बस सकते हंै, लेकिन मुल्क के हालात पर जो उन्होंने दर्द बयान किया है उसकी आहट आप देश के किसी भी इलाके में महसूस कर सकते है। लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं हो जाता कि वे पूरे सिस्टम को ही कटघरे मेें खड़ा कर दें।