नई दिल्ली संविधान के 124वें संशोधन के लिए राज्यसभा में जोरदार बहस के बाद बिल पास हो गया है। इस संशोधन के बाद आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण देने का रास्ता साफ हो जाएगा। बुधवार को ही इसे राज्यसभा की मंजूरी मिल गई है। इसके बाद यह विधेयक राष्ट्रपति के पास सीधे मंजूरी के लिए जाएगा। राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद राज्य इसके आधार पर आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को शैक्षणिक संस्थानों और नौकरियों में 10 प्रतिशत तक आरक्षण दे सकेंगे।
केन्द्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने मंगलवार को लोकसभा बोलते हुए स्पष्ट किया था कि इस संविधान संशोधन को दोनों सदनों की मंजूरी मिलने के बाद राज्यों के पास मंजूरी के लिए भेजे जाने की आवश्यकता नहीं है। बुधवार 9 जनवरी को कांग्रेस के राज्यसभा सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने भी इसे दोहराया।
सिंघवी ने कहा कि इस विधेयक को जीएसटी की तरह राज्यों की मंजूरी के लिए भेजे जाने की जरूरत नहीं है। हालांकि सिंघवी ने माना कि इस बिल में संविधान की मूलभूत संरचना से खिलवाड़ किया गया है।
बिल संविधान के समानता के अधिकार, समान अवसर देने के अधिकार और हर नागरिक को उसके अधिकार के तहत उसे सम्मान देने के अधिकार का उल्लंघन करता है। सिंघवी ने माना कि इस विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद उच्चतम न्यायालय में चुनौती मिल सकती है और वहां इसके ठहर पाने की संभावना काफी कम है।
अभिषेक मनु सिंघवी की राय का समर्थन करते हुए कपिल सिब्बल ने भी कहा कि यह संविधान की मूल अवधारणा के खिलाफ है। कपिल सिब्बल ने इस तरह से आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान नहीं किया जा सकता।
हालांकि कांग्रेस इस बिल का समर्थन कर रही है। बसपा के सतीश चंद्र मिश्रा ने भी सदन में चर्चा के दौरान इसे संविधान की मूल भूत संरचना से खिलवाड़ बताया। सतीश चंद्र मिश्रा ने इसे सवर्णों के साथ फ्रॉड बताया।
दोनों विधि वित्ताओं ने भी माना कि राज्य सभा की मंजूरी मिलने के बाद यह विधेयक सीधे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए जाएगा। प्रो. राम गोपाल यादव ने भी कहा कि इस विधेयक पर कोई जनहित याचिका दायर होने के बाद सबकुछ धरा का धरा रह जाएगा।