45 दिन में किसानों से 174 करोड़ रुपए की अवैध वसूली
किसानों का कर्जा माफ करने की घोषणा पर सवार होकर मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी है। कई साल तक लगातार कृषि कर्मण पुरस्कार जीतने वाली शिवराज सरकार को भी इस कर्जा माफी के गणित ने उलझाकर रख दिया। हालांकि, किसानों की समस्या खत्म नहीं हो रही। अब खरीद केंद्रों की आड़ में हो रही अवैध वसूली ने किसानों को बदहाल कर रखा है। एक तो लागत निकालना मुश्किल हो रहा है, उस पर व्यापारियों और अफसरों की मिलीभगत के चलते किसानों को एमएसपी से वंचित किया जा रहा है। क्वालिटी पास कराने से लेकर तुलाई करने तक में रिश्वतखोरी की जा रही है। शिकायत कर दी या ऊपर अफसर से संपर्क किया तो हालात और भी खराब। तुलाई के लिए चार-पांच दिन का इंतजार करवा देंगे बिचौलिये आपको…
मंगल भारत भोपाल । सरकारी आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश में पिछले एक दशक से अनाज की बम्पर पैदावार हो रही है। किसानों की मेहनत का फल है कि मध्य प्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य है जिसे खाद्यान्न उत्पादन में लगातार पांच बार कृषि कर्मण अवार्ड मिल चुका है। इसके बावजूद प्रदेश में किसान फटेहाल है। जब इसकी पड़ताल की तो यह तथ्य सामने आया कि किसानों से हर स्तर पर अवैध वसूली होती है। खासकर, फसलों की बिक्री के दौरान खरीदी केंद्रों पर किसानों से जमकर अवैध वसूली होती है। इस बार खरीफ फसलों की बिक्री के दौरान धान बेचने वाले किसानों से ही 45 दिन के अंदर करीब 174 करोड़ रुपए की अवैध वसूली की गई है।
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में धान, दलहन, तिलहन, ज्वार एवं बाजरा उपार्जन के लिए करीब 28 लाख किसानों का पंजीयन हुआ है। दलहन, तिलहन की खरीदी के लिए 678, ज्वार-बाजरा के लिए 148 और धान की खरीदी के लिए 855 उपार्जन केंद्र स्थापित किए गए हैं। इन केंद्रों पर 15 नवंबर 2018 से 15 जनवरी 2019 का समय धान खरीदी के लिए निश्चित किया गया है। अब धान खरीदी अंतिम चरण में है, लेकिन लाखों किसान ऐसे हैं जो अपने धान की बिक्री नहीं कर पाए हैं। इसकी वजह है बिक्री केंद्रों पर समितियों और दलालों की मनमानी।
सरकार मेहरबान लेकिन व्यवस्था बदहाल: मप्र में किसानों का मामला कितना नाजुक और संवेदनशील है, यह इसी से पता चलता है कि कमलनाथ ने मुख्यमंत्री बनते ही महज आधे घंटे में सबसे पहले मप्र के 34 लाख किसानों का 31 मार्च 2018 तक का लगभग 38 हजार करोड़ के कर्जमाफी के आदेश पर दस्तखत किए। सरकार की इस मेहरबानी से किसान खुश हैं। लेकिन व्यवस्था बदहाल है। इस बदहाल व्यवस्था के कारण किसान खुशहाल नहीं हो पा रहा है।
दरअसल, भाजपा शासनकाल में प्रदेश में नंबर वन बनने की प्रवृति को बढ़ावा दिया गया। असर यह हुआ कि अधिकारी आंकड़ेबाजी पर उतर गए। मंडियों और खरीदी केंद्रों पर अधिक से अधिक अनाज खरीदने की होड़ लग गई। इस कारण बिचौलियों की पौ-बारह हो गई। अधिकांश खरीदी केंद्रों पर बिना बिचौलिए के कोई भी फसल नहीं खरीदी जाती है। इसका प्रभाव यह हुआ कि किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। फसल की बंपर पैदावार के कारण कीमतों में नरमी से कृषि क्षेत्र के लिए 2018 अच्छा नहीं रहा, लेकिन नए साल 2019 में सरकारों का इस क्षेत्र पर विशेष जोर होगा। लेकिन इसके बाद भी किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत हो पाएगी इसकी कोई गारंटी नहीं है क्योंकि किसानों की उपज को खरीदने के लिए स्थापित खरीदी केंद्र अवैध वसूली का अड्डा बन गए हैं।
इस बार धान की फसल उत्पादित करने वाले किसानों को समितियों की मनमानी का सबसे अधिक शिकार होना पड़ा है। उल्लेखनीय है कि इस बार सरकार ने धान खरीदी का समर्थन मूल्य पिछली बार की अपेक्षा 200 रुपए बढ़ाकर 1750 रुपए कर दिया गया है। यह सामान्य धान पर मिलेगा। इसके अलावा ए ग्रेड धान पर भी 180 रुपए समर्थन मूल्य बढ़ाने का निर्णय लिया गया है। किसानों को धान का उचित मूल्य भी नहीं मिल रहा है। ऊपर से अवैध वसूली का भी शिकार होना पड़ रहा है।
किसानों के कमीशन से मालामाल समितियां: मध्य प्रदेश किसान खेत मजदूर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष (कार्यवाहक) केदार शंकर सिरोही कहते हैं कि किसानों की उपज खरीदकर उन्हें समर्थन मूल्य देने के लिए खोले गए खरीदी केंद्र अवैध वसूली का अड्डा बन चुके हैं। कहने के लिए खरीदी केंद्रों में किसानों को एक पैसा नहीं देना होता है। यहां ट्रॉली से अनाज उताने से लेकर तौल कराने तक हर सुविधा मुफ्त है। इसका भुगतान प्रदेश सरकार समितियों को करती है। इसके बावजूद खरीदी केंद्रों में व्याप्त तानाशाही के चलते किसानों को धान की क्वालिटी पास कराने, अनाज उतारने तथा तौल से कम्प्यूटर में इंट्री कराने तक हर कार्य के लिए कमीशन देना पड़ रहा है। कई वर्षों से किसान और किसान नेता खरीदी केंद्रों पर चल रही अवैध वसूली की शिकायत अफसरों से करते आ रहे हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है। सतना के कुछ किसानों की शिकायत के बाद 25 दिसंबर को जिले के नवागत कलेक्टर सतेंद्र सिंह ने एक दिन में एक दर्जन धान खरीदी केंद्रों का निरीक्षण किया। कलेक्टर के निरीक्षण की खबर लीक होने के कारण सारी व्यवस्था दुरूस्त कर दी गई। हालांकि, इससे किसानों में उम्मीद जगी थी कि अब उनकी धान सहजता से बिक जाएगी। धान बेचने के लिए समिति कर्मचारियों की ंंंंंंमन्नत नहीं करनी पड़ेगी। लेकिन, हकीकत यह है कि कलेक्टर के निरीक्षण के अगले दिन से ही खरीदी केंद्रों में समिति कर्मचारियों की मनमानी फिर जारी हो गई। सतना जिले के अबेर में धान बेचने आए किसानों ने बताया कि यहां फसल बेचने का मतलब लूटना है। लेकिन क्या करें? फसल बेचने से जो रकम मिलेगी उसी से आगे का काम करना है। किसानों ने बताया कि केवल सतना में ही नहीं बल्कि प्रदेशभर में खरीदी केंद्रों पर बिक्री के पहले की प्रक्रिया के रेट लगभग फिक्स है। धान पास करवाई एक हजार रुपए ट्रॉली समिति प्रबंधक को, 5 रुपए बोरा तुलाई तथा तौल के बाद वजन कम्प्यूटर में फीड कराना व तौल पर्ची पाने के लिए 200 रुपए ऑपरेटर को देना अनिवार्य है। इससे कम में यहां धान नहीं बिकती।
ये है अवैध वसूली का गणित
धान पास कराई 1,000 रुपए
फीडिंग के 200 रुपए
चाय-नाश्ता 20 से 30 रुपए
बोरा तुलाई 5 रुपए
हर काम के दाम
सतना जिले के अबेर खरीदी केंद्र के किसानों के आरोपों की पुष्टि के लिए खरीदी की निगरानी कर रहे समिति प्रबंधक के पुत्र देवेंद्र सिंह से चर्चा की गई तो उसने कहा कि धान ले आइए जितना सब देते हैं दे देना। धान बिक जाएगी। उसने बताया कि तुलाई पांच रुपए क्विंटल अलग से लगेगी। केंद्रों में किसान किस प्रकार लूट रहा, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण तब मिला जब कम्प्यूटर कक्ष में ऑपरेटर वजन चढ़ाने के बदले एक किसान से 200 रुपए लेते रंगे हाथ पकड़ा गया। खरीदी केंद्रों से जुड़े जानकारों का दावा है कि समितियां किसानों से अनाज खरीदी के नाम पर हर साल कमीशन के रूप में करोड़ों रुपए की अवैध वसूली करती हैं। खरीदी केंद्रों में किसान खुलेआम लुट रहा है। उसे समितियों में हर काम का पैसा देना पड़ता है। और प्रशासन है कि सबकुछ जानते हुए भी इससे अनजान बना है। अकेले सतना जिले में इस बार 6 करोड़ की अवैध वसूली किसानों से की गई है। गौरतलब है कि खरीदी केंद्रों में किसानों को किसी प्रकार की परेशानी न हो, केंद्र में रात न गुजारनी पड़े, इसके लिए सरकार ने पंजीकृत किसानों के लिए मैसेज व्यवस्था लागू की थी। एक सप्ताह पूर्व किसान के मोबाइल में मैसेज जाता है। उसमें उसका अनाज किस दिन खरीदा जाएगा इसकी जानकारी होती है। लेकिन अधिकांश जिलों के खरीदी केंद्रों में मैसेज सिस्टम लागू नहीं है। केंद्रों में हर काम का पैसा फिक्स है। जो किसान उसका पालन करते हैं उनकी धान की तौल हो जाती है जो आनाकानी करते हैं उनको इंतजार कराया जाता है। खरीदी केंद्रों से जुड़े सूत्रों के मुताबिक पहले खरीदी शुरू करने में जानबूझ कर देरी की जाती है। इसके बाद खरीदी प्रारंभ होने पर केंद्र में अनाज डम्प कराया जाता है। इसका फायदा उठाते हुए समिति कर्मचारी किसानों से जल्दी धान तौलने के चक्कर में प्रति ट्रॉली 1,500 से दो हजार तक कमीशन ले लेते हैं।
सौदा तय होने पर ही होती है तौल
चाहे अबेर जैसे खरीदी केंद्र्र हो या अधिकांश कृषि उपज मंडियों में धान की खरीदी कर रही क्षेत्रीय विपणन समितियां, इनमें धान खरीदी प्रभारी से लेन-देन का सौदा तय होने के बाद ही धान की तौल होती है। किसानों ने बताया कि जो किसान पैसा देने से मना करते हैं, उनकी धान को फेल कर दिया जाता है। उन्होंने कहा कि कोई सुनवाई नहीं होती इसलिए धान बेचना है तो पैसा देना हमारी मजबूरी है। सतना मंडी स्थित खरीदी केंद्र में धान बेचने आए किसान ने बताया कि चार दिन पहले एक ट्रॉली धान लेकर आए थे। क्वालिटी पास कराने के लिए पैसा न देने पड़े, इसलिए एक अधिकारी से प्रबंधक को फोन लगवा दिया था। परिणाम यह रहा कि उसने तीन दिन तक तौल नहीं कराई। यह धमकी भी दी कि सिफारिश से कुछ नहीं होगा। धान बेचना है तो पैसा देना पड़ेगा। नहीं तो दुकान में ले जाकर बेच दो। पिछली बार तीन दिन रतजगा करना पड़ा और इस बार एक हजार दे दिया तो छह घंटे में धान की तौल हो गई। धान खरीदी केंद्रों में किसानों के साथ खुलेआम लूट हो रही है। क्वालिटी पास कराने से लेकर तौल कराने तक हर काम के नकद पैसे देने पड़ रहे हैं, इसके बाद भी किसान शिकायत क्यों नहीं करते, इस पर किसानों ने बताया कि हमें हर छह माह में अनाज बेचना है। खाद-बीज भी इसी से मिलता है। यदि एक बार शिकायत करते हैं तो प्रबंधक बार-बार परेशान करता है। इसलिए लुटने के बाद भी किसान मौन रहते हैं। यदि प्रशासन अवैध वसूली कर रही समितियों पर कार्रवाई करना चाहता है तो किसानों का नाम उजागर किए बिना उनके बयान दर्ज करे।
मकडज़ाल में किसानों से लूट
राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवकुमार शर्मा कक्काजी कहते हैं की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने किसान हितैषी होने का ढोंग रचकर प्रदेश में ऐसी व्यवस्था को जन्म दिया है जिसमें किसानों का भरपूर शोषण हुआ है। खरीदी केंद्रों में फसल खरीदी के नाम पर समिति प्रबंधकों, सर्वेयरों द्वारा बिछाए गए मकडज़ाल में किसानों से लूट की जा रही है। लेकिन उपज तुलवाने के चक्कर में किसान कुछ नहीं कर पा रहा है। प्रदेश में किसानों से खरीदी केंद्रों पर अवैध वसुली का असर यह देखने को मिला कि दमोह जिले में बांदकपुर, टिकरी पिपरिया, गुंजी नोनपानी, बालाकोट में 15 नवंबर से शुरू होने वाली धान खरीदी 25 दिसंबर तक चालू नहीं हो पाई। वहीं जिले में जबेरा के दो विपणन केंद्रों सहित 35 केंद्रों में चल रही धान खरीदी में किसानों के साथ जमकर वसूली का खेल चल रहा है। इन उपार्जन केंद्रों में धान खरीदी के नाम पर समिति प्रबंधकों, सर्वेयरों द्वारा बिछाए गए मकडज़ाल में किसानों से लूट की जा रही है। लेकिन उपज तुलवाने के चक्कर में किसान कुछ भी नहीं कर पा रहा है। हालात यह है कि किसानों से अवैध वसूली के चलते अभाना समिति प्रबंधक को सस्पेंड करने के बाद भी उपार्जन केंद्रों पर किसानों से हडब्बा लगाने पल्लेदारी चार्ज के नाम पर प्रति क्विंटल 25 रूपए की वसूली की जा रही है। पल्लेदारों के द्वारा किसान की तौल पर्ची फीडिंग पर देने के नाम से अलग से सरचार्ज वसूला जा रहा है। वहीं किसान की भर्ती की निर्धारित मात्रा 40 किलो 700 ग्राम की जगह 41 किलो 200 ग्राम की भर्ती की जा रही है। किसान की एक क्विंटल धान की खरीदी पर एक किलो अधिक धान ली जा रही है। मध्य प्रदेश किसान खेत मजदूर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष (कार्यवाहक) केदार शंकर सिरोही कहते हैं कि इस बार धान उपार्जन केंद्रों में सर्वेयर रखने की जो नवीन व्यवस्था की गई है। उसमें खरीदी केंद्र, समिति प्रबंधकों द्वारा समिति के ही अस्थायी कर्मचारी जूनियर समिति प्रबंधकों, रिश्तेदारों को रखा गया है। जो अपना खर्चा लाभ कमाने के चक्कर में केंद्र पर रहते हुए धान का मानक स्तर चेक करने के नाम पर किसानों की उपज के ढेर पर से 5 किलो तक धान पन्नियों में भरकर रख लेते हैं। जिससे यह बात सामने आ रही है कि सर्वेयरों द्वारा किसानों से जमकर वसूली की जा रही है। किसान गोपाल सिंह, ज्ञानेंद्र सिंह ने बताया कि विपणन खरीदी केंद्र जबेरा में जूनियर समिति प्रबंधक रामसिंह को सर्वेयर नियुक्त किया गया है। जो किसानों से मानक स्तर की जांच के नाम पर 5 किलो धान पन्नियों में भरकर ले रहा है। किसानों से सेंपल के नाम पर यह खेल जबेरा, अभाना, सिंगपुर, सिंग्रामपुर, पोंडी मानगढ़, नोहटा, घाना मैली सहित अधिकांश केंद्रों में चल रहा है। फील्ड अधिकारी बृजेंद्र शर्मा का कहना है कि बांदकपुर समिति के पास धान खरीदी के लिए जगह नहीं हैं इसलिए खरीदी में विलंब हुआ है। यदि किसान केंद्रों पर साफ माल लेकर ढेर लगाता है तो कोई राशि नहीं लगती है। धान की सफाई के लिए हड़म्बा का चार्ज समितियों के द्वारा नहीं लिया जाता। यह किसान की धान की सफाई के लिए प्राइवेट तौर पर रखा जाता है, जिसका चार्ज किसान को लगता है। यदि सर्वेयर के द्वारा किसानों से धान ली जा रही तो गलत है जांच करवाते हैं।
तुलावट से लेकर तुलाई तक अवैध वसूली
प्रदेश के खरीदी केंद्रों पर किसानों से हर स्तर पर अवैध वसूली हो रही है। बुरहानपुर मंडी में उपज बेचने आए किसानों का आरोप है कि तुलावट से लेकर तुलाई तक अवैध वसूली की जा रही है। उनका कहना है कि यह खेल एक दिन से नहीं चल रहा है, जो मंडी के अफसरों को नहीं पता, बल्कि इसकी जानकारी होने के बाद भी अफसर इस पर कोई कार्रवाई नहीं करते। क्योंकि इनका भी इसमें सांठ-गांठ बनी रहती है। किसानों का कहना है कि कई बार शिकायत की है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती न ही अवैध वसूली बंद होती है। इसलिए अब हम बिना बोले ही रुपए दे देते हैं। मंडी के मुख्य गेट पर लगे तौल-कांटे पर ट्रॉली से भरे अनाज की तुलाई करने पर 18 रुपए और दो रुपए प्रवेश शुल्क का चार्ज लेना चाहिए। लेकिन यहां पर 30 रुपए लिए जा रहे हैं। बड़ी बात यह है कि किसानों को किसी प्रकार की रसीद तक नहीं दी जाती। रसीद देते भी हैं तो इसमें केवल अनाज और गाड़ी का वजन रहता है। रुपए का कोई उल्लेख नहीं रहता। मंडी में व्यापारी अनाज की बोली लगाने के बाद तुलाई की बारी आती है। जहां तुलावट अनाज शेड में ही इसकी तुलाई करता है। मंडी के नियम अनुसार इसके कोई रुपए नहीं लिए जाना चाहिए। तुलावट के लिए प्रत्येक किसान से 20 रुपए की वसूली करते हैं। किसानों का कहना है कि कहां 10-20 रुपए के चक्कर में इनकार या विरोध करें। वे रुपए लेकर घर जाने की जल्दी में रहते हैं।
8 लाख रुपए अतिरिक्त वसूली
रीवा जिले में धान खरीदी केंद्रों पर किसानों से अब तक तौल के नाम पर आठ लाख रुपए से अधिक अतिरिक्त चार्ज वसूल कर लिया गया है। रीवा जिले की करहिया मंडी परिसर में स्थित चोरहटा केंद्र्र पर धान की तौल करने वाले किसान पुष्पेन्द्र सिंह ने अधिकारियों को शिकायत की है कि केंद्र पर तौल के नाम पर 12 रुपए प्रति क्विंटल चार्ज लिया जा रहा है। कई किसानों ने बताया कि केंद्रों पर ट्रैक्टर-ट्राली से धान की उतरवाई किसान स्वयं दे रहा है। इसके बावजूद अतिरिक्त चार्ज लिया जा रहा है। बहुरीबंाधी केंद्र पर तौल कराने पहुंचे कई अन्य किसानों ने बताया कि पड़ोसी जिले सतना में किसानों से तौल के नाम पर एक रुपए नहीं लिया जा रहा है। लेकिन, रीवा में किसानों से तौलाई के नाम पर पैसे वसूल किए जा रहे हैं। मनगवां केंद्र पर कई किसानों ने एसडीएम कार्यालय में शिकायत की है कि कृषि मंडी परिसर में स्थित दो खरीदी केंद्रों पर 2.50 रुपए प्रति बोरी की दर से तौल के नाम पर पैसे लिए जा रहे हैं। इसके अलावा प्रति बोरी में 40 किलो के बजाए 41 किलो धान का वजन किया जा रहा है। केंद्र प्रबंधकों की मनमानी से किसानों में असंतोष है। जिले में अब तक 67 हजार क्विंटल से अधिक की तौल हो चुकी है। अगर प्रति क्विंटल 12 रुपए तौल के नाम पर अतिरिक्त चार्ज लिया जा रहा है कि अब तक आठ लाख रुपए से अधिक अतिरिक्त चार्ज लिया जा चुका है। इतना ही नहीं, किसानों की 12 करोड़ रुपए से अधिक की गाढ़ी कमाई सरकार के सॉफ्टवेयर में फंसी है। जिले में तौल चालू होने के करीब डेढ़ माह बीतने को हैं। बावजूद इसके शासन स्तर पर किसानों के खाते में ऑनलाइन भुगतान का सॉफ्टवेयर ठीक नहीं हो सका। विभागीय अधिकारियों का तर्क है कि इस बार शासन किसानों के भुगतान के लिए जीआइटीपी (जस्ट इन ट्रांसफर पेमेंट) नाम का सॉफ्टवेयर तैयार किया है। जिससे केन्द्र पर तौल की प्रक्रिया पूरी होते ही किसान के खाते में समर्थन मूल्य पहुंच जाएगा। 15 नवंबर से तौल चालू हो गई है, लेकिन अभी तक सॉफ्टवेयर ठीक नहीं होने के कारण किसानों का 12 करोड़ रुपए से अधिक का भुगतान लटका हुआ है। शासन ने जिला प्रबंधक को भोपाल बुलाया है। भोपाल से लौटने के बाद केन्द्रों के कंप्यूटर आपरेटरों को प्रशिक्षण दिया जाएगा।
प्रदेश की मंडियों में धान की कीमतें
15 नवंबर से 15 दिसंबर
जिला न्यूनतम अधिकतम
अनूपपुर 1350 1755
होशंगाबाद 1753 2225
रीवा 1100 1750
बालाघाट 1400 1750
15 दिसंबर से 1 जनवरी
जिला न्यूनतम अधिकतम
भिंड 2700 3150
सतना 1350 1400
अनूपपुर 1400 1750
होशंगाबाद 1903 2952
रीवा 1115 1751
बालाघाट 1400 1789
राइस मिलों के धान की ही खरीदी
जानकारी के अनुसार, बालाघाट, सिवनी सहित कई जिलों में क्रय केंद्र पर राइस मिलों का ही धान खरीदा जा रहा है। दरअसल इन जिलों के कुछ विक्रय के्रंदों पर धान लेकर पहुंचने वाले किसानों को धान में नमी बता कर टरका दिया जाता है। किसानों का कहना है कि मिलीभगत के चलते राइस मिलों का धान ही सेंटरो पर तोला जा रहा है। इसी से सरकारी लक्ष्य पूरा होगा। हालांकि मंडी में आढ़तें गुलजार हो रही हैं। कई दिनों से धान तौलने के लिए मंडी में मौजूद किसान ओने पौने दामों पर ही धान बेचने को विवश हैं। मंडी में आढ़तियों द्वारा सरकार द्वारा निर्धारित 1750 रुपए प्रति क्विंटल के बजाय 300 कम में धान खरीदा जा रहा है। किसानों को 13 सौ से 14 सौ के बीच धान का दाम मिलना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में सरकार का किसानों को समर्थ मूल्य दिलाने का वादा भी झूठा साबित हो रहा है।
आमदनी छोडि़ए, लागत निकालना मुश्किल
किसानों का कहना है कि सरकार खेती को लाभ का धंधा बनाने पर जोर दे रही है। लेकिन फसल बिक्री करने पर आमदनी तो छोडि़ए, लागत निकालना मुश्किल हो रहा है। मध्य प्रदेश किसान खेत मजदूर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष (कार्यवाहक) केदार शंकर सिरोही कहते हैं सरकार अपनी नीतियों को सही से लागू नहीं कर पा रही है। एमएसपी बढ़ा देने मात्र से किसानों का लाभ नहीं होने वाले। मंडियों में बिचौलिए सक्रिय हैं, उन्हें रोकने के लिए सरकार के पास पर्याप्त लोग ही नहीं है। भाव कम करके व्यापारी अनाज खरीद लेते हैं। बड़ी-बड़ी कंपनियां ट्रेडिंग कर ही क्यों रहीं हैं, जाहिर-सी बात है कि उन्हें मोटा फायदा दिख रहा है। छिंदवाड़ा के मंडी अध्यक्ष शेषराव यादव कहते हैं सरकार की तय की हुई दरों पर व्यापारी उपज खरीदते ही नहीं। किसानों को उनकी नुकसान का भरपाई भावांतर और बोनस के माध्यम से कर दिया जाता है। व्यापारी दाम बढऩे ही नहीं देते। अब धान की कीमत 1750 रुपए है लेकिन मेरे यहां 1400 रुपए से ज्यादा भाव बढ़ता ही ही। मंडी व्यापारियों के हिसाब से चलती है। प्रदेश में किसानों के साथ किस तरह ठगी हो रही है इसका अंदाजा इसी सं लगाया जा सकता है कि 15 नवंबर 2018 को जब धान की खरीदी शुरू हुई तो शहडोल में 1300 रूपए क्विंटल की दर से धान खरीदा गया। 16 नवंबर 2018 को सागर में 1100 रूपए क्विंटल में खरीदी हुई। वहीं एक माह बाद यानी 15 दिसंबर को भिंड में 1200 रूपए और 16 दिसंबर को सतना में 1150 रूपए प्रति क्विंटल में धान की खरीदी हुई। जबकि 1 जनवरी 2019 को जबलपुर में 1301 रूपए क्विंटल धान बिका। यह इस बात का संकेत है कि मंडियों में किसानों के साथ किस तरह की ठगी हो रही है।
सतना में बैठकर खंगाल रहे रीवा की गुणवत्ता
प्रदेश में धान खरीदी में व्याप्त भर्राशाही का आलम यह है कि एक तरफ गुणवता के नाम पर किसानों से अवैध वसूली हो रही है। वहीं, दूसरी तरफ एक जिले में बैठकर दूसरे जिले की गुणवत्ता पर नजर रखी जा रही है। ऐसा मामला रीवा में सामने आया है। नागरिक आपूर्ति निगम की गुणवत्ता नियंत्रकों की फौज सतना कार्यालय में बैठकर रीवा के खरीदी केंद्रों पर धान की गुणवत्ता परख रही है। हैरान करने वाली बात तो यह है कि जब खरीदी केंद्रों पर धान की तौल नहीं शुरू हुई थी, तब भोपाल और सतना के अधिकारी केंद्रों पर धान की गुणवत्ता खंगालने पहुंचे थे। डेढ़ माह के भीतर केंद्रों पर बिना जांच किए 3.49 लाख क्विंटल से अधिक धान की तौल हो गई। कई केंद्रों पर व्यापारियों की साठ-गांठ से पुरानी धान बेचने का मामला भी अधिकारियों के पास पहुंचा। बावजूद इसके जिम्मेदार नहीं जागे। रीवा जिले में समर्थन मूल्य पर धान की तौल के लिए 65 केंद्र बनाए गए हैं। खरीदी केंद्रों पर तौल के दौरान गुणवत्ता की जांच के लिए नागरिक आपूर्ति निगम ने एफसीआई के सेवानिवृत्त कर्मचारियों को संविदा पर रखा है। बताया गया है कि गुणवत्ता नियंत्रक फील्ड में जांच करने के बजाय विभागीय काम से सतना कार्यालय में बैठे हुए हैं।
किसानों को एक दिन में करोड़ों का नुकसान
प्रदेश में एमएसपी की आड़ में किसानों को रोजाना करोड़ों रूपए का नुकसान पहुंचाया जा रहा है। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने खरीफ की फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाते हुए कहा था कि किसानों की आमदनी दोगुनी करने की दिशा में ये ऐतिहासिक कदम है। लेकिन अगर आंकड़ों की मानें तो किसानों को प्रतिदिन करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है। देशभर की मंडियों का भाव बताने वाली सरकार की वेबसाइट एगमार्कनेट डॉट जीओवी डॉट इन के अनुसार मौजूदा समय की एक दो जिंसों को छोड़ दिया जाए तो मंडी में किसी भी फसल की एसएसपी पर खरीदी नहीं हो रही। जब इस वेबसाइट को खंगाला तो आश्चर्यजनक आंकड़े सामने आए। बालाघाट के धान किसान सुशील बोवचे 20 नवंबर को लगभग दस क्विंटल उपज लेकर गल्ला मंडी पहुंचे तो उन्हें एक क्विंटल के एवज में 1400 रुपए ही मिला, जबकि सरकारी कीमत 1750 रुपए है। सुशील कहते हैं मुझे तो पता चला था कि धान का दाम 1750 रुपए क्विंटल है, लेकिन यहां तो इतना पैसा मिला ही नहीं। दस क्विंटल के पीछे 3500 रुपए का नुकसान हो गया।