भाजपा के प्रदेश की सत्ता से बाहर होने की बड़ी वजह उसके परंपरागत वोट बैंक रहे सवर्णों की उससे नाराजगी रही है। चुनावी साल में जिस तरह से सूबे के तत्कालीन मुखिया रहे शिवराज सिंह चौहान ने सार्वजनिक मंच से दंभोक्तिपूर्ण माई का लाल वाला बयान दिया था उससे सवर्ण नाराज हो गए। यही नहीं इस बीच केन्द्र सरकार एस्ट्रोसिटी एक्ट ले आयी जिससे यह नाराजगी और बढ़
गई। फलस्वरुप विस चुनाव में इस वर्ग के लोगों ने भाजपा की जगह कांग्रेस व नोटा में वोट देकर भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया। अब कुछ माह बाद ही लोकसभा चुनाव होने हैं ऐसे में भाजपा के रणनीतिकारों को सवर्ण समाज की याद आनी शुरू हो गई है। इसके चलते अब इस वर्ग की नाराजगी दूर करने के प्रयास पार्टी स्तर पर करने के प्रयास किए जा रहे हैं। इस नाराजगी को दूर करने और सवर्ण आरक्षण के मुद्दे को भुनाने के लिए पार्टी ने अपने पूर्व मंत्रियों को अलग-अलग समाजों को अपने पक्ष में करने की जिम्मेदारी सौंपी है। जानकारी के मुताबिक, वैश्य समाज की जिम्मेदारी पूर्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता, ब्राह्मण समाज की जिम्मेदारी पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा, क्षत्रिय समाज की जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और जयभान सिंह पवैया इसके अलावा जैन समाज की जिम्मेदारी पारस जैन और जयंत मलैया को दी गई है। प्रदेश में सवर्णों की नाराजगी को दूर करने भाजपा नेता पूरे प्रदेश में घूमेंगे और अलग-अलग समाजों के स मेलन की तैयारी करेंगे। सवर्ण आरक्षण को भुलाने के लिए भाजपा नेता ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य समाज के लोगों से मुलाकात करेंगे। मध्यप्रदेश के पूर्व मंत्रियों को यह जिम्मा सौंपा गया है और कहा गया है कि वह इन समाज के लोगों से मिले और आरक्षण के फैसले के बारे में उन्हें विस्तार से जानकारी दें। माना जा रहा है कि इस कवायद से लोकसभा चुनाव में भाजपा को खासा फायदा मिल सकता है। असल में माना जा रहा है कि मोदी सरकार का सवर्ण समाज को 10 फीसदी आरक्षण देने का फैसला भाजपा के लिए संजीवनी का काम करेगा, इसलिए अब पार्टी ने सवर्ण आरक्षण को भुनाने के लिए रणनीति तैयार की है।