बाल कल्याण समिति के सदस्यों पर नाथ सरकार की मेहरबानी

भाजपा सरकार ने चुनावी मौसम के दौरान कर दी थीं अपने लोगों की नियुक्तियां 
भोपाल । प्रदेश में विधानसभा चुनाव के मौसम में शिवराज सरकार द्वारा बाल कल्याण समिति में अपनी विचारधारा वाले लोगों को नियुक्त कर उन्हें उपकृत किया था, लेकिन अब प्रदेश में सरकार बदलने के बाद नई कमलनाथ सरकार उन पर मेहरबानी दिखा रही है। हाल ही में महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा एक जनवरी को एक आदेश जारी कर बाल कल्याण समिति

(सीडब्ल्यूसी) की अब महीने में कम से कम बीस बैठकें आयोजित करने के निर्देश दिए गए हैं। इसके पहले तक एक माह में 12 बैठकें ही होती थीं। खास बात यह है कि इन बैठकों में शामिल होने के एवज में सदस्यों को 15 सौ रुपए प्रति बैठक के हिसाब से मानदेय मिलता है। नए आदेश के बाद से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में रोष है। वे अपनी ही सरकार के खिलाफ खुलकर तो नहीं बोल पा रहे हैं, लेकिन दबी जुबान में कह रहे हैं कि जब सरकार भाजपा की थी, तो भी उनके लोगों को फायदा मिल रहा था। अब जबकि कांग्रेस सरकार है तो भी भाजपा व संघ के लोगों को ही लाभ मिल रहा है। दरअसल इन सभी जिलों की समितियों में सदस्यों को भाजपा ने नियुक्त किया था। पहले इन सदस्यों को महीने में अधिकतम 12 बैठक में शामिल होने का मौका मिलता था। बदले में 1500 रुपए प्रतिदिन मानदेय दिया जाता था। लेकिन अब यह सदस्य 20 बैठकें ले सकेंगे। यानि पूरे महीने में 30 हजार रुपए मानदेय प्राप्त करेंगे। बच्चों के लिहाज से भले ही यह फायदे का आदेश हो, लेकिन इसकी आड़ में असल फायदा बीजेपी व आरएसएस के लोगों को मिलेगा। इनमें से भोपाल समेत रतलाम, मंदसौर और बड़वानी जिलों में तो चुनाव आचार संहिता के दौरान सदस्यों की नियुक्ति के आदेश जारी हुए हैं। अभी जितने भी लोग काम कर रहे हैं, उनमें से ज्यादातर भाजपा से जुड़े हैं या फिर कोई एनजीओ चला रहे हैं। पूर्व में हुई नियुक्तियों को लेकर कई बार सवाल भी उठे थे। लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
इनका कहना है
मेरे संज्ञान में ऐसा कोई मामला नहीं आया
अभी मेरे संज्ञान में ऐसा कोई मामला नहीं आया है। मैं एक बार पूरा मामला दिखवा लेती हूं और यदि इसमें लगता है कि कोई गलत निर्णय हुआ है तो हम कार्रवाई करेंगे। कोई भी कार्रवाई दुर्भावना से नहीं की जाएगी।
– इमरती देवी, मंत्री, महिला एवं बाल विकास विभाग
राजनीतिक नियुक्ति न हो
बाल कल्याण समिति के सदस्य का पद संवैधानिक नहीं, बल्कि कानूनी होता है। सीडब्ल्यूसी का काम बेहद संवेदनशील है। इसमें उन लोगों की नियुक्ति होना चाहिए, जिन्हें कानून की जानकारी हो और वे बच्चों के प्रति संवेदनशील हों। लेकिन राजनीतिक दल ऐसे लोगों को सदस्य बना देते हैं, जिनका बच्चों से कोई लेना-देना नहीं है। असल में जो लोग काम करते हैं, उन्हें दूर रखा जाता है।
– निर्मला बुच, पूर्व मुख्य सचिव, मप्र शासन