एनजीटी के आदेश के बाद प्रदेश सरकार ने कलेक्टरों से खदानों को स्वीकृति देने का अधिकार छीन लिया है। हालांकि, यह व्यवस्था 5 हेक्टेयर तक की गिट्टी, मुरूम, मिट्टी, रेत सहित अन्य गौण खनिज खदानों से जुड़ी पर्यावरणीय स्वीकृति तक सीमित रहेगी। नई व्यवस्था के बाद अब खदान के लिए आवेदक को राज्य स्तरीय पर्यावरण समाघात निर्धारण प्रधिकरण (सिया) से मंजूरी लेना होगी। खदानों की अनुमति सिया से लेने के लिए संचालकों को ऑन लाइन आवेदन करने के साथ हजारों रुपए का शुल्क भी जमा करना पड़ेगा।
छोटे आवेदकों को होगी परेशानी
एनजीटी के इस फैसले से छोटे खदान लेने वाले आवेदकों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। कारण कि खदान की अनुमति से जुड़े विभिन्न दस्तावेजों को जमा करने और सुनवाई के लिए बार-बार राजधानी के चक्कर लगाने पड़ेंगे। खदान आवंटन में देरी होने से इसका सीधा असर निर्माण और विकास कार्यों में पड़ेगा। क्योंकि अभी तक पांच हेक्टेयर खदानों के पर्यावरण की अनुमति जिला स्तर की पर्यावरण कमेटी से जल्दी ही मिल जाती थी, इसके लिए शुल्क भी नहीं लगता था। सडक़, पुल-पुलिया निर्माण करने वाले ठेकेदार जिला स्तर पर्यावरण की अनुमति लेकर उत्खनन करना शुरू कर देते थे। वहीं ईंट भट्ठों के लिए भी सिया से पर्यावरण की अनुमति लेनी पड़ेगी।
दूर-दराज के लोगों को आना होगा भोपाल
अभी जिला स्तर से खदान को मंजूरी जल्द मिल जाती है। आवेदक को खदान आवंटन कराने में ज्यादा परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है। नए नियमों से अब दूरस्थ क्षेत्र में रहने वाले आवेदक को पर्यावरणीय स्वीकृति के लिए भोपाल में आना होगा, इससे खदान मिलने में देरी तो होगी ही साथ में जल्द खदान आवंटन कराने के फेर में भ्रष्टाचार के नए रास्ते खुल जाएंगे।