भोपाल/मंगल भारत। प्रदेश में अचानक बिजली संकट
की स्थिति बनी तो हर साल मुफ्त में अनुबंध के नाम पर हजारों करोड़ रुपए डकारने वाली निजी बिजली उत्पादन कंपनियों ने बिजली की आपूर्ति करने से इंकार कर दिया। इसकी वजह से प्रदेश सरकार के खजाने को दोहरी चपत लग रही है। अब हालत यह है कि पहले से गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रही प्रदेश सरकार के खजाने को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसके बाद भी हालत यह है कि प्रदेश को बिजली संकट सें पूरी तरह से मुक्ति नहीं मिल पा रही है। इसके इतर इन निजि कंपनियों ने सरकार पर ही 2433 करोड़ का बकाया निकाल कर उसके भुगतान के लिए दबाब बनाना शुरू कर दिया है। उल्लेखनीय है कि प्रदेश सरकार ने संकट के समय मदद के लिए निजी कंपनियों से 21500 मेगावाट बिजली आपूर्ति के लिए अनुबंध पहले से किए हुए हैं। इसके बाद भी बिजली नहीं मिल पा रही है। ऐसे में अब सकंट दूर करने के लिए सरकार को मंहगी दर पर अन्य जगहों से बिजली की खरीद करनी पड़ रही है।
हालत यह है कि दो दिनों में अतिरिक्त रूप से महंगी दर पर बिजली की खरीदी करनी पड़ी है। इस पर दो दिनों में 1163 करोड़ रुपए का भार आया है। गौरतलब है कि प्रदेश सरकार द्वारा निजी कंपनियों को बगैर बिजली खरीदे ही हर साल फिक्स चार्ज के तौर पर 4,200 करोड़ रुपए का भुगतान करती है। इसके बाद भी यह कंपनियां बिजली सप्लाई करने को तैयार नही हैं, जबकि प्रदेश में इस बिजली संकट की बड़ी वजह बनी है कोल कंपनियों का 1100 करोड़ का भुगतान नहीं करना। इसकी वजह से कोल कंपनियों द्वारा कोयला की आपूर्ति कम कर दी गई है।
इसकी वजह से बिजली उत्पादन गिर गया , जिसकी वजह से एक सप्ताह से अघोषित बिजली कटौती करनी पड़ रही है। तमाम प्रयासों के बाद भी प्रदेश में अभी मांग और आपूर्ति में करीब 1100 मेगावाट का अंतर बना हुआ है। इस तरह की स्थिति बनने की वजह से अब प्रदेश में निजी कंपनियों से अनुबंध निरस्त करने की मांग जोर पकड़ने लगी है। उधर राज्य सरकार का दावा है कि प्रदेश में बिजली कटौती नहीं की जा रही है। उसका कहना है कि मेंटेनेंस के कारण 2.227 मेगावाट क्षमता की यूनिट वार्षिक रखरखाव के लिए बंद है। इनमें से 1,000 मेगावाट क्षमता का उत्पादन 5 सितंबर तक शुरू हो जाएगा।
16 में से 9 बिजली इकाइयां ठप
मध्यप्रदेश पावर जनरेटिंग कंपनी के चार बिजली घर सिंगाजी पावर प्लांट खंडवा, सतपुड़ा ताप विद्युत सारनी, संजय गांधी पावर प्लांट बिरसिंहपुर और अमरकंटक ताप गृह चचाई में कुल 16 इकाई हैं। इसकी कुल उत्पादन क्षमता 5400 मेगावाट है। इनमें अभी कोयले की कमी और वार्षिक मेंटेनेंस के चलते 2990 मेगावाट क्षमता की 9 इकाइयां बंद पड़ी हैं। इसकी वजह से चारों प्लांटों में मिलाकर कुल 1500 मेगावाट के करीब ही उत्पादन हो पा रहा है।
यह है मौजूदा स्थिति
बीते एक सप्ताह से मप्र पावर जनरेटिंग कंपनी करीब 3500 मेगावाट का ही उत्पादन कर पा रही है। सेंट्रल कोटा से 5500 से 6000 मेगावाट बिजली ली जा रही है, जबकि प्रदेश में पिछले दिनों बिजली की डिमांड 10333 मेगावाट तक पहुंच चुकी है। इस अंतर को दूर करने के लिए ग्रामीण इलाकों की बिजली काटी जा रही है। प्रदेश में इस समय विंड से 1500 से 1700 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है, लेकिन हवा विपरीत होने उसका उत्पादन भी घटकर 150 मेगावाट रह गया है।
2433 करोड़ के भुगतान की मांग
प्रदेश को बिजली मुहैया कराने वाले उत्पादकों द्वारा बिजली आपूर्ति करने की जगह प्रदेश सरकार पर 2433 करोड़ रुपए का बकाया निकाल दिया गया है। इसको लेकर एसोसिएशन आॅफ पावर प्रोड्यूसर्स (एपीपी) ने शासन को पत्र लिख कर कहा है कि भुगतान न होने से प्लांटों के संचालन में काफी दिक्कत आ रही है। पेमेंट जल्द न होने की स्थिति में बिजली सप्लाई पर संकट खड़ा हो सकता है। पत्र में यह भी लिखा गया है कि बिजली उत्पादन की 70 फीसदी लागत कोयला खरीदी व इसके परिवहन में आती है। इसके लिए भुगतान एडवांस में करना होता है। ऐसा न कर पाने पर कोल आवंटन लैप्स हो जाता है और भारी पेनाल्टी भी लगती है। इसके अलावा एसोसिएशन को स्पेयर पार्ट्स, सर्विसेज, कर्मचारियों की सैलरी, पानी व अन्य टैक्स पर भी खर्च करना होता है। एसोसिएशन ने पत्र की कॉपी केंद्रीय अतिरिक्त सचिव विवेक कुमार देवांगन और मप्र के ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव संजय दुबे को भी भेजी है। पत्र में यह भी बताया गया है कि 16 मई की स्थिति में बिजली उत्पादकों का कुल 1791 करोड़ रुपए अटका था। यह साढ़े तीन महीने बाद बढ़ कर 2433 करोड़ रुपए पहुंच गया। एपीपी ने कम से कम 70 फीसदी बकाया राशि तुरंत जारी करने का आग्रह किया है।