भोपाल/मनीष द्विवेदी।मंगल भारत। मध्यप्रदेश में आम
विधानसभा चुनाव में अब दो साल से भी कम का समय बचा है, ऐसे में अब संगठन के बाद सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने भी अपने कबीना के सदस्यों से उनका रिपोर्ट कार्ड मांगा है। माना जा रहा है कि यह रिपोर्ट कार्ड ही अब मंत्रियों के भविष्य को तय करेगा। दरअसल नए साल की शुरुआत में ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने सभी मंत्रियों को रिपोर्ट कार्ड के साथ वन- टू-वन चर्चा को बुलाया है। प्रदेश में आधे निगम मंडलों में सियासी नियुक्तियों के बाद अब इसे मंत्रिमंडल पुर्नगठन के संकेत के रूप में देखा जा रहा है। मुख्यमंत्री 3 जनवरी के बाद अपनी धार्मिक यात्रा से लौटने के बाद एक बार फिर नई स्फूर्ति के साथ अपनी टीम से मिलकर नई विकास की योजनाओं और रणनीति पर मंथन करने वाले हैं। फिलहाल शिव कैबिनेट में अभी चार मंत्रियों के पद रिक्त हैं। प्रदेश की सत्ता-संगठन व संगठन में बीते लंबे समय से नियुक्तियों का दौर चल रहा है। बीते सप्ताह ही मुख्यमंत्री द्वारा एक साथ 25 नेताओं की निगम- मंडलों में न केवल नियुक्तियां की जा चुकी हैं , बल्कि उन्हें मंत्री का दर्जा भी दिया जा चुका है। इनमें श्रीमंत समर्थक वे नेता भी शामिल हैं, जो विधायक पद से इस्तीफा देकर कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए थे और बाद में हुए उपचुनावों में पराजित हो गए थे। दरअसल मिशन 2023 की तैयारी को लेकर भाजपा के केंद्रीय संगठन द्वारा कई स्तर पर कार्ययोजना
तैयार की गई है। इसके तहत ही भाजपा विधायकों को भी सत्ता-संगठन की ओर से होमवर्क दिया गया है। प्रदेश में भाजपा हाईकमान के साथ लंबित राजनीतिक
नियुक्तियों और मंत्रिमंडल के पुर्नगठन को लेकर कई बार मंथन किया जा चुका है। मंत्रियों के कामकाज को लेकर मुख्यमंत्री के अलावा संगठन भी
एक-एक बार चर्चा कर चुके हैं। माना जा रहा है कि जिन मंत्रियों की विभाग पर कमजोर पकड़ और विभागीय कामकाज औसत है उनके विभागों में भी बदलाव किया जा सकता है। इसके अलावा रिक्त चार पदों के लिए भी सदस्यों को शपथ दिलाई जा सकी है।
अभी चार पद हैं रिक्त
अभी प्रदेश मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री सहित 31 पद भरे हुए हैं। इनमें 30 मंत्री शामिल हैं। विधानसभा सदस्यों के हिसाब से प्रदेश मंत्रिमंडल में कुल मंत्रियों की संख्या 34 तक हो सकती। इन चार रिक्त चल रहे मंत्रियों के पदों के लिए कई वरिष्ठ विधायकों की दावेदारी बनी हुई है। उल्लेखनीय है कि मार्च 2020 में भाजपा की सरकार बनने के करीब 100 दिन बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में पहली बार 5 मंत्रियों को शामिल किया गया था। इसके बाद 2 जुलाई को 28 मंत्रियों को शपथ दिलाई गई थी। इस बीच 6 माह की तय अवधि में विस की सदस्यता न मिल पाने की वजह से 2 मंत्रियों तुलसी सिलावट और गोविंद राजपूत को मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा था और उसके बाद उपचुनाव में 3 मंत्री चुनाव हार गए थे , जिसकी वजह से इमरती देवी, गिर्राज दंडोतिया और एंदल सिंह कंसाना को बाहर होना पड़ा। विधायक बनने के बाद मंत्रिमंडल में राजपूत और सिलावट को शामिल कर लिया गया था।
कई पूर्व मंत्रियों की है दावेदारी
श्रीमंत के समर्थकों की वजह से इस बार सरकार में कई पूर्व मंत्रियों को अब तक मौका नहीं मिल सका है। इनमें वे पूर्व मंत्री-विधायक भी शामिल हैं, जो न केवल कई बार से लगातार जीत रहे हैं, बल्कि उनका पूर्व की सरकारों में भी बेहतर प्रदर्शन रहा है। इसके अलावा सरकार पर उन चेहरों को भी मंत्री बनाए जाने का दबाव है, जो लगातार दावेदार होने की वजह से मंत्री नहीं बन पा रहे हैं। यही वजह है कि चौहान के करीबी और वरिष्ठ होने के बाद भी इस बार गौरीशंकर बिसेन, राजेन्द्र शुक्ला, रामपाल सिंह और संजय पाठक जैसे चेहरों को राज्य मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल सकी थी। अब पार्टी व सरकार स्तर पर की जा रही कवायद के बाद माना जा रहा है कि इन चेहरों को मौका मिल सकता है।
यह भी मांगी गई है जानकारी
दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए क्षेत्रीय योजनाओं के मामले में भी जानकारी मांगी गई है। हाल ही में रद्द हुए पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण का मामला अब भी गर्म बना हुआ है। ऐसे में सत्ता-संगठन के नेता किसी भी समाज नाखुश करने की रिस्क लेने की स्थिति में नहीं हैं। पार्टी का जोर उन सीटों पर खासतौर पर है, जिन पर बीते चुनाव में हार मिल चुकी है। यही वजह है कि अब सरकार कांग्रेस के कब्जे वाली सीटों पर बड़ी योजनाएं मंजूर करने और भाजपा के जनाधार बढ़ाने के लिए हरसंभव उपाय करने की तैयारी मे है।
मूल भाजपा नेताओं का दबाव
पार्टी के अंदर खानों में चल रही चर्चा में कहा जा रहा है कि अब प्रदेश में कमलनाथ सरकार गिराने और भाजपा की सरकार बनवाने में मदद करने वाले श्रीमंत समर्थक सभी नेताओं को उपकृत किया जा चुका है। इसलिए अब पार्टी राजनीतिक रूप से जरूरी और जेनुइन लोगों को मौका दिया जाएगा।