भोपाल।मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। मध्यप्रदेश ऐसा
राज्य बन चुका है, जहां सरकार में निचले तबके के मैदानी स्तर पर काम करने वाले अफसरों के साथ लगातार सौतेला व्यवहार किया जाता है। यही वजह है कि आला अफसरों को तय समय सीमा के अंदर पदोन्नति और अन्य सुविधाओं के लिए पलक पांवड़े बिछाने वाली सरकार और उसके आला अफसरों की कार्यशैली से मैदानी छोटे अफसर बेहद नाराज हैं। अगर राजस्व विभाग की ही बात की जाए तो इस विभाग में तहसीलदार व नायब तहसीलदार के आठ सौ से अधिक पद लंबे समय से रिक्त चल रहे हैं, लेकिन सरकार इन पदों पर बीते छह साल से पदोन्नति करने को ही तैयार नहीं है। इसकी वजह से इन अफसरों को दो से तीन तक तहसीलों का काम देखना पड़ा रहा है। यही हाल विभाग के अन्य छोटे कर्मचारियों का भी बना हुआ है। इस मामले में यह अफसर कई बार आंदोलन करने से लेकर सरकार से पदोन्नति की गुहार लगा चुके हैं, लेकिन बीते छह सालों से उनका यह इंतजार समाप्त होने की नाम ही नहीं ले रहा है। हालत यह है कि इस बीच राजस्व विभाग के कई अफसरों को तो बगैर पदोन्नति के सेवानिवृत्त होने पर मजबूर होना पड़ा है। यह हाल तब है जबकि प्रदेश में अखिल भारतीय सेवाओं के अफसरों की पदोन्नति में सरकार एक दिन की भी देरी नहीं करती है और कई बार तो पद रिक्त नहीं होने के बाद भी उन्हें उपकृत करने के लिए पदों तक भी सृजन कर दिया जाता है। इसके उलट मैदानी स्तर पर लोगों की समस्यों को सुलझाने और कानून व्यवस्था की स्थिति से दो चार होने वाले इन अफसरों को लंबे समय से पदोन्नत नहीं किए जाने से उनमें सरकार को लेकर बेहद रोष बना हुआ है। अब एक बार फिर से उनके द्वारा प्रमोशन की मांग तेज कर दी गई है। यह बात अलग है कि इस बार उनके द्वारा पुलिस और जेल विभाग की तर्ज पर नायब तहसीलदार एवं तहसीलदार को उच्चतम पद पर कार्यवाहक के रूप में नियुक्त करने की मांग की जा रही है। इसको लेकर हाल ही में विधानसभा अध्यक्ष से लेकर मंत्रियों तक को ज्ञापन भी दिया गया है। इस मामले में इन अफसरों का कहना है कि मध्यप्रदेश को छोड़कर अन्य सभी राज्यों में नायब तहसीलदार और तहसीलदारों को पदोन्नत किया जा रहा है। उनका कहना है कि इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट का डायरेक्शन भी है। इसके तहत राजस्व विभाग में निर्णय को प्रभावित किये बिना भी पदोन्नति की जा सकती है। क्योंकि पदों की संख्या और पात्र अधिकारियों की स्थिति सामान है और आरक्षण का प्रभाव भी नहीं पड़ता है। बावजूद इसके जिम्मेदार बेपरवाह बने हुए हैं।
पदोन्नति को लेकर गंभीर नहीं सरकार
मप्र राजस्व अधिकारी संघ का कहना है कि संपूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से काम करने के बाद भी राज्य सरकार नायब तहसीलदार और तहसीलदारों की पदोन्नति को लेकर गंभीर नहीं है। प्रदेश के पुलिस और दूसरे विभागों में सरकार ने पदोन्नति देने का काम शुरू कर दिया, लेकिन राजस्व विभाग में पदोन्नत करने का काम शुरू तक नहीं किया जा रहा है। इधर हालात यह हैें कि पदोन्नति नहीं होने से दोनों ही कैडर के एक हजार से अधिक पद रिक्त हैं। इसके अलावा सीधी भर्ती के दो सौ से अधिक पदों को भी कोरोना के कारण सरकार द्वारा नहीं भरा गया है। इसकी वजह से राजस्व अनुविभाग और तहसीलों में पदस्थापना के लिए डिप्टी कलेक्टरों से लेकर तहसीलदारों तक की बेहद कमी बनी हुई है।
यह हैं रिक्त पदों के हालात
प्रदेश में अगर मौजूदा पदों की स्थिति देखें तो नायब तहसीलदार के स्वीकृत पदों की संख्या 1234 हैं, जिनमें से 781 पद भरे हुए हैं और 483 पद रिक्त हैं। इनमें से पदोन्नति के लिए उपलब्ध पदों की संख्या 194 है। इसी तरह से अगर तहसीलदारों की बात की जाए तो उनके स्वीकृत पदों की संख्या 606 है, जिसमें ये 265 पद भरे हुए हैं, जबकि 341 पद रिक्त हैं। इनमें से पदोन्नति के लिए उपलब्ध पदों की संख्या 341 है। इसी तरह से तहसीलदार से डिप्टी कलेक्टर के पद पर पदोन्नति के लिए 436 पद स्वीकृत हैं। वर्तमान में डिप्टी कलेक्टर के 236 पद रिक्त चल रहे हैं।
आला अफसरों की लापरवाही से अटक गया प्रमोशन
प्रदेश के कई अफसर ऐसे हैं, जिन्हें जिम्मेदारों की लापरवाही की सजा आज भी भुगतनी पड़ रही है। कारण- मार्च 2016 में तहसीलदारों का डिप्टी कलेक्टर के पद पर प्रमोशन हुआ था। उस समय डेढ़ सौ पद थे। लेकिन पदोन्नति सिर्फ 69 तहसीलदारों की ही हो सकी। शेष के आदेश समय पर जारी नहीं होने के कारण अटक गये। दरअसल, इस बीच अप्रैल 2016 को उच्च न्यायालय का स्टे आ गया था। अब जिनके प्रमोशन हो गये थे, वो ज्वाइंट कलेक्टर बन गये, जबकि उनके साथ के तहसीलदार आज भी डिप्टी कलेक्टर बनने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।