समरस हो रही पंचायतें

पंचायत चुनाव बनेंगे मिसाल.

मप्र में देर से ही सही लेकिन दुरुस्त तरीके से पंचायत चुनाव का घमासान शुरू हो गया है। गैर राजनीतिक होने के बाद भी पंचायत चुनाव में भाजपा और कांग्रेस की साख दांव पर है। क्योंकि दोनों पार्टियों ने अपने समर्थकों को सरपंच से लेकर अन्य पदों पर मैदान में उतारा है। लेकिन इन सबके बीच इस बार का पंचायत चुनाव मिसाल बनने जा रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि प्रदेश की अधिकांश पंचायतें समरस हो रही हैं।

मंगल भारत।मनीष द्विवेदी
भोपाल (डीएनएन)। मप्र में हो रहे पंचायत चुनाव को 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है। इसकी वजह यह है कि राजनीतिक पार्टियों ने अपनी विचारधारा वाले जमीनी नेताओं को चुनावी मैदान में उतारा है। इससे भाजपा और कांग्रेस का जमीनी वोटबैंक मजबूत होगा। वहीं इस बार पंचायत चुनावों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की उस अपील का खासा प्रभाव देखने को मिल रहा है, जिसमें उन्होंने कहा था कि जिन पंचायतों में चुनाव निर्विरोध होंगे, उन्हें पुरस्कृत किया जाएगा। इसका असर यह देखने को मिल रहा है कि प्रदेश में बड़ी संख्या में पंचायतें समरस हो रही हैं। यानी पंच-सरपंच या अन्य पद पर प्रत्याशी निर्विरोध चुने जा रहे हैं।
दरअसल, त्रिस्तरीय पंचायतों के चुनाव में निर्विरोध निर्वाचन को प्रोत्साहित करके मुख्यमंत्री चौहान ने गांव में नया राजनीतिक अध्याय लिखने की कोशिश की है। राज्य का कोई भी जिला ऐसा नहीं है जहां निर्विरोध निर्वाचन की दिशा में कदम न बढ़ाया गया हो। भाजपा के नेता और कार्यकर्ता पोलिंग स्टेशन पर निर्विरोध निर्वाचन का प्रयास करते दिखाई दिए। इस कारण चुनाव में उनका पलड़ा स्वाभाविक तौर पर भारी दिखाई देगा। समरसता के लिए सरकार ने एक कदम बढ़ाया है तो कई कदम एक साथ इस दिशा में आगे बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। दरअसल, अगले विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने 51 प्रतिशत वोट हासिल करने का लक्ष्य रखा है। विधानसभा के चुनाव अगले साल के नवंबर-दिसंबर में होना है। राज्य में इन दिनों पंचायत और नगरीय निकाय दोनों की ही निर्वाचन प्रक्रिया एक साथ चल रही है। त्रिस्तरीय पंचायत के चुनाव गैर दलीय आधार पर होते हैं। जबकि नगरीय निकाय के चुनाव दलीय आधार पर हो रहे हैं। ये दोनों चुनाव अगले विधानसभा चुनाव के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। इसे सेमी फायनल भी माना जा रहा है। इन चुनावों में भाजपा की रणनीति अधिकतम वोट और समर्थन हासिल करने की है। ग्रामीण इलाकों में समरस पंचायत का उपयोग भी पार्टी अपना जनाधार बढ़ाने के लिए कर रही है। जबकि कांग्रेस इन चुनावों का उपयोग रणनीतिक तौर पर नहीं कर रही है। ग्रामीण स्तर पर कांग्रेस पार्टी सक्रिय भी दिखाई नहीं दे रही है। उसने इस चुनाव से दूरी बना रखी है।

समरस पंचायत का उद्देश्य
मप्र सरकार प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने के मिशन पर काम कर रही है। यह मिशन तभी कारगर होगा, जब प्रदेश में राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक एकता रहेगी। इसको ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पंचायत चुनाव में निर्विरोध चुनाव कराने पर जोर दिया है, ताकि पूरी पंचायत एकमत होकर एक व्यक्ति को अपनी पंचायत के विकास की जिम्मेदारी सौंप सके। समरस पंचायत का बनाने का उद्देश्य ग्रामीण परिवेश में प्रेम और सद्भाव को बरकरार रखना है। पिछले कुछ चुनावों में छुटपुट ऐसी घटनाएं सामने आईं थीं जिनमें आपसी रंजिश की वजह पंचायत चुनाव रही। गांव में समरसता को बढ़ाने के लिहाज से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने निर्विरोध निर्वाचन को प्रोत्साहित करने के लिए विकास के लिए अतिरिक्त राशि पुरस्कार स्वरूप देने की घोषणा की है। इसके तहत जिन ग्राम पंचायतों में सरपंच निर्विरोध निर्वाचित होंगे, उन्हें 5 लाख रुपये का इनाम दिया जाएगा। इसके अलावा सरपंच पद के लिए वर्तमान निर्वाचन व पिछला निर्वाचन लगातार निर्विरोध होने पर 7 लाख और सरपंच-पंच के सभी पदों पर महिलाओं का निर्वाचन निर्विरोध रूप से होने पर 15 लाख रुपये दिए जाएंगे। गांव के समरसता के भाव को समझते हुए जबलपुर जिले के विधायक अजय विश्नोई ने भी खुद के विधानसभा क्षेत्र में होने वाले निर्विरोध निर्वाचन के लिए ढाई लाख रुपए की राशि पुरस्कार में देने की घोषणा की है। बुरहानपुर जिले के ग्राम मांजरोद समरस पंचायत का अनूठा उदाहरण है। इस गांव की पंचायत में पिछले साठ साल से निर्विरोध निर्वाचन हो रहा है। इस बार इस पंचायत की महिला सरपंच सहित सभी 12 पंच पदों पर निर्विरोध महिला प्रतिनिधि बनने जा रही हैं।इसका असर गांव के सामाजिक कार्यों में भी दिखाई देता है।
राज्य के लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव भी अपने निर्वाचन क्षेत्र में समरस पंचायत बनाने में सक्रिय रहे है। उनके विधानसभा क्षेत्र के ग्राम पंचायत पिपरिया गोपाल में लगातार सातवीं बार सरपंच सहित पंच निर्विरोध चुने गए। आदिवासी महिला के लिए आरक्षित पंचायत सरपंच पद पर ग्रामीणों ने सर्वसम्मति से शारदा आदिवासी को चुना। 32 साल पहले जगदीश कपस्या का चुनाव निर्विरोध हुआ था। इस पंचायत में ग्रामीण आपसी सहमति से मंदिर में बैठकर पंच और सरपंच पदों पर दावेदारी करने वालों से चर्चा करते हैं और सर्वसम्मति से पंच, सरपंच चुन लेते हैं। चुने गए प्रतिनिधि नामांकन की औपचारिकता पूरी करते हैं और एक-एक नामांकन होने पर निर्विरोध निर्वाचन हो जाता है। इस साल पंचायत सरपंच पद पर शारदा आदिवासी निर्वाचित हुई हैं। निर्विरोध निर्वाचन का सबसे रोचक उदाहरण मंदसौर जिले में देखने को मिला। आदिवासी क्षेत्र राणापुर से करीब पैंतीस साल पहले जिले के आक्याबिका में मजदूरी के लिए आए परिवार की महिला अब गांव की प्रधान होकर कमान संभालेगी। सालों से गांव के खेतों में मजदूरी करने वाली मांगी बाई अब गांव का विकास करेगी।

समरसता के लिए महिलाओं को किया आगे
दमोह जिले की कुंवरपुर खेजरा ग्राम पंचायत में सरपंच के साथ सभी 17 पंच निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं। आश्चर्यजनक बात यह थी कि सरपंच के अलावा इस ग्राम पंचायत की अन्य सभी सीटें अनारक्षित थीं लेकिन यहां किसी भी सीट पर किसी पुरुष ने नामांकन नहीं किया और सभी 17 पदों पर महिलाओं का निर्विरोध निर्वाचन हुआ। बीते पंचायत चुनाव में इसी ग्राम पंचायत से सोमेश गुप्ता ने सरपंच का चुनाव जीता था। सोमेश ने प्रदेश में सबसे ज्यादा मतों से यह चुनाव जीता था। जिसके बाद सोमेश को सरपंच संघ का प्रदेश अध्यक्ष भी बनाया गया था। विकास के लिए अतिरिक्त राशि के अलावा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह घोषणा भी की थी कि वे समरस पंचायत में लोगों का धन्यवाद करने पहुंचेगें। मुख्यमंत्री इस अपील का भी असर दिखाई दिया है। रतलाम जिले की धानासुता के निर्विरोध निर्वाचित पंच-सरपंच अपने मांग पत्र के साथ अब मुख्यमंत्री का इंतजार कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि यह मेरे लिए अत्यंत आनंद और हर्ष का क्षण है कि पंचायत निर्वाचन-2022 में मध्यप्रदेश समरस पंचायतोंज् की दिशा में अग्रसर हो रहा है। प्रदेश में अनेक ग्राम पंचायतें ऐसी है, जहाँ नाम निर्देशन पत्रों की संवीक्षा के बाद हमारी बहनें और भाई निर्विरोध सरपंच और उप सरपंच चुने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह समाज में आ रहे सकारात्मक परिवर्तन का द्योतक होने के साथ ही महिला सशक्तिकरण का भी जीवंत उदाहरण है। मुख्यमंत्री चौहान ने प्रदेश में त्रि-स्तरीय पंचायत निर्वाचन के प्रथम चरण में नामांकन-पत्रों की जांच के बाद सामने आई स्थिति पर ट्वीट कर भावना व्यक्त की। उन्होंने कहा कि हम सबका ध्येय केवल विकास और जन-कल्याण है। मुझे खुशी है हमारी समरस पंचायतें और हम सभी इस दिशा में तेजी से बढ़ रहे हैं। हमारी बहनें बढ़ें, पंचायतें बढ़ें और मध्यप्रदेश विकास के क्षेत्र में एक नया इतिहास रच दे, मेरी यही कामना है।

60 साल से नहीं हुआ चुनाव
पंचायत चुनाव में बुरहानपुर जिले खकनार जनपद क्षेत्र का एक गांव उदाहरण बना है। यहाँ की मांजरोद खुर्द पंचायत में बीते साठ साल से बिना किसी चुनाव के ग्राम पटेल और बाद में सरपंच चुनने की परपंरा कायम थी। इस बार इस पंचायत की महिला सरपंच सहित सभी 12 पंच पदों पर निर्विरोध महिला प्रतिनिधि बनने जा रही हैं। ग्रामीण विकास का ध्येय लेकर और जन-भागीदारी को बढ़ाते हुए विकास की ओर अग्रसर होते मुख्यमंत्री चौहान पिछले माहों में लगातार ग्रामीण क्षेत्रों का भ्रमण करते रहे। उन्होंने ग्रामीणों को इस बात के लिये प्रोत्साहित किया कि सभी एक जुट होकर गाँव में विकास की भावना के साथ काम करें और निर्वाचन में अपनी पंचायत को समरस बनाकर उदाहरण प्रस्तुत करें।
मुख्यमंत्री के आहवान का असर आज अनेक ग्राम पंचायतों में देखने को मिला है। जहाँ ग्रामीणों ने बिना किसी भेदभाव के आपसी सद्भाव के साथ अपनी ग्राम पंचायत को न केवल निर्विरोध की स्थिति में ला दिया है, वरन महिलाओं ने भी अपनी सूझ-बूझ का परिचय दिया है। मुख्यमंत्री ने हाल ही में पंचायत निर्वाचन 2022 के संदर्भ में निर्विरोध निर्वाचन वाली पंचायतों को आदर्श पंचायत के रूप में विकसित करने की बात कही थी। उन्होंने ऐसी पंचायतों के विकास कार्यों और सरकार की सभी जन-कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिलाने की मंशा भी जाहिर की थी। अनेक पंचायतों में निर्विरोध निर्वाचन की आज की स्थिति से यह स्पष्ट हुआ है कि ग्रामीण भाइयों ने निर्वाचन और आपसी प्रतिस्पर्धा से परे पंचायती क्षेत्र के विकास को तरजीह दी है।
पंचायत निर्वाचन में नामांकन-पत्रों की संवीक्षा में आश्चर्यजनक स्थिति देखने को मिली है। सीहोर जिले के विकासखंड नसरूल्लागंज की ग्राम पंचायत ससली, बडऩगर, अम्बाजदीद, मोगराखेड़ा, कोसमी और लावापानी में सरपंच पद के लिये निर्विरोध निर्वाचन की स्थिति बन गई है। इन ग्राम पंचायतों में सरपंच पद के लिये सिर्फ एक-एक उम्मीदवार ही मैदान में हैं, जिसमें 3 पंचायतें महिला वर्ग की हैं। इसी प्रकार सीहोर जिले के बुधनी विकासखण्ड में भी 3 ग्राम पंचायतें मढ़ावन, चीकली और जैत में भी निर्विरोध निर्वाचन की स्थिति बनी है। उल्लेखनीय है कि ग्राम पंचायत जैत मुख्यमंत्री चौहान का पैतृक गाँव भी है। जैत सहित सीहोर जिले की अन्य ग्राम पंचायतों में निर्विरोध निर्वाचन ग्रामीणों की एकता और विकास की सोच को दर्शाता है। धार जिले की कुक्षी तहसील के नर्मदा किनारे बसे ग्राम नवादपुरा ने पंचायत चुनाव में महिला सशक्तीकरण का नायाब उदाहरण प्रस्तुत किया है। यहाँ सरपंच और सभी दस पंच पद के लिए एक-एक महिला ने ही नाम निर्देशन-पत्र जमा किया हे। इससे सभी का निर्विरोध चुना जाना तय हो गया है।

नारीशक्ति ही पंच परमेश्वर
प्रदेश में पंचायत चुनाव की सरगर्मी और दावेदारी की लंबी कशमकश के बाद गांव की सरकार बनाने के लिए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव करवाए जा रहे हैं। लेकिन इस दौरान मप्र की कई ग्राम पंचायतों ने अपने पंच, सरपंच का चुनाव निर्विरोध कर लिया है। प्रदेश के कई जिलों में ऐसे मामले सामने आए हैं। खास बात यह है कि निर्विरोध चुनी गईं सभी पंच सरपंच महिलाएं हैं। यहां भी महिलाएं ही निर्विरोध चुनकर अपना परचम लहरा रही हैं। बुरहानपुर जिले के खकनार तहसील क्षेत्र के ग्राम मांजरोद में 60 साल से सरपंच निर्विरोध चुनते चले आ रहे हैं। इस बार गांव की सरकार जैसे सरपंच, उप-सरपंच सहित पंचों के पदों पर सभी महिलाएं चुनी गई हैं। इसके चलते पंचायत का नाम गिनीज बुक में दर्ज कराने की तैयारी भी की जा रही है। राज्य सरकार भी इस ग्राम पंचायत को 15 लाख रुपए की राशि देकर पुरस्कृत करेगी। वहीं बालाघाट की ग्राम पंचायत मांजरोद में बीते 60 सालों से आज तक यहां पर मतदान ही नहीं हुआ है। यहां हर बार निर्विरोध सरपंच चुनकर आते हैं। इस बार ग्राम सरकार के सभी पदों पर महिलाएं उम्मीदवार चुनी गई हैं। ग्रामीणों के मुताबिक गांव के प्रत्येक घर में पक्का शौचालय, बिजली और पानी के कनेक्शन हैं, सभी गली मोहल्ले में सीसी रोड, एक स्कूल, दो आँगनबाड़ी, एक जिम, दो मंगल भवन, ताप्ती नदी के दो और खोकरी नदी पर बने बैराज से सिंचाई के लिए पानी लाया गया है जिससे गांव में फसलें लहलहाती हैं। ग्राम पंचायत को वर्ष 2007 में राष्ट्रपति से निर्मल ग्राम का सम्मान मिल चुका है। इतना ही नहीं, इस गांव में शराब की बिक्री भी पूरी तरह बंद हैं। मांजरोद गांव में 60 साल से ग्राम सरकार निर्विरोध चुनी जा रही है। इस बार भी सरपंच और 12 पंच सहित सभी पदों पर महिलाएं ही काबिज हुई हैं। निर्विरोध ग्राम सरकार को अब अफसर भी मान रहे हैं। पंचायत अब इस रिकॉर्ड को गिनीज बुक में दर्ज कराने की तैयारी में है, इसलिए पूरे मापदंड जानने के बाद दस्तावेज उपलब्ध कराएंगे। बालाघाट में इस त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव ने गांव की लड़ाई को खत्म कर दिया और प्रतिद्वंद्विता की राह को एकता के हार में पिरो दिया है। बालाघाट के प्रत्येक ग्रामों में सरपंच, उप-सरपंच और पंच पद के लिए प्रत्याशियों ने नामांकन दाखिल किया है, लेकिन कुछ गांवों से चुनाव बहिष्कार के शोर भी सुनने मिल रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ कई पंचायतों से निर्विरोध पंच, सरपंच चुनकर नई मिसाल कायम किए जाने की खबरें भी सामने आ रही है। बालाघाट जनपद की ग्राम पंचायत बघोली में पूरी पंचायत बिना चुनाव के निर्विरोध आम सहमति से चुन ली गई। ये गांव एमपी शासन के आयुष मंत्री रामकिशोर कावरे का पैतृक गांव है। यहां उनके ऐतिहासिक निर्णय और ग्रामीणों की सर्वसहमति से बघोली पंचायत ने एक मिसाल कायम की है। यहां सभी 15 पंचायत में सरपंच और उप-सरपंच पद के लिए सिर्फ महिलाओं को प्राथमिकता दी गई और सभी पदों के लिए महिलाओं को निर्विरोध निर्वाचित कर दिया गया है।
वहीं सागर जनपद पंचायत की ग्राम पंचायत मोकलपुर में भी इस बार महिलाओं की ग्राम सरकार चलेगी। यहां गांव के लोगों ने महिला सरपंच और 20 वार्डों में सभी महिला पंचों को निर्विरोध चुना है। घूंघट में रहने वाली महिलाएं अब मोकलपुर ग्राम पंचायत की कमान संभालेंगी और विकास कार्य करेंगी। मोकलपुर में सरपंच पद अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित हुआ था। वहीं 10 वार्डों में पंच के पद महिलाओं के लिए आरक्षित थे। इसके बाद गांव के मुखिया और खनिज विकास निगम के उपाध्यक्ष राजेन्द्र सिंह मोकलपुर ने ग्रामीणों के साथ बैठकर निर्विरोध महिला पंचायत चुनने की पहल की। पूरे गांव ने एकमत होकर निर्विरोध सरपंच और महिला पंच चुनने पर सहमति जताई। इसके बाद गांव में निर्विरोध महिला सरकार चुनी गई। मोकलपुर ग्राम पंचायत में सरपंच पद के लिए साल 1977 यानी पिछले 45 सालों में सिर्फ दो बार मतदान हुआ है। बाकी सभी पंचायत चुनावों में निर्विरोध सरपंच चुने गए हैं। पिछली बार भी मोकलपुर ग्राम पंचायत निर्विरोध रही थी। निर्विरोध चुनी गईं सरपंच प्रेमरानी चढ़ार ने बताया कि गांव के लोगों ने मुझ पर भरोसा कर सरपंच बनाया है। गांव में हर विकास कार्य कराया जाएगा।

महिला सशक्तिकरण की मिसाल
इसी तरह मुरैना में भी निर्विरोध महिला सरपंच चुना गया है। जिले की तीन ग्राम पंचायतें महिला सम्मान और महिला सशक्तिकरण की मिसाल बनकर उभरी हैं। यहां सरपंच और पंच के पदों पर महिलाओं को निर्विरोध चुना गया है। मुरैना जिला संभवत: पूरे राज्य में पहला है, जहां तीन ग्राम पंचायतों में महिला प्रतिनिधियों को चुनावी जंग में निर्विरोध मैदान में उतारा गया है। वहीं आंवलीखेडा ग्राम पंचायत महिला वर्ग के लिए आरक्षित थी, जिसमें सरपंच से लेकर 10 पंच निर्विरोध चुने गए। उक्त ग्राम पंचायत आष्टा विकासखंड में निर्विरोध की सूची में दर्ज होगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की घोषणा के अनुसार इस ग्राम पंचायत को विकास कार्य के लिए 15 लाख रुपये निर्विरोध चुने जाने पर दिए जाएंगे। वहीं सीहोर, धार सहित प्रदेश के कई जिलों में मंगलवार को नामांकन पत्रों की जांच के बाद समरस पंचायत यानी निर्विरोध निर्वाचन की स्थिति बनी है।
प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में महिला सशक्तिकरण की तस्वीर नजर आ रही है। इस बार के पंचायत चुनावों में पुरुषों पर महिलाएं भारी हैं। प्रदेश की 112 पंचायतों में निर्विरोध सरपंच निर्वाचित हुए हैं। 112 में से 75 ग्राम पंचायतों में महिलाएं निर्विरोध सरपंच चुनी गई हैं। केवल 37 ग्राम पंचायतों में ही पुरुष सरपंच निर्विरोध चुने गए हैं। इस हिसाब से 67त्नमहिलाएं निर्विरोध चुनी गईं। निर्विरोध चुनी जाने वाली ग्राम पंचायतों को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सम्मानित करेंगे। प्रदेश में 22961 पंचायतें हैं। इसमें से अभी केवल 112 की ही सूची आई है। इसलिए इसलिए महिला सरपंचों की संख्या में इजाफा हो सकता है। जानकारी के मुताबिक, बुधनी जनपद की 9 ग्राम पंचायतों में सरपंच निर्विरोध चुने गए। उनमें ग्राम पंचायत मढ़ावन, ग्राम पंचायत चिकली, ग्राम पंचायत जैत, ग्राम पंचायत वनेटा, ग्राम पंचायत खेरी सिलगेंना, ग्राम पंचायत कुसुमखेड़ा, ग्राम पंचायत पीलीकरार, ग्राम पंचायत ऊंचाखेड़ा तथा ग्राम पंचायत तालपुरा शामिल हैं। इसी तरह नसरुल्लागंज जनपद की 17 ग्राम पंचायतों के प्रतिनिधि निर्विरोध चुने गए। इन ग्राम पंचायतों में ग्राम पंचायत पिपलानी, इटावाकला, चौरसाखेडी, बडनगर, रिछाडिया कदीम, गिल्लौर, छापरी, हाथीघाट, खात्याखेडी, आंबाजदीद, तिलाडिया, सीलकंठ, ससली, कोसमी, मोगराखेड़ा लावापानी तथा बोरखेडी शामिल हैं। इछावर जनपद में ग्राम पंचायत मायोपानी, सहारन, गाजाखेड़ी तथा जमुनिया हटेसिंह एवं आष्टा जनपद में आवलीखेड़ा एवं अतरालिया तथा सीहोर जनपद में आमला ग्राम पंचायत के सरपंच निर्विरोध चुने गए हैं। बुधनी जनपद के 6 वार्डों के जनपद सदस्य निर्विरोध चुने गए हैं। इसमें खाण्डाबड, जहानपुर, बनेटा, सरदारनगर, बोरना, बकतरा वार्ड शामिल हैं। नसरुल्लागंज जनपद के वार्ड क्रमांक 5 इटारसी से भी निर्विरोध जनपद सदस्य निर्वाचित हुए हैं।

प्रोत्साहन के साइड इफेक्ट
पंच तथा सरपंच के निर्विरोध निर्वाचन की सूरत में सात लाख की प्रोत्साहन राशि भी इस कोशिश की सफलता के लिए एक सार्थक प्रयास प्रतीत होता है। लेकिन शिवराज सरकार को इस काम के लिए एक फुलप्रूफ कार्यक्रम अभी से ठोक-बजाकर तैयार करना होगा। लोकतंत्र की सबसे छोटी इकाई ग्राम पंचायत के वातावरण को समरस बनाये रखने के नजरिये से मध्यप्रदेश में समरस पंचायतों को बढ़ावा देने का शिवराज सिंह चौहान का प्रयास तारीफ के काबिल है। पंचायतों में जहां सभी पदों पर महिलाओं के निर्विरोध निर्वाचन पर 15 लाख रुपए सहित अन्य तरीके की प्रोत्साहन राशियों की घोषणा की गई है, एक बड़ा कदम है। यह पूरी व्यवस्था में आधी आबादी के सशक्त प्रतिनिधित्व का रास्ता साफ करेगी, वहीं इसके माध्यम से मध्यप्रदेश देश में एक अलग पहचान स्थापित कर सकेगा। राज्य की शांति के टापू वाली छवि को भी इससे मजबूती मिलेगी। चौहान के तीन कार्यकाल में घोषणाओं को साकार रूप देते हुए कई नवाचार किये गए। चौथे कार्यकाल में पंचायत चुनावों में समरसता वाला प्रयोग भी इसी दिशा में एक उल्लेखनीय कदम है।
यह सभी जानते हैं कि बहुत छोटी इकाई होने के बाद भी पंचायत को राजनीतिक लांच पेड के रूप में बड़ा महत्व मिल चुका है। सियासी महत्वाकांक्षाओं के इस आरंभिक बिंदु को लेकर गहमागहमी वाला फैक्टर अब जबरदस्त खींचतान में बदल चुका है। कई जगह तो पंचायत चुनाव दुश्मनी की लंबी और नई कहानी लिख देते हैं। आशय यह कि पंचायत में मजबूती के माध्यम से अर्थ सत्ता तक अपनी जड़ गहरी करने का रास्ता साफ हो जाता है। इस के चलते भी पंचायत के चुनावों में माहौल का स्तर खींचतान से भी आगे घमासान वाला होता चला गया है। इसमें न हिंसा वाली बात डराती है और न ही अनुचित तरीकों के इस्तेमाल वाली खबरों में अब चौंकाने का माद्दा रह गया है। बल्कि होने यह भी लगा है कि इन चुनावों की प्रतिद्वंदिता और नतीजों से गांवों में ‘चुनावी रंजिश’ के भी सनसनीखेज प्रकरण सामने आने लगे हैं। यानी चुनाव के दौरान पनपे मतभेद और मनभेद अंतत: संगीन अपराध का कारण बन जा रहे हैं। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि राजनीतिक प्रदूषण के इस मकडज़ाल से कम से कम गांवों को मुक्त रखा जाए। अब जिला, प्रदेश या देश के स्तर पर तो समरस वाली थ्योरी को चुनावी समर में लागू किया नहीं जा सकता, लेकिन यह तो हो ही सकता है कि ‘मेरा गांव शांति का संदेश’ की दिशा में ही प्रयास कर लिए जाएं।