अंतिम समय तक टिकट… वितरण में उलझी रही भाजपा

कांग्रेस को भी सता रहा है बागियों का डर, बोले नाथ पांव पकड़कर मनाएं.

भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। यह पहला मौका है जब भाजपा को नाम वापसी के अंतिम दिन समय समाप्त होने से पहले तक प्रत्याशियों को बदलना पड़ा है। इसकी वजह से संगठन की क्षमता पर लोग सवाल खड़ा करने लगे हैं। उधर बागियों के मामले में भी तमाम कवायद के बाद भी कांगे्रेस व भाजपा दोनों को आंशिक सफलता ही मिल सकी है, जिसकी वजह से चुनाव प्रचार के जोर पकड़ते ही वार्डों में राजनैतिक समीकरण बदलना तय माना जाने लगा है। इसकी वजह से ही कांग्रेस के प्रदेश में मुखिया कमलनाथ को अपने प्रत्याशियों से यहां तक कहना पड़ गया है कि वे हर हाल में बागियों को मनाए और उन्हें साथ में लाने का प्रयास करें, भले ही इसके लिए उन्हें पैर ही क्यों न पकड़ना पड़ें।
उधर तमाम कवायद के बाद कई भाजपा कार्यकर्ता चुनावी मैदान से हटने को तैयार नहीं हुए हैं। इनमें से कई ने तो पार्टी के निलंबन के पहले ही प्राथमिक सदस्यता तक से इस्तीफा दे दिया है। बीते रोज नाम वापसी के साथ ही बी फार्म जमा करने का अंतिम दिन था। ऐसे में भाजपा समय समाप्त होने से दो घंटे पहले तक अपने तमाम शहरों में कई वार्ड प्रत्याशियों को ही बदलने में ही उलझी रही। खासतौर पर इस तरह के हालात भोपाल व इंदौर के मामले में बनते रहे हैं। उधर, सतना और खंडवा में मेयर पद के लिए लड़ रहे बागियों के साथ पार्षद पद के ज्यादातर दावेदारों ने नाम वापस ले लिए हैं, लेकिन छिंदवाड़ा में मेयर पद के दावेदार रहे भाजपा के जितेंद्र शाह ने नामांकन वापस नहीं लेकर भाजपा की मुश्किलें बड़ा रखी हैं। खास बात यह है कि बागियों को मनाने को जिम्मा भाजपा ने अपने बड़े नेताओं को दिया था, जिनमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान , प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के साथ संगठन महामंत्री हितानंद व प्रदेश महामंत्री भगवानदास सबनानी तक शामिल थे। भोपाल में बागियों को मनाने का काम जिलाध्यक्ष सुमित पचौरी, पूर्व सांसद आलोक संजर और आलोक शर्मा को भी दिया गया था।
महज तेरह दिन का मिला समय
नाम काटने व जोड़ने की वजह से भाजपा व कांग्रेस प्रत्याशियों को महज प्रचार के लिए तेरह दिनों का ही समय मिला है। प्रत्याशियों की सूची जारी होने के बाद भी उम्मीदवारों को अपना चार दिन का समय टिकट बचाए रखने में ही लगाना पड़ा। अब आज से प्रचार का काम शुरू हो रहा है। इसमें एक दो दिन तो प्रत्याशियों को योजना बनाने से लेकर तमाम तरह की व्यवस्थाओं को जुटाने में ही लगाना पड़ रहा है। भोपाल व इंदौर में औसतन हर वार्ड में बीस हजार मतदाता हैं, जिनके पास दस दिनों में पहुंचना मुश्किल रहने वाला है। इतना जरुर है कि कुछ वार्ड जरुर कम मतदाताओं वाले हैं , लेकिन उनमें भी दूर दराज की कालोनियां होने की वजह से मुसीबत बनेंगी। अगर भोपाल की बात की जाए तो हर दिन औसतन रुप से प्रत्याशी को डेढ़ हजार से अधिक मतदाताओं तक पहुंचना होगा।
यदि वे ऐसा कर पाए तो मतदान के एक दिन पहले तक यानी पांच जुलाई तक अपना प्रचार पूरा कर लेंगे। हर मतदाता तक अपनी बात पहुंचाने वाला ही जीत के दरवाजे तक पहुंच पाएगा। इनमें वार्ड 83 सनखेड़ी में 26 हजार 271 मतदाता वार्ड 79 नबीबाग में 23 हजार 898, वार्ड 73 भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल में 24 हजार 137, वार्ड 75 बड़वई में 25 हजार 550, वार्ड 68 अयोध्या में 25,056 मतदाता हैं। अगर कम मतदाताओं वाले वार्ड की बात की जाए तो वार्ड 50 गुलमोहर में 13 हजार 11, वार्ड 58 कस्तूरबा में 13 हजार 406, वार्ड 3 भौंरी में महज 11 हजार 183 और वार्ड 31 छत्रपति शिवाजी वार्ड में 13 हजार 711 मतदाता है। इस तरह से भोपाल शहर में कुल 17 लाख छह हजार 637 मतदाता हैं।
इंदौर में फिर हुई किरकिरी
इंदौर के वार्ड 75 का टिकट में फेरबदल की वजह बनी है भाजपा प्रत्याशी द्वारा धर्म परिवर्तन करने का खुलासा होना। उसने कुछ दिन पहले ही हिन्दु की जगह ईसाई धर्म अपना लिया था। इसका पता स्थानीय संगठन के साथ ही सभी स्थानीय नेताओं को होने के बाद भी पार्टी ने प्रिया गवलाने को अधिकृत प्रत्याशी घोषित कर दिया था, जिसके चलते उसके द्वारा नामांकन भी भर दिया गया था, लेकिन बाद में शिकावा -शिकायत होने के बाद उन्हें बी-फॉर्म नहीं दिया गया। उनकी जगह पूर्व पार्षद बसंत पारगी को अधिकृत उम्मीदवार बनाया गया है। इसके पहले पार्टी को एक और प्रत्याशी को बदलना पड़ा था। पार्टी ने एक अपराधी की पत्नी को टिकट थमा दिया था, जिसे बदनामी होने के बाद बदलना पड़ गया था। इसी तरह से भोपाल के वार्ड 18 में पंकज चौकसे ने प्रचार शुरू कर दिया था, लेकिन नाम वापसी के आखिरी दिन पार्टी ने उनकी जगह राजू कुशवाहा को बी-फॉर्म दे दिया।
रणक्षेत्र में बागियों ने ठोकी ताल
निकाय चुनाव में अब कांग्रेस और भाजपा को बागियों से अपने अधिकृत प्रत्याशियों के लिए खतरा बना हुआ है। लगभग सभी वार्ड में पार्षद का चुनाव लड़ने वाले दावेदारों की बड़ी सूची है। डैमेज कंट्रोल के तहत अब बागियों को घर-घर जाकर मनाने का प्रयास किया जा रहा है। बागियों को भरोसा दिया जा रहा है कि जल्द ही उन्हें सत्ता एवं संगठन में कोई न कोई पद देकर सम्मान बनाए रखा जाएगा। भोपाल के वार्ड-4 से चंदू इसरानी का बीजेपी से टिकट कटने के बाद उनके छोटे भाई कन्हैयालाल इसरानी ने निर्दलीय के तौर पर ताल ठोक दी है। बैरागढ़ कपड़ा व्यापारी एसोसिएशन के अध्यक्ष इसरानी के अलावा हरीश बिनवानी, किशोर ने भी नाम वापस नहीं लिया। इसी तरह से कांग्रेस की बागी अंजली ठाकुर वार्ड-26 से, वार्ड-42 से पूर्व पार्षद रेहान गोल्डन मैदान में बने हुए हैं। बीते रोज नाम वापसी के समय दिग्विजय अलग अलग वार्डों में लोगों को फोन कर कांग्रेस प्रत्याशियों के पक्ष में नाम वापस कराते रहे। वे भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, मुरैना से जानकारियां लेते रहे।