कोयला खदानों की वजह से कमाई के मामले में मार रहा बाजी.
भोपाल। भलें ही सिंगरौली जिला दूरदराज में है, लेकिन अब यह जिला पुलिस अफसरों के लिए खासतौर पर पहली पंसद के रुप में सामने आ रहा है। इस मामले में अब इंदौर जिले को सिंगरौली ने पीछे छोड़ दिया है। दरअसल पहले मलाई के मामले में पुलिस के लिए इंदौर जिले को प्रदेश में सबसे अच्छा माना जाता रहा है, लेकिन बीते कुछ सालों से इस मामले में सिंगरौली ने इंदौर को पछाड़ दिया है। इसकी वजह है इस जिले में पाया जाने वाला काला हीरा यानि की कोयला। यही वजह है कि अब पुलिस अफसर अपनी पदस्थापना सिंगरौली जिले में कराने के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं। इनमें वे अफसर खासतौर पर शामिल हैं जो राजनैतिक व प्रशासनिक स्तर पर विभाग में रसूखदार माने जाते हैं। यही वजह है कि इस तरह के ताकतवर माने जाने वाले पुलिस अफसर पदस्थापना अपनी चाहत के हिसाब से करा लेते हैं। अपवाद स्वरुप जरुर कुछ समय को छोड़ दिया जाए तो वे अधिकांश समय मनचाही पदस्थापना कराने में सफल भी रहते हैं। यही वजह है कि ऐसे कई पुलिस अफसर है जिनकी अब तक की नौकरी उनकी पसंद वाले स्थानों पर ही हुई है। यह बात अलग है कि सिंगरौली के पहली पसंद बनने के बाद भी इंदौर में नौकरी करने की इच्छा रखने वाले अफसरों की संख्या कम नहीं हुई है। अब बहुत सारे अधिकारी सिंगरौली जिले में पदस्थापना की हसरत पाले हुए हैं , लेकिन जो वहां पहले से जमे हुए हैं , वे हटना नहीं चाहते हैं, जबकि दूसरे अफसर वहां पदस्थ होना चाहते हैं। यह बात अलग है कि एक ही जगह लंबे समय तक किसी अफसर के पदस्थ रहने की वजह से गंभीर अपराध बढ़ जाते हैं। इसका उदाहरण सिंगरौली में एएसआई अरविंद चतुर्वेदी की पिटाई का है। सिंगरौली जिले के मोरबा थाने के एएसआई को ट्रक ड्राइवरों ने पहले लात-घूसों और लाठी-डंडो से जमकर पीटा और फिर वीडियो बनाकर वायरल कर दिया एएसआई का दलील थी कि वे जाम खुलवाने गए थे और ड्राइवरों का दावा था कि वे वसूली करने के लिए आए थे। विवाद के बाद एएसआई और थाना प्रभारी मनीष त्रिपाठी सहित थाने के चार पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया था। दरअसल इस विवाद के पीछे की वजह ट्रांसपोर्टरों की आपसी कलह बताई जा रही है। सिंगरौली में कोयला परिवहन का काम दो ग्रुपों द्वारा किया जाता है। जिसमें एक स्थानीय तो दूसरे बाहरी हैं। स्थानीय नहीं चाहते हैं कि बाहर की गाड़ियां संचालित हों। इसकी वजह से विवाद होता है। पुलिस भी अपना फायदा ज्यादा से ज्यादा वाहनों के संचालन में देखती है , जिसकी वजह से वह इस मामले में तटस्थ ही रहती है। ऐसे मामलों में पुलिस के आला अफसर तक हस्तक्षेप नहीं करते हैं। इस जिले में कई ऐसे अफसर हैं, जिन्हें तीन साल से ज्यादा का वक्त हो गया है, लेकिन सरकार और पीएचक्यू के आला अफसर उन्हें हटाने को तैयार नजर नहीं आते हैं। चुनाव के समय जरुर उन्हें आयोग के डर से हटाया जाता है, लेकिन बाद में फिर उनकी पदस्थापना वहीं कर दी जाती है। हालात यह हैं कि सिंगरौली सहित कई शहरों में निरीक्षक से लेकर डीएसपी स्तर तक के अफसर थोड़ा समय दूसरी जगह बिताकर फिर अपनी पदस्थापना वहीं करा लेते हैं। मोरबा थाना प्रभारी रहते निलंबित हुए मनीष त्रिपाठी लंबे समय से वहीं पदस्थ थे। मोरबा थाना प्रभारी यूपी सिंह, गढ़वा थाना प्रभारी अनिल उपाध्याय, माड़ा थाना प्रभारी नागेंद्र सिंह, बरगवां थाना प्रभारी आरपी सिंह, विंध्य नगर थाना प्रभारी शंखधर द्विवेदी लंबे समय से जिले में ही एक ही थाने में पदस्थ हैं। इसी तरह से पुलिस लाइन में समय निकाल रहे संतोष तिवारी भी ऐसे ही निरीक्षक हैं। यह वे अफसर हैं , जो तबादला होने के कुछ ही दिनों बाद सिंगरौली में पदस्थ हो जाते हैं। गौरतलब है कि करीब तीन साल पहले उज्जैन शराब कांड के बाद अपर मुख्य सचिव गृह डा. राजेश राजौरा ने अपनी जांच रिपोर्ट में खुलासा किया था कि लंबे समय से जमे अफसरों और पुलिसकर्मियों के कारण वारदात हुई है।
दिखानी होगी त्रिपाठी जैसी हिम्मत
अगर माफिया के साथ ही अपराधों पर नियंत्रण करना है तो पुलिस के मुखिया को पूर्व डीजीपी एससी त्रिपाठी की राह पर चलना होगा, जो कतई आसान नहीं है। दिग्विजय सिंह सरकार के समय डीजीपी रहे एससी त्रिपाठी ने तीन साल से अधिक समय तक एक जिले और दस साल से अधिक समय तक एक जोन में पदस्थ रहे पुलिस अधिकारियों व कर्मचारियों को हटा दिया था। उनके इस आदेश के पालन के चलते तब काफी हो हल्ला मचा था। यहां तक उन पर बेहद राजनैतिक दवाब भी डाला गया था , लेकिन उन्होंने नियम के बाहर जाने से साफ इंकार कर दिया था। उस समय यह भी कहा गया था कि एक साथ सभी को हटाने से व्यवस्था बिगड़ जाएगी, लेकिन व्यवस्था में बेहद सुधार हुआ था। इसकी वजह से माफिया व पुलिस का गठजोड़ भी लगभग टूट गया था। लेकिन अब परिस्थितियां पूरी तरह से बदली हुई नजर आती हैं।
यह जिले भी आते हैं पसंद
प्रदेश में सिंगरौली और इंदौर के अलावा एक दर्जन अन्य जिले भी पुलिस अफसरों को पसंद हैं। जो अफसर इंदौर व सिंगरौली में पदस्थापना पाने में सफल नहीं हो पाते हैं, वे मंदसौर, नीमच , धार, झाबुआ, होशंगाबाद कटनी और भोपाल जैसे जिलों में पदस्थापना करा लेते हैं। दरअसल इन जिलों की पंसद की वजहें अलग-अलग हैं।