बड़ी मछलियों पर हाथ डालना भारी पड़ा आईपीएस मकवाना को

छह माह में ही कर दिया गया तबादला.

भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। बड़ी मछलियों पर हाथ डालने वाला अफसर कभी भी सरकारों व संस्थाओं को पसंद नही आता है, लेकिन वह जनता की पंसद बन जाता है। इसका उदाहरण हं,ै बीते रोज ही हटाए गए लोकायुक्त संगठन में पदस्थ विशेष महानिदेशक कैलाश मकवाना। उन्हें महज छह माह में ही लोकायुक्त से हटाकर पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन में अब अध्यक्ष बना दिया गया है। वे ऐसे अफसर हैं, जहां भी पदस्थापना मिली वहां पर उन्होंने अपने काम की दम पर झंडे जरुर गांड़े हैं। यह बात अलग है कि उनकी यही कार्यशैली सरकार व शासन को पसंद नही आती है और कुछ समय बाद ही उन्हें चलाता कर दिया जाता है।
भले ही वे रसूखदारों को पंसद नही आते हैं, लेकिन वास्तविकता में सरकार व शासन दोनों पर आमजन की पंसद के मामले में भारी पड़ते हैं। दरअसल लोकायुक्त में पदस्थापना के बाद उनके द्वारा भ्रष्टाचारियों पर जिस तरह से नकेल कसने के लिए मातहत अफसरों को खुली छूट दी गई थी, उसके बाद से रिश्वतखोर अफसरों पर शामत आनी शुरू हो गई थी। यही नहीं उनके द्वारा छोटी मछलियों की जगह बड़ी मछलियों पर भी श्ािंकजा कसा जाने लगा था। बीते कुछ दिनों में उनकी कार्रवाई के निशाने पर सूबे के सबसे शक्तिशाली सेवाओं के अफसर आना शुरू हो गए थे। इसके बाद से ही माना जा रहा था कि उनकी विदाई जल्द हो सकती है और हुआ भी वही। कुछ दिन पहले ही महज तीन दिन में निवाड़ी कलेक्टर तरुण भटनागर और आईएफएस अफसर पर मामले दर्ज किए गए थे। यही नहीं उनके द्वारा सालों पुरानी उन फाइलों को भी खंगालना शुरू कर दिया गया था, जिसमें कई बड़ी मछलियों के फंसने की संभावना बन रही थी। माना जा रहा है कि उन्हें हटाने की एक बड़ी वजह यह भी है। दरअसल प्रदेश में जांच एजेंसियों पर यह आरोप लगते रहते हैं कि उनके द्वारा बड़ी मछलियों को छोड़कर महज छोटी मछलियों को ही पकड़ा जाता है उनमें भी वे छोटी मछलियां होती है, जिनका कोई रसूख नहीं होता है। इस बात को बल इससे ही मिलता है की बीते लंबे समय से प्रदेश में अखिल भारतीय सेवा के किसी अफसर के खिलाफ लोकायुक्त व ईओडब्ल्यू द्वारा छापा तक नहीं डाला गया है। यही नहीं उनके खिलाफ आने वाली शिकायतों को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। मकवाना की कार्यशैली ऐसी है कि वे सबसे पहले बड़ी मछलियों पर ही हाथ डालते हैं। हाल ही में 19 अक्टूबर 2022 को उद्यानिकी एवं प्रक्षेत्र वानिकी मध्यप्रदेश के तत्कालीन डायरेक्टर व आईएफएस अफसर सत्यानंद सहित 15 अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था। ठीक तीन दिन बाद 21 अक्टूबर को विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण के तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी व मौजूदा निवाड़ी कलेक्टर तरुण भटनागर के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है, जिसमें साडा के पूर्व अध्यक्ष व भाजपा नेता राकेश जादौन समेत आठ को नामजद आरोपी बनाया गया था। लोकायुक्त संगठन में किसी आईएएस और आईएफएस अफसर के खिलाफ लंबे अंतराल के बाद यह मुकदमा दर्ज किया गया है। माना जा रहा है कि यह कार्रवाई मकवाना का सख्ती और ईमानदारी की वजह से ही की गई थी। सूत्र बताते हैं कि दोनों एफआईआर होने के बाद मकवाना के खिलाफ नाराजगी बढ़ने लगी थी। आग में घी काम पुरानी फाइलों ने कर दिया है। मकवाना ने लोकायुक्त संगठन में लंबित फाइलों को खंगालना शुरू कर दिया था। बताते हैं कि नब्बे के दशक तक की कई फाइलें धूल खा रही थीं। साल 2000 के बाद की फाइलों का तो अंबार था। मकवाना ने सारी फाइलें बुलाकर खुद पढ़ना शुरू कर दिया था। इन फाइलों में बहुत सारे आईएएस समेत तमाम अफसरों के राज दफन हैं। सूत्रों की माने तो मकवाना के पुरानी फाइलें खंगालने की भनक प्रशासनिक हल्के तक पुहंच गई थी, जिसके बाद से ही हड़कंप मचना शुरू हो गया था। दरअसल प्रशासनिक अफसर नहीं चाहते हैं कि पुरानी फाइलों को खोला जाए। इसकी वजह भी है कि अगर पुरानी फाइलों को खोला गया तो कई सनसनीखेज दफन राज बाहर आ जाएंगे। अखिल भारतीय स्तर के दो अफसरों के खिलाफ मुकदमा दर्ज होने के बाद से ही पूरे सिस्टम पर डर बैठ गया था। नतीजन मकवाना को वहां से चलता कर दिया गया। लोकायुक्त डीजी बनाते ही मकवाना ने पहली बैठक में मातहतों को साफ कर दिया था कि किसी भी अधिकारी और कर्मचारी जबरन परेशान नहीं किया जाए। बड़ा और छोटा नहीं देखा जाए, दस्तावेजों और साक्ष्यों के आधार पर निष्पक्ष कार्रवाई की जाए। उन्होंने मातहतों से यह भी कहा था कि सबूत मिलने पर आईपीसी की धारा के तहत कार्रवाई की जाए। उनके द्वारा साफतौर पर कह दिया गया था कि संगठन में भी पदस्थ कोई भी अधिकारी और कर्मचारी गड़बड़ करता है अथवा सबूतों को नष्ट करता है अथवा उस पर कार्रवाई नहीं करता है, तो उसके खिलाफ भी इसी तरह की सख्त कार्रवाई की जाएगी। इसे लोकायुक्त संगठन में भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग की शुरूआत के रुप में देख जा रहा था। मकवाना ने लोकायुक्त के सभी पुलिस अधीक्षकों को सख्त कार्रवाई के लिए पत्र लिखा था। यह भी कहा था कि एसपी अपने मातहतों को पत्र को पढ़ाएं और उनके हस्ताक्षर कराकर इस कार्यालय को लौटाएं। मकसद यह था कि सही कार्रवाई किए जाने की जानकारी विभाग में पदस्थ सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को होनी चाहिए। पहली बार ऐसा हुआ है, जब नीचे वालों की जिम्मेदारी तय की गई थी।
एसपी रहते आईएएस थेटे को कर चुके हैं गिरफ्तार
मकवाना को मध्य प्रदेश कैडर के तेजतर्रार सख्त और ईमानदार अफसरों में शुमार किया जाता है। भोपाल में लोकायुक्त एसपी रहते हुए मकवाना ने सीधी भर्ती के आईएएस अफसर रमेश थेटे को एक लाख रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ गिरफ्तार किया था। उसके बाद से आज तक सीधी भर्ती के किसी भी आईपीएस अफसर को लोकायुक्त पुलिस में एसपी के तौर पर पदस्थ नहीं किया। अब लोकायुक्त व ईओडब्ल्यू में एसपीएस अफसर पदस्थ होते हैं। थेटे के बाद सीधी भर्ती के कोई भी आईएएस अफसर रिश्वत लेते हुए भी नहीं पकड़ा गया है।
सोशल मीडिया पर भी छाए: तबादले के बादसे मकवाना सोशल मीडिया पर छाए हुए हैं। तबादला ओदश के बाद उसकी कापी मकवाना ने अपने ट्विटर पर पोस्ट किया । इसके कुछ देर बाद उनके द्वारा अपने एक वरिष्ठ अफसर का संदेश भी ट्वीट किया गया, जिसमें उन्हें बधाई दते हुए अफसर ने लिखा है कि आपने छह माह में ही लोकायुक्त में जादू कर दिया, आज भ्रष्ट अधिकारियों में मकवाना नाम की दहशत है। बीते तीन दशक में किसी ने इतना बड़ा नाम नहीं कमाया है। यही नहीं इस तबादले पर उनकी बेटी ने भी ट्वीट कर अपनी भावनाएं व्यक्त की है। इसमें उनके द्वारा बहुचर्चित शेर को लिखा गया है। यह शेर है ,उसूलों पर जहां आंच आए तो टकराना ज़रूरी है, जो जिंदा हो तो फिर जिंदा आना जरूरी है। मुझे पापा पर गर्व है। मकवाना की कार्यशैली और उनके तबादले को लेकर फेसबुक से लेकर अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्मों तक पर भी रात से ही लोग अपने-अपनी टिप्पणियां कर रहे हैं।
यह ट्वीट भी रह चुका चर्चा में: आईपीएस मकवाना प्रदेश के ऐसे अफसरों में शामिल हैं जो रिश्वत को केवल अपराध ही नहीं बल्कि पाप भी मानते हैं। लोकायुक्त में पदस्थापना से कुछ दिनों पहले उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा था कि, रिश्वत अकेले नहीं आती। देने वाली की बद्दुआ, मजबूरियां, दुख, वेदना, क्रोध, तनाव, चिंता भी नोटों में लिपटी रहती है।