आखिर मध्यप्रदेश में… भ्रष्ट अफसरों पर कौन है मेहरबान

ईओडब्ल्यू में 15 सौ से अधिक शिकायतों में प्राथमिकी का इंतजार.

भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। मप्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति लागू है, लेकिन उसके बाद भी भ्रष्टाचारियों को संरक्षण मिल रहा है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) में 15 सौ से अधिक शिकायतों में प्राथमिकी का इंतजार है। जबकि इस वर्ष शिकायतों पर जांच के बाद सौ से ज्यादा मामलों में प्राथमिकी दर्ज की गई है। ऐसे में सवाल उठने लगा है कि मप्र में भ्रष्ट अफसरों पर कौन मेहरबान है। ये सवाल इसलिए क्योंकि भ्रष्ट अधिकारी-कर्मचारियों के खिलाफ जांच की मंजूरी नहीं मिल रही है।
जानकारी के अनुसार ईओडब्ल्यू में इस वर्ष शिकायतों पर जांच के बाद सौ से ज्यादा मामलों में प्राथमिकी दर्ज की गई है। इसके बाद भी अभी 15 सौ से ज्यादा शिकायतें लंबित हैं। इनमें सबसे पुराने प्रकरण 2008 के हैं, यानी 13 साल बाद भी प्राथमिकी दर्ज नहीं हो पाई है। इसका लाभ आरोपितों को मिल रहा है। जांच में देरी की बड़ी वजह यह है कि जांच एजेंसी के पास स्वीकृत अमले में से 60 प्रतिशत की कमी है। दूसरी बात यह है कि कोरोना संक्रमणकाल में लॉकडाउन की वजह से भी कार्य प्रभावित हुआ है। ईओडब्ल्यू में अब तक सौ से ज्यादा मामलों में प्राथमिकी दर्ज हो चुकी है, जो जांच एजेंसी के गठन से लेकर अब तक में सर्वाधिक है।

इस मामले में भी नहीं मिली अभियोजन की मंजूरी
आईएएस पवन जैन के खिलाफ केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) की सलाह के बाद शासन ईओडब्ल्यू को केस चलाने की मंजूरी देगा। सामान्य प्रशासन विभाग पत्र लिखकर डीओपीटी से इस मामले में सलाह लेगी। ईओडब्ल्यू ने इंदौर से जुड़े 7 साल पुराने मामले में चालान पेश करने के लिए शासन से अभियोजन की स्वीकृति मांगी है। डीओपीटी से अभियोजन की स्वीकृति के बाद ही आगे की कार्रवाई हो सकेगी। तत्कालीन एसडीओ राजस्व पवन जैन पर रियल स्टेट के लोगों से सांठगांठ कर पर्यवेक्षण शुल्क जमा करने का आरोप है।

ईडी ने इस मामले में दिया दखल
इस बीच सिंचाई परियोजनाओं में 800 एकड़ के घोटाले का मामला भी चर्चा में आ गया है। इस मामले में अब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का दखल हुआ है। ईडी ने जो ईओडब्ल्यू से एफ आई आर की कॉपी मांगी है। ईओडब्ल्यू ने इसी साल बिना काम 800 करोड़ एडवांस भुगतान के मामले में एफ आई आर दर्ज की थी। ईडी ने प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत एफ आई आर की कॉपी मांगी है। एफ आई आर की कॉपी के आधार पर ब्लैक मनी के एंगल पर जांच होगी।

कांग्रेस-भाजपा आमने सामने
इस मुद्दे को लेकर भाजपा कांग्रेस आमने-सामने आ गए हैं। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता अजय सिंह यादव ने कहा कि मध्य प्रदेश में भाजपा भ्रष्टाचार तंत्र को संरक्षण दे रही है। ऊपर तक इनकी मिलीभगत है इसलिए , भ्रष्ट अधिकारियों के मामले में अभियोजन की स्वीकृति नहीं दी जा रही है। इससे स्पष्ट है कि सरकार भ्रष्टाचारियों का संरक्षण और उनका बचाव कर रही है। कांग्रेस के आरोपों पर पलटवार करते हुए प्रदेश भाजपा संगठन मंत्री रजनीश अग्रवाल ने कहा अभियोजन स्वीकृति देने की एक प्रक्रिया होती है। इसके लिए तमाम पैरामीटर होते हैं। बीजेपी सरकार भ्रष्टाचारियों के खिलाफ समझौता नहीं करती है कार्रवाई लगातार जारी है किसी को बख्शा नहीं जाएगा।
280 अफसरों के खिलाफ पेश नहीं हो पा रहे चालान
प्रदेश में सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त तो है ,लेकिन लोकायुक्त को भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ चालान पेश करने की मंजूरी नहीं दे रही है। ऐसे करीब 280 अफसर हैं जिनके खिलाफ ईओडब्ल्यू को शिकायत मिली है। लेकिन शासन की मंजूरी न मिलने के काऱण इनके खिलाफ चार्जशीट ही पेश नहीं हो पा रही। कई बार पत्राचार के बावजूद संबंधित विभाग अभियोजन की स्वीकृति में आनाकानी कर रहे हैं। कुछ विभाग तो लोकायुक्त की चिट्ठी का जवाब तक नहीं दे रहे। लोकायुक्त संगठन को ऐसे कई अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ जांच शुरू करने का इंतजार है। इजाजत नहीं मिलने की वजह से भ्रष्टाचार के 15 केस 9 साल से लंबित हैं। सबसे ज्यादा नगरीय आवास और विकास विभाग के लगभग 31 मामले लंबित हैं। सामान्य प्रशासन विभाग और पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के 29-29 मामले लंबित हैं। वहीं राजस्व विभाग के 25 और स्वास्थ विभाग के 17 मामले लंबित हैं। अभियोजन स्वीकृति समय पर नहीं मिलने के कारण चार्जशीट पेश करने में देर हो रही है। वैसे नियम के अनुसार अधिकतम 4 महीने में अभियोजन की स्वीकृति मिलनी चाहिए।

इस वर्ष 110 प्राथमिकी
शिकायतों की जांच के बाद प्राथमिकी दर्ज की जाती है। पिछले वर्षों में प्राथमिकी का आंकड़ा औसतन 50 से 60 के बीच रहता था। 2021 में 91 मामलों में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। इस वर्ष यह संख्या 110 तक पहुंचने की उम्मीद है। जांच एजेंसी के पास हर वर्ष पांच से सात हजार शिकायतें पहुंचती हैं। शिकायतों का परीक्षण किया जाता है। इनमें अधिकतम 10 प्रतिशत पर ही जांच शुरू हो पाती है। साक्ष्य के अभाव में या फिर आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ से संबंधित नहीं होने से बाकी शिकायतों पर ईओडब्ल्यू जांच करने की जगह संबंधित विभाग को भेज देता है। इस वर्ष 400 शिकायतों पर जांच शुरू हो चुकी है। 2021 में यह आंकड़ा 289 था। प्राथमिकी दर्ज होने में देरी की एक वजह यह भी होती है कि राज्य शासन से अभियोजन की स्वीकृति मिलने में विलंब होता है। हर समय औसतन 100 से ज्यादा मामलों में अभियोजन की स्वीकृति लंबित रहती है। इनमें बैंकों से सेवानिवृत्त हो चुके अधिकारी-कर्मचारियों के भी ज्यादा मामले हैं। शासन से एक बार में 10 से 15 मामलों में ही अभियोजन की अनुमति मिल पाती है।