ये तीनों प्रश्नवाचक चिन्ह तो रहेंगे…

निकाय चुनाव में दिखा चुके हैं अपनी ताकत …

भोपाल.मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। मध्यप्रदेश ऐसा राज्य है जहां पर दो दलीय राजनीति का ही दबदबा हमेशा से रहा है, लेकिन इस बार भाजपा व कांग्रेस के बीच होने वाले चुनावी समर में कई अन्य दल भी अपनी ताकत दिखाने की पूरी तैयारी कर रहे हैं। इनमें खासतौर पर जयस, आप के अलावा ओवैसी की पार्टी शामिल है। यह तीनों दल कितने सफल होते हैं यह अनुमान लगाना अभी कठिन हैं , लेकिन कांग्रेस व भाजपा के लिए वे प्रश्न वाचक चिन्ह तो बने ही हुए हैं। इन तीनों ही दलों पर अभी से सभी की निगाहें बनी हुई हैं। इसकी वजह है नगरीय निकाय व पंचायत चुनाव में इन दलों द्वारा अपनी ताकत दिखाना। इन दलों ने भले ही इन दोनों ही चुनावों में मामूली अपनी ताकत दिखाई है , लेकिन वे कई जगहों पर हार जीत का गणित बिगाड़ने में जरुर सफल रहे हैं। प्रदेश में चुनाव अमूमन नवंबर में होता आया है और मध्य दिसम्बर तक नया – मुख्यमंत्री शपथ ले लेता है। इस बार भी राजनीतिक सीन कुछ ऐसा ही रहने वाला है। प्रदेश में पांच साल पहले की राजनीति में भी इस बार कुछ नहीं बदला है। 2018 के चुनाव में शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री थे और कमलनाथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष। कमोवेश इस बार भी यही स्थिति है। इस बार हालात अगर बदले हैं तो इतने कि नगरीय निकाय चुनाव में आप की एंट्री। यह एंट्री ज्यादा प्रभावी भले ही न हो पर उसने एक जगह मेयर और कई स्थानों पर पार्षद का चुनाव जीत कर अपनी उपस्थिति का अहसास कराया है। इसके अलावा जयस के प्रभाव और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को मिलने वाले मतों पर दोनों दलों की नजर बनी हुई है। यह दल भले ही चुनाव न जीत पाए पर वोट काटू जरूर साबित हो चुके हैं। इस सच को दोनों दल गहराई से समझ रहे हैं। लिहाजा इनकी भूमिका पर इस बार दोनों दलों की नजर रहने वाली है। यह साल प्रदेश में राजनीतिक दृष्टि से उथल पुथल भरा रहने वाला है। नगरीय निकाय चुनावों ने कांग्रेस को हल्की ऊर्जा जरूर दी है पर उसे अब भी अपने कुछ बड़े नेताओं के खिसकने का भय सता रहा है। इसकी वजह है बीते तीन सालों में उसके कई नेताओं ने पार्टी का अलविदा कहा है। हालांकि इसी तरह की स्थिति चुनाव के समय भाजपा की रहने की भी संभावना बनी हुई है। इसकी वजह मानी जा रही है श्रीमंत की टीम। जिनकी वजह से कई नेताओं को इस बार टिकट से वंचित रहना पड़ सकता है। अगर आप की बात की जाए तो उसने सिंगरौली में महापौर का चुनाव जीता तो ग्वालियर में उसके महापौर प्रत्याशी ने पचास हजार के करीब मत लेकर राजनीतिक पंडितों को बेहद चौंकाया है। इसके अलावा कई नगरपालिका और नगरपरिषदों में भी आप के पार्षद जीते हैं। ऐसे में आप पर दोनों दलों की नजर है। जय आदिवासी युवा संगठन ने भी पिछले सालों में मालवा और निमाड़ अंचल में अपना प्रभाव तेजी से बढ़ाया है। इस बार जयस अपनी दम पर चुनावी मैदान में उतरने की हुंकार अभी से भर रही है। इसकी वजह से भाजपा और कांग्रेस अभी से सर्तकता बरत रहे हैं। बात अगर ओवैसी की पार्टी की करें तो निकाय चुनाव में कुछ स्थानों पर वोट काटे थे। इस पर भाजपा से ज्यादा कांग्रेस की नजर है। इसका कारण भी है। मुस्लिम वोट प्रदेश में अब तक थोकबंद रूप से कांग्रेस का माना जाता है। ओवैसी की पार्टी को जो मत मिलेंगे , उससे कांग्रेस को ही नुकसान होना है। इधर आप भले ही चुनाव न जीत पाए पर इतना तय है कि एक दर्जन से अधिक सीटों पर उसके प्रत्याशी इन दोनों दलों का खेल जरूर बिगाड़ देंगे। आश्चर्य नहीं कि इस बार होने वाले कांटे के चुनाव में ये सीटें ही किसी दल की सत्ता जाने या मिलने की वजह बन जाए। हालांकि जब सत्ता विरोधी वोट बंटते हैं तो इसका ज्यादा फायदा सत्ताधारी दल को ही मिलता है। वैसे भी आप जहां बढ़ रही है वहां कांग्रेस को अधिक नुकसान होता दिख रहा है। इसका उदाहरण पंजाब, गुजरात के विधानसभा चुनाव और दिल्ली के एमसीडी चुनाव है। गुजरात में कांग्रेस की जो हालत हुई उसमें आप की भी कहीं न कहीं भूमिका है। दिल्ली में भी आप के कारण कांग्रेस तीसरे नंबर पर पहुंच गई। अब चुनाव में महज दस महीने का समय बचा है। तय है कि भाजपा की चुनावी कमान एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान संभालेंगे तो कांग्रेस में कमलनाथ एक बार फिर सीएम का चेहरा होंगे।