वरिष्ठता सूची में भारी गड़बड़झाला, हेडमास्टर हो रहे परेशान…
भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा वाली कहावत पूरी तरह से स्कूल शिक्षा विभाग पर लागू होती है। यह प्रदेश का ऐसा विभाग है ,जो अफसरों की कार्यशैली की वजह से हमेशा चर्चा में बना रहता है। फिर मामला तबादलों का हो या फिर अन्य किसी का। ऐसा ही एक ताजा मामला प्रधानाध्यापकों की वरिष्ठता सूची का सामने आया है। इसमें उनको भी नौकरी करते हुए बता दिया गया है, जो अब या तो इस दुनिया में नहीं हैं या फिर सेवानिवृत्त हो चुके हैं। दरअसल इस तरह के पूर्व कर्मचारियों को भी वरिष्ठता सूची में शामिल कर लिया गया है। इसकी वजह से मौजूदा प्रधानध्यापकों की वरिष्ठता नीचे चली गई है। यह पूरा मामला हाल ही में जारी की गई स्कूल शिक्षा विभाग की प्रदेश के 3851 प्रधानाध्यापकों की जारी वरिष्ठता सूची से सामने आया है। इस सूची को हाल ही में लोक शिक्षण संचालनालय (डीपीआई) द्वारा जारी किया गया है। खास बात यह है कि जिन मृत लोगों के नाम इसमें शामिल कर दिए गए हैं, उनकी मृत्यु को दो से तीन साल तक हो चुके हैं। हद तो यह है कि इसके अलावा उन लोगों के नाम भी इसमें शामिल हैं, जिन्हें सेवानिवृत्त हुए करीब एक दशक होने वाले हैं। अगर भोपाल की बात की जाए तो इस सूची में भोपाल के ही करीब 90 प्रतिशत प्रधानाध्यापकों के नाम नदारत हैं। यह सूची जारी होने के बाद से कई प्रधानाध्यापक परेशान होकर डीपीआई का चक्कर लगा रहे हैं। बताया जा रहा है कि इसकी सबसे बड़ी वजह है विभाग का शिक्षा पोर्टल अपडेट नहीं किया जाना।
जिला शिक्षा अधिकारी नहीं दे पाएंगे मान्यता
प्रदेश सरकार ने निजी प्राइमरी-मिडिल स्कूलों को मान्यता देने का अधिकार जिला शिक्षा अधिकारियों (डीईओ) से छीन कर इसे जिला परियोजना समन्वयक (डीपीसी) को दे दिए हैं। इसके लिए सरकार ने निशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 (आरटीई के नियम को बदल दिया है। इसी तरह से मान्यता विलंब शुल्क भी 10 हजार रुपये से कम करते हुए उसे पांच हजार रुपये कर दिया है। गौरतलब है कि प्रदेश में 42 लाख 42 हजार 816 निजी प्राइमरी और 25 लाख नौ हजार 428 मिडिल स्कूल हैं, जिन्हें हर तीन साल में मान्यता का नवीनीकरण करना होता है। इस बीच हर साल करीब पांच सौ से एक हजार नए स्कूल खुल जाते हैं।
तीस दिन का समय किया तय
नए नियमों में जिला परियोजना समन्वयक को 30 दिन में मान्यता प्रकरण का निराकरण करने की अवधि तय की गई है। ऐसा नहीं करने पर पोर्टल स्वत: ही मामले को कलेक्टर के पास भेज देगा। जिसके बाद इसे डीपीसी की अनुशंसा मानते हुए कलेक्टर निरीक्षण कराएंगे और जांच में मापदंड पूरे न होने पर मान्यता निरस्त कर सकेंगे। किन्हीं कारणों से डीपीसी मान्यता नहीं देते हैं, तो स्कूल प्रबंधक कलेक्टर के समक्ष 30 दिन में प्रथम अपील प्रस्तुत कर सकेंगे और 30 दिन में कलेक्टर को उसका निराकरण करना होगा। ऐसा नहीं होता है तो द्वितीय अपील आयुक्त या संचालक राज्य शिक्षा केंद्र के समक्ष करनी होगी। उनका निर्णय अंतिम और बंधनकारी होगा।
इनका नाम भी शामिल
वरिष्ठता सूची में शासकीय उमावि मिसरोद की प्रधानाध्यापिका रेखा जोशी का नाम हैं, जो दस साल पहले सेवानिवृत हो गई थीं। शासकीय उमावि चंद्रशेखर आजाद के प्रधानाध्यापक निर्मल मिश्रा जो अक्टूबर में सेवानिवृत हुए, वहीं सीएम राइज स्कूल रशीदिया की प्रधानाध्यापिका निवेदिता भटनागर भी कुछ माह पहले सेवानिवृत्त हो चुकी हैं। इसके अलावा प्रधानाध्यापिका शैलबाला जैन का निधन 2015 में हो गया था, वहीं कोविड काल में एक अन्य प्रधानाध्यापक एके नापित का 2019 में निधन हो चुका है। इसके बाद भी इन्हें वरिष्ठता प्रदान करते हुए सूची में नाम प्रकाशित कर दिया गया।
भोपाल के यह हैं हाल
भोपाल जिले में 120 में से करीब 90 प्रतिशत प्रधानाध्यापकों के नाम वरिष्ठता सूची में नहीं है। सिर्फ सात प्रधानाध्यापकों के नाम हैं। प्रधानाध्यापकों ने डीपीआइ आयुक्त को नामों की सूची भेंट की है, ताकि उनका नाम जोड़ा जा सके। प्रधानाध्यापकों का कहना है कि 90 प्रतिशत को उच्च श्रेणी शिक्षक की सूची में डाल दिया है, जबकि इन्हें भी वरिष्ठता सूची में शामिल करना था। प्रधानाध्यापकों का कहना है कि इससे उन्हें पदोन्नति नहीं मिलेगी और पदनाम भी नहीं मिलेगा। इस मामले में डीपीआई का तर्क है कि यह अंतरिम सूची है। प्रधानाध्यापकों की वरिष्ठता सूची फिर से अपडेट कराकर जारी की जाएगी।