स्वामी विवेकानंद एक ऐसे व्यक्ति जिन्होंने देश के आध्यात्म,
शिक्षा और स्वाभिमान को विश्व पटल पर अंकित किया। करीब 118 वर्ष पहले अमेरिका के शिकागो में हुए उनके भाषण को आज भी याद किया जाता है। वास्तव में स्वामी विवेकानंद आधुनिक भारत के वे आदर्श प्रतिनिधि हैं। जिनकी प्रेरणाएं हमें आज भी मार्ग दिखाती हैं। शिकागो में जब विवेकानंद को दुनिया ने सुना तो जाना कि भारत की धरती पर एक ऐसा व्यक्तित्व पैदा हुआ है जो दिशाहारा मानवता को सही दिशा देने में समर्थ है। शिकागो में विवेकानंद ने कहा था “मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं। मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूं जिसने सभी धर्मों और देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी”।
इसका अर्थ यह है कि विवेकानंद भी भारत की सहिष्णुता और सर्वधर्म समभाव को भारत की सबसे बड़ी पूंजी मानते थे। वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा को दुनिया से परिचित कराने में विवेकानंद का अभूतपूर्व योगदान था। 11 सितंबर 1893 का वह दिन विश्व के इतिहास में अविस्मरणीय बन गया जब शिकागो में विवेकानंद ने ऐतिहासिक भाषण दिया। उसके बाद से ही विवेकानंद के सिद्धांतों को दुनिया समझने की कोशिश करती रही लेकिन समझ में आया 118 वर्ष बाद, जब 11 सितंबर 2001 की सुबह अल-कायदा के 19 आतंकियों ने उसी अमेरिका के ट्विन टॉवर्स को ध्वस्त करके मानवता को सबसे बड़ा आघात पहुंचाया जिस अमेरिका में सार्वभौमिक सहिष्णुता की बात विवेकानंद ने की थी।
इसीलिए 11 सितंबर की तारीख जहां विश्व में विवेकानंद के मुख से निकले सार्वभौमिक सहिष्णुता के सिद्धांत की दृष्टि से अभूतपूर्व है तो वह तारीख सबसे बड़े आतंकी हमले में उस सिद्धांत को आघात पहुंचाने की दृष्टि से भी अविस्मरणीय है। विवेकानंद की जयंती 12 जनवरी को मनाई जाती है लेकिन विवेकानंद के सिद्धांत पूरी दुनिया में 12 महीनों के 365 दिन प्रासंगिक हैं। जिस वेदांत को उन्होंने अपनी छोटी सी उम्र में रचा उसे उन्होंने जीवन पर्यंत अपनाया भी। वेदांत एक सिद्धांत के रूप में नहीं बल्कि एक व्यवहारिकता के रूप में विवेकानंद के जीवन में था। इसीलिए अपने छोटे से जीवन काल में विवेकानंद इतना प्रभाव उत्पन्न कर पाए। उन्होंने भारतीय वांग्मय और भारतीय धर्म-संस्कृति का ही विश्व को परिचय नहीं कराया बल्कि सार्वभौमिक सहिष्णुता के उस सिद्धांत को संसार के हर कोने तक पहुंचाने की कोशिश भी की। आज 2-2 विश्व युद्ध के बाद, सारे संसार में बढ़ती हिंसा और आतंकवाद के खतरों के बाद यदि किसी सिद्धांत को अपनाने की आवश्यकता है तो वह सार्वभौमिक सहिष्णुता का सिद्धांत ही है जो एक तरफा नहीं है। बल्कि जिसे दोनों तरफ से निभाने की आवश्यकता है। विवेकानंद की जयंती पर जरूरत है प्रज्ञावान बनने की, स्वयं को पहचानने की, अपनी आयु से ऊपर उठकर विचार करने की। आप सभी को स्वामी विवेकानंद की जयंती की अनेकानेक शुभकामनाएं।
स्वामी विवेकानंद ने ‘‘भाईयों एवं बहनों’’ कहकर किया संबोधित
वेदांत के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरू के रूप में स्वामी विवेकानंद का नाम पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। उनका वास्तविक नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदांत दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानंद के उद्बोधन के कारण हुआ। इस उद्बोधन में स्वामी विवेकानंद द्वारा सभी को ‘‘भाईयों एवं बहनों’’ कहकर संबोधित किए जाने ने सभी के मन पर गहरा प्रभाव डाला। वे संत रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना भी की, जो आज भी अपना काम कर रहा है।
युवा दिवस : 12 जनवरी
स्वामी विवेकानंद की जयंती के उपलक्ष्य में 12 जनवरी 1984 को युवा दिवस की घोषणा की गई थी। इसके बाद से हर साल इस दिन युवा दिवस मनाया जाता है। वास्तव में स्वामी विवेकानंद आधुनिक मानव के आदर्श प्रतिनिधि हैं। विशेषकर भारतीय युवाओं के लिए स्वामी विवेकानंद से बढ़कर दूसरा कोई नेता नहीं हो सकता जिसने विश्व पटल पर अपनी अमिट छाप छोड़ी हो। उन्होंने हमें जो स्वाभिमान दिया है वह उत्तराधिकार के रूप् में प्राप्त कर हमारे अंदर आत्मसम्मान और अभिमान जगा देता है। स्वामीजी ने जो लिखा वह हमारे लिए प्रेरणा है। यह आने वाले लंबे समय तक युवाओं को प्रेरित व प्रभावित करता रहेगा।