आयुष्मान भारत योजना घोटाला…वही ढाक के तीन पात

मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। मध्य प्रदेश ऐसा राज्य बनता जा


रहा है जहां पर कितना भी बड़ा घोटाला क्यों न हो शुरुआत में हो हल्ला मचने पर जांच में तेजी दिखाई जाती है और दोषियों पर कार्रवाई के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं और बाद में उस मामले को भुला दिया जाता है। ऐसा ही मामला है आयुष्मान भारत योजना में निजी अस्पतालों के 200 करोड़ रुपये से ज्यादा के घोटाले का। इस मामले के खुलासे के बाद अब इसे भी भुला दिया गया है। यह मामला सामने आने के बाद भी अधिकारी और विभागीय मंत्री गंभीर नहीं हैं। हालत यह है कि इस मामले की जांच के लिए बीते साढ़े तीन माह से तो अस्पतालों का औचक निरीक्षण तक नहीं किया गया है। दरअसल इस घोटाले का खुलासा बीते साल जून और सितंबर में आकस्मिक निरीक्षण के दौरान हुआ था। हालात यह हैं कि अफसरों द्वारा निजी अस्पतालों से मिलीभगत कर उनके दावों के हिसाब से सही मानकर भुगतान कर दिया जाता है। इस बारे में अधिकारियों का तर्क है कि योजना में कार्यरत डॉक्टरों का स्थानांतरण हो गया। नया स्टाफ मिला पर उन्हें योजना को समझने में समय लगा। इसके अलावा पहले जो जांचें हुई थीं, उनमें कार्रवाई करने में अमला लगा हुआ है। दरअसल जून और सितंबर में भी योजना में संबद्ध 550 से ज्यादा अस्पतालों में से महज 130 की ही जांच हुई, जबकि इसके पहले योजना की शुरुआत से 2021 के अंत तक सिर्फ 49 अस्पतालों की ही औचक जांच कराई गई थी। बता दें कि जांच में यह सामने आ जाता है कि अस्पताल जो बीमारी बताकर मरीज का इलाज किया जा रहा है , वास्तविकता में वह है या नहीं। सामान्य वार्ड में रखे जा सकने वाले मरीज को कहीं आईसीयू में तो नहीं रखा है। वास्तविक में वह मरीज भर्ती भी है या नहीं।
ऐसे की गई गड़बड़ी
इस घोटाले में जो तथ्य सामने आए हैं उनके मुताबिक कई अस्पतालों में खुद के कर्मचारियों के नाम आयुष्मान कार्ड बनवा दिए गए थे और उन्हें मरीज बनाकर रकम निकाल ली गई। इसी तरह किसी मरीज का बिल 50 हजार का बना तो उसे बढ़ाकर दो लाख रुपये की राशि सरकार से वसूल ली जाती थी। वहीं, ग्रामीण क्षेत्र के आयुष्मान कार्डधारियों को अस्पताल लाने के लिए जगह-जगह एजेंट नियुक्त किए गए थे। कुछ अस्पतालों ने इन्हें जनसंपर्क अधिकारी का पदनाम दे दिया था। बिलिंग की राशि में बढ़ोतरी का खेल जांच के नाम पर किया जाता था। महंगी-महंगी जांच के नाम पर बिल बना लिए जाते थे।
तीन साल में हुआ एक अरब से अधिक का भुगतान
प्रदेश में आयुष्मान भारत योजना से संबद्ध 120 निजी अस्पतालों ने दो सौ करोड़ रुपयों का घोटाला किया है। इनमें इंदौर भोपाल ग्वालियर और जबलपुर सहित प्रदेश के ख्याति प्राप्त निजी अस्पताल भी शामिल हैं।बता दें कि आयुष्मान योजना के अंतर्गत कुल 620 निजी अस्पतालों को तीन साल (वर्ष 2019 से जुलाई 2022 तक) में 1048 करोड़ 98 लाख 19 हजार 481 रुपयों का भुगतान किया गया है।
इन अफसरों के कार्यकाल में हुआ घोटाला
आयुष्मान योजना में गड़बड़ी के मामले में अधिकारियों से लेकर मंत्री तक सभी जिम्मेदार जवाब देने से बचते हैं। खास बात यह है कि यह घोटाला जिन अफसरों के कार्यकाल में हुआ है, उनमें पल्लवी जैन गोविल प्रमुख सचिव , मोहम्मद सुलेमान अपर मुख्य सचिव, प्रतीक हजेला आयुक्त , संजय गोयल प्रमुख सचिव, आकाश त्रिपाठी आयुक्त, जे विजय कुमार सीईओ,अनुराग चौधरी सीईओ और सपना लोवंशी कार्यपालन अधिकारी के नाम शामिल हैं।
हो चुका है वीडियो वायरल
योजना में भ्रष्टाचार की शिकायतों पर सरकार कितना गंभीर है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि नौ लाख रुपये के लेनदेन का एक वीडियो बहुत वायरल हुआ था, पर अभी तक इसकी जांच ही नहीं हो पाई है। वायरल वीडियो में विमल लोवंशी नामक एक व्यक्ति खुद को कथित तौर पर योजना की तत्कालीन कार्यपालन अधिकारी सपना लोवंशी का देवर बताते हुए दावा राशि के भुगतान के बदले एक अस्पताल के कर्मचारियों से नौ लाख रुपये ले रहा है। सपना लोवंशी अब इंदौर में अपर कलेक्टर हैं। हालांकि उनका कहना था कि विमल लोवंशी से उनका कोई रिश्ता नहीं है।
60 फीसदी प्रीमियम देता है केंद्र
आयुष्मान भारत योजना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट है। प्रदेश में इस योजना में बीमित प्रति व्यक्ति 1100 रुपए प्रीमियम लगता है। इसमें 60 प्रतिशत राशि केंद्र सरकार देती है, जबकि 40 प्रतिशत राज्य सरकार लगाती है। योजना में गड़बड़ी की निगरानी केंद्रीय स्तर से भी की जाती है। इसके बाद भी यह स्थिति बनी हुई है।