माननीयों को सेवा के बदले मिल रहा मेवा…

30-35 साल नौकरी करने के बाद रिटायर होने वाले कर्मचारी पेंशन के लिए बेहाल.

भोपाल/मनीष द्विवेदी।मंगल भारत। माननीय सांसदों और विधायकों की बातों में हर वक्त सेवा का राग रहता है, लेकिन पेंशन की मेवा से किसी अमीर नेता को भी ऐतराज नहीं है। भले ही उम्र भर सरकारी नौकरी वाले को पेंशन न मिले, लेकिन एक दिन के विधायक के लिए पेंशन तो पक्की है। आलम ये है कि कर्मचारियों को पेंशन के अधिकार को लेकर संघर्ष करना पड़ता है, लेकिन नेताओं को उम्र भर आराम मिलता है। पूरे देश में सरकारी कर्मचारी पुरानी पेंशन बहाली की लड़ाई लड़ रहे हैं, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की राज्य सरकारों ने इसको लेकर ऐलान भी कर दिया है, लेकिन केंद्र व मप्र सरकार फिलहाल इस मूड में नहीं दिखता। हालांकि अपने पूर्व सांसदों पर खर्च करने के मामले में सरकारी तिजोरी में कभी पैसों की कमी आड़े नहीं आती। देश में चपरासी से लेकर सुप्रीम कोर्ट के जज तक को केवल एक पेंशन मिलती है, लेकिन सांसद, विधायक और मंत्रियों पर यह नियम लागू नहीं है। यानी, विधायक से यदि कोई सांसद बन जाए तो उसे विधायक की पेंशन के साथ ही लोकसभा सांसद का वेतन और भत्ता भी मिलता है। इसी तरह राज्यसभा सांसद चुने जाने और केंद्रीय मंत्री बन जाने पर मंत्री का वेतन-भत्ता और विधायक-सांसद की पेंशन भी मिलती है, जबकि सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों को एक ही पेंशन मिलती है। प्रदेश में 30-35 साल नौकरी करने के बाद रिटायर होने वाले कर्मचारियों को पेंशन नहीं, जबकि मात्र एक दिन की विधायकी करने वाले नेताजी पेंशन के हकदार हो जाते हैं।
माननीयों को वेतन-पेंशन के साथ सुविधाओं की भरमार
जहां एक तरफ सांसदों और विधायकों को भारी भरकम वेतन और पेंशन मिल रही है, वहीं सुविधाओं और भत्तों की भी भरमार है। प्रदेश में विधायकों को प्रतिमाह 30 हजार रुपए वेतन और निर्वाचन क्षेत्र भत्ता 35 हजार रुपए मिलता है। वहीं टेलीफोन भत्ता 10 हजार रुपए प्रतिमाह (भले ही निवास स्थान पर टेलीफोन कनेक्शन हो या न हो), चिकित्सा भत्ता 10 हजार रुपए, लेखन सामग्री और डाक भत्ता 10 हजार रुपए प्रतिमाह, कम्प्यूटर ऑपरेटर या अर्दली भत्ता 15 हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं। इनके अलावा नि:शुल्क रेल और हवाई सुविधा भी मिलती है।
कर्मचारियों के लिए एनपीएस व्यवस्था
सांसद, विधायक भले ही कितनी पेंशन और वेतन-भत्ते एक साथ लें, लेकिन सरकार ने 31 मार्च 2005 के बाद नियुक्त कर्मचारियों को पेंशन देना बंद कर दिया है। इसकी जगह एनपीएस (नेशनल पेंशन स्कीम) लागू की है। गौरतलब है कि 1 जनवरी 2005 के बाद भर्ती अधिकारी-कर्मचारियों के लिए अंशदायी पेंशन योजना लागू है। कर्मचारी 10 प्रतिशत और 14 प्रतिशत राशि सरकार मिलाती है। कर्मचारी संगठनों के मुताबिक इस राशि को शेयर मार्केट में लगाया जाता है। ऐसे में कर्मचारियों का भविष्य शेयर पर निर्भर है। रिटायर होने पर 50 प्रतिशत राशि एकमुश्त दी जाती है। शेष 50 प्रतिशत से पेंशन बनती है। पुरानी पेंशन बंद होने से भोपाल सहित देशभर के कर्मचारी आंदोलन कर रहे हैं। उनका कहना है कि एनपीएस केवल झुनझुना है, जो रिटायर होने के बाद उनके लिए अपर्याप्त रहेगी। वहीं विधायक, सांसदों की बात करें तो ये अपने वेतन-भत्ते, पेंशन स्वयं तय करते हैं। प्रस्ताव सदन में पेश होते हैं। मामला सभी के लाभ से जुड़ा होने के कारण प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित भी हो जाते हैं। नियम है कि विधायक सांसदों को दोहरी – तिहरी पेंशन की भी पात्रता है। कोई भी नेता जितनी बार एमएलए बनता है, पेंशन उस हिसाब से बढ़ती जाती है।
पुरानी पेंशन बहाली की मांग हुई तेज
देश में एक तरफ जहां माननीय दोहरी- तिहरी पेंशन के भी पात्र हैं, वहीं कर्मचारी पुरानी पेंशन बहाली की एक मांग के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं। छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब, हिमाचल, झारखंड में पुरानी पेंशन योजना लागू हो चुकी है। कांग्रेस इसके पक्ष में हैं, जबकि भाजपा शासित राज्यों के सीएम केंद्र का विषय बता मामला टाल देते हैं। लेकिन अब चुनावी वर्ष में एक मंच पर आए कर्मचारियों ने सरकार पर दबाव बनाया है। इन्हें कांग्रेस का भी साथ मिला है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ दोहरा रहे हैं कि कांग्रेस सरकार बनने पर पुरानी पेंशन बहाल की जाएगी। कर्मचारियों ने चेतावनी दी है कि यदि मांग पूरी नहीं हुई तो चुनाव में वे अपना फैसला सुना देंगे।