देवाधिदेव शंकर: जिनका दर्शन ही निर्वाण का है

नमामीशमिशान निर्वाण रूपं विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद: स्वरुपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाश मकाशवासं भजे हम् ॥

जिसका रूप ही निर्वाण हो। जो अखिल ब्रह्मांड में व्याप्त हो। जो चर अचर सब में हो। जो केवल सत्य हो और सत्य होने के कारण ही सुंदर हो। वह तो आदिदेव शंकर ही हैं। शंकर अनादि हैं। उनके जीवन मरण का कोई प्रश्न ही नहीं। जब वाद से तत्व बोध हो जाए। और तत्व बोध से सत्य का बोध हो जाए। तभी तो वह चंद्रचूड़ अर्थात शिव होता है।
वादे-वादे जायते तत्त्वबोध:।
बोधे-बोधे भासते चन्द्रचूड:॥
शिव हमारी आस्था के प्रतीक ही नहीं हैं बल्कि वह प्रकृति के प्रतीक हैं। उन्होंने गंगा को शिरोधार्य करके इस पूरे पृथ्वीलोक को हरा-भरा रहने का वरदान दिया। हिमालय से निकलने वाली गंगा के कैचमेंट में भारत की जनसंख्या के लगभग 40 करोड़ लोग रहते हैं। गंगा का मैदान दुनिया का सबसे उपजाऊ कृषि क्षेत्र है। इस आर्यावर्त को भगवान भोले शंकर ने ही बनाया है। इस पृथ्वी पर जो भी ज्ञान है, कला है, विज्ञान है वह शिव की देन है। शिव नटराज हैं। नाट्य शास्त्र में शिव का वर्णन है। नृत्य की जितनी मुद्राएं हैं वह शिव की देन हैं। वह आगम-निगम आदि शास्त्रों के अधिष्ठाता हैं। शिव ही संसार में जीव चेतना का संचार करते हैं। इस आधार पर दैवीय शक्ति के जीव तत्व को चेतन करने वाले स्वयं भगवान शिव, शक्ति के साथ इस समस्त जगत मंडल व ब्रह्मांड में अपनी विशेष भूमिका का निर्वहन करते हैं। वर्तमान में बहुत से लोग शिव शंकर को भोलेनाथ कहते हुए उनके साथ भांग इत्यादि के नशे को जोडऩे की कोशिश करते हैं। किंतु यह सत्य नहीं है। भांग की वनस्पति और धतूरे के फूल शिव का अर्पण किए जाते हैं इसलिए कि शिव प्रकृति के प्रेमी हैं। और प्रकृति में पाए जाने वाले सभी फूल पत्तियों में शिव सौंदर्य के दर्शन करते हैं। जो अखिल ब्रह्मांड का स्वामी है उसे किसी प्रकार के नशे की आवश्यकता नहीं। संसार की उत्पत्ति ब्रह्म से हुई है इसलिए शिव आदिदेव हैं। शिव जितेंद्रिय भी हैं। उन्होंने काम को नष्ट किया है। सांसारिकता मोह से जुड़ी हुई है और मोह अलग-अलग वासनाओं को जन्म देता है। भौतिकता मोह की बुनियाद है। जो चार पुरुषार्थ बताए गए हैं उनमें से एक काम भी है। वह काम को कामुकता में परिवर्तित कर सकता है। इसलिए शिव मोह से परे हैं।
किंतु न्याय उनकी दृष्टि में सर्वोच्च है। इसलिए सती के शव को लेकर पूरे ब्रह्मांड में घूमते हैं। तांडव करते हैं। यह उनका मोह नहीं है। न्याय चेतना है। न्याय स्त्री – पुरुष को बराबरी से मिलना आवश्यक है। स्त्री और पुरुष में कोई भेद नहीं है। सब की प्रकृति में अपनी अपनी भूमिका है। शिव शंकर ने इस भेद को मिटाया है। इसीलिए शंकर अर्धनारीश्वर भी हैं। यदि कोई स्त्री -पुरुष चेतना के उस स्तर तक पहुंच जाए कि उसकी नजर में स्त्री – पुरुष बराबर हो जाए तो वह परम आनंद की अनुभूति कर लेता है।
महाशिवरात्रि शिव के विवाह का प्रसंग ही नहीं बल्कि यह शक्ति और सत्य अर्थात शिव के मिलन का प्रतीक भी है। शक्ति और शिव एक दूसरे के बिना अस्तित्व विहीन हैं। अनियंत्रित शक्ति विनाश का कारण बनती है। शक्तिहीन सत्य न्याय नहीं दे सकता। सत्य के पास शक्ति भी होनी चाहिए। शक्ति और शिव का संतुलन ही इस पृथ्वी का आधार है। इसलिए महाशिवरात्रि पर्व हमें यह सीख देता है कि शक्तिशाली होने के बावजूद करुणा, प्रेम, दया, सद्भाव जैसे बुनियादी गुण आवश्यक हैं। शक्ति शिव के साथ मिलेगी तो सामथ्र्यवान बनाएगी। और शिव के बिना निरंकुश शक्ति दुराचारी बनाएगी।
महाशिवरात्रि का यही संदेश है। यदि आपके पास शक्ति है तो उसमें शिव का समावेश कर लें। संतुलन अपने आप स्थापित हो जाएगा। जीवन सत्यम, शिवम, सुंदरम बन जाएगा। इसलिए, नाचने गाने और उत्सव मनाने के अतिरिक्त शिव को जीवन में उतारने का प्रयास भी हो। इस महाशिवरात्रि यह संकल्प अवश्य लें। ओम नम: शिवाय।
(लेखक पूर्व पुलिस अधिकारी हैं)
शिव से सीखें जीवन का चिंतन
ब्रह्मा को उत्पत्ति, विष्णु को पालन और शिव को विनाश के लिए जाना जाता है, यहां आशय यह है कि अगर कोई बुराई समाज में व्याप्त है तो उसका विनाश करें।
शिव से बड़ा कोई योगी नहीं हुआ। किसी भी परिस्थिति से खुद को बाहर रखकर सोचना आसान नहीं होता लेकिन शिव हमेशा ध्यान की मुद्रा में रहते हैं, इसलिए वे शांत हैं और नियंत्रित भी। उनका ध्यान कोई भंग नहीं कर सकता।
समुद्रमंथन से विष बाहर आया तो सभी ने कदम पीछे ले लिए, ऐसे में महादेव शिव ने विष को ग्रहण कर नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदल दिया और इस संसार को बचाया। शिव का यह अर्धनारेश्वर स्वरूप हमें नारियों को समाज में समान स्थान देने और उन्हें अपने बराबर मानने की सीख देता है। शिव का संपूर्ण रूप देखकर यह पता चलता है कि वे हमेशा समान भाव में रहते हैं और सभी को समान नजर से देखते हैं। उनके विवाह में देव भी पहुंचे और भूतों की मंडली भी लेकिन सभी को समान सम्मान दिया गया।देवाधिदेव शंकर: जिनका दर्शन ही निर्वाण का है.