अनुकंपा की राह में आड़े आ रही लालफीताशाही

आश्रितों को नियुक्ति का झांसा देकर ठग रहे अफसर.

प्रदेश के शासकीय विभागों में कार्यरत कर्मचारियों की मृत्यु के बाद उनके परिजन अनुकंपा नियुक्ति के लिए सालों से सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन लालफीताशाही उनकी राह में रोड़ा बनकर खड़ी है। इसका परिणाम यह हुअलंबित मामले 19 हजार के पार पहुंच गए हैं। उधर सूत्रों का कहना है कि अनुकंपा नियुक्ति दिलाने के नाम पर अफसर आश्रितों से मोटी रकम भी वसूल रहे हैं। उसके बावजूद नियुक्ति नहीं मिल पा रही है।
सामान्य प्रशासन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश के विभिन्न विभागों में लंबित अनुकंपा नियुक्ति के प्रकरणों का सरकार निपटारा करने जा रही है। सामान्य प्रशासन विभाग इन सभी का एक साथ निराकरण करने के लिए एक अवसर देने पर विचार कर रही है, जिसके अनुसार एक मुश्त इन प्रकरणों का निराकरण किया जा सके। फिलहाल सरकार के विभागों के बीच ही समन्वय न होने से अनुकंपा नियुक्तियों के मामले का निराकरण नहीं हो पा रहा है। इसका फायदा उच्च शिक्षा के ओएसडी संजय जैन जैसे अधिकारी उठा रहे हैं और घूसखोरी के कथित ऑडियो प्रकरण जैसे हालात बनते हैं।
मंत्री के ओएसडी के वायरल ऑडियो ने खोली पोल
अनुकंपा नियुक्ति देने के नाम पर विभागों में किस तरह का खेल चल रहा है इसकी पोल उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव के ओएसडी संजय जैन के ऑडियो वायरल खोल दी है। जिसमें वे पैसे की मांग कर रहे थे। कथित ऑडियो में संजय जैन कहते हुए सुनाई दे रहे है कि निशांत हमने तो सबको 1.5 बोला था। अब तुम सेट कर लो जल्दी से कर लो, क्योंकि ये पहले होता है, नहीं तो बाद में लोग बोलते, मेरा तो हो गया अब क्या लेना-देना। ये तो विश्वास की बात रहती है। ठीक है, तो कर लो इसको कर लो सेट, भरोसा करके दिया तुम्हें सहायक वर्ग-3 का पद। कथित ऑडियो वायरल होने के बाद ओएसडी संजय जैन निलंबित हुए लेकिन संजय पहले से दागदार हैं। इससे पहले भी संजय की लिखित शिकायत हुई थी। इस पर 10 जनवरी को तीन सदस्यीय जांच कमेटी बनाई गई थी। इसमें भोपाल – नर्मदापुरम के उच्च शिक्षा विभाग के क्षेत्रीय अतिरिक्त संचालक, उच्च शिक्षा की निर्माण शाखा के ओएसडी डॉ. राकेश श्रीवास्तव और न्यायालयीन प्रकोष्ठ के ओएसडी डॉ. आलोक वर्मा थे। यह मामला फाइलों में ही उलझा रहा। संजय जैन उच्च शिक्षा विभाग में ओएसडी के रूप में कार्यरत हैं। वे उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव के ओएसडी नहीं हैं। विभाग की अराजपत्रित स्थापना शाखा के अनुकंपा के कामों को देख रहे थे। अब वे निलंबित हैं।
इन कारणों से भी उलझ रहे प्रकरण
जानकारों का कहना है कि प्रदेश में अनुकंपा नियुक्ति के मामले अटकने के कई अन्य कारण भी है। जैसे यदि किसी परिवार में चार भाई हैं तो किसे नियुक्ति दी जाए, उस पर सरकारी प्रक्रिया में उलझन रहती है। नियुक्ति नाबालिग को लेकर नियमों में भी उलझती है। प्रकरण कितने समय में निराकृत होना चाहिए, इसका कोई स्पष्ट नियम नहीं है। विभाग में पद नहीं होने, पात्रता के मुताबिक पद नहीं होने जैसे आधारों के कारण भी केस अटके रहते हैं। संविदा शाला शिक्षक के केस में नियम बदलने पर प्राथमिक शिक्षक, प्रयोगशाला शिक्षक या प्राथमिक शिक्षक विज्ञान के पद पर नियुक्ति दी जा सकती है। इंदौर में पटवारी पद पर नियुक्ति का मामला सीएलआर कार्यालय ग्वालियर में डेढ़ साल से अटका है। दरअसल, राजस्व विभाग में कम्प्यूटर ऑपरेटर पद पर कार्यरत कर्मचारी की मृत्यु हो गई थी। उनके स्थान पर पत्नी की नियुक्ति होनी है। ऑपरेटर पद पर नियुक्ति नहीं होने से मामला लंबित है। पटवारी पद पर नियुक्ति के लिए मामला सीएलआर कार्यालय ग्वालियर भेजा गया है। निर्णय कमिश्नर को करना है। राजगढ़ में स्वास्थ्य विभाग में लिपिक के पद पर पदस्थ रहीं कल्पना चौहान के निधन के बाद उनकी बेटी पिछले छह साल से अनुकंपा नियुक्ति के लिए परेशान हो रही हैं। पदों की कमी बताते हुए लगातार उन्हें टाला जा रहा है। मजे की बात ये कि उनके बाद पहुंच रहे आवेदन में लगातार आवेदकों को अनुकंपा नियुक्ति दी जा रही है। दोनों बेटियां अनुकंपा नियुक्ति नहीं होने पर परेशान हैं, लेकिन विभाग इस ओर ध्यान नहीं दे रहा। हरदा जिले के टिमरनी ब्लॉक की एक ग्राम पंचायत के सचिव का करीब 7 माह पहले निधन हो गया था। तभी से पत्नी की अनुकंपा नियुक्ति की अर्जी जिला पंचायत में लंबित है। पति के निधन के बाद से ही महिला के पास परिवार के गुजर-बसर का दूसरा आर्थिक साधन नहीं है। ऐसे में उसे ज्यादा परेशानी हो रही है। अधिकारी देरी का न तो कोई कारण बता रहे हैं और न ही यह बता रहे हैं कि नियुक्ति का मामला कब तक निपटेगा।
अनुकंपा नियक्ति में कई पेचीदगियां
दरअसल, अनुकंपा नियुक्ति देने में कई पेचीदगियां हैं। विभाग में खाली पद न होने पर अन्य विभाग में नियुक्ति तब तक नहीं दी जा सकती, जब तक कि मूल विभाग लिखकर न दे दे। राज्य स्तरीय संवर्ग के पदों में विभागाध्यक्ष और जिला स्तरीय संवर्ग में विशेष तौर पर जिले के भीतर कलेक्टर की जिम्मेदारी रहती है कि वह पता करवाए कि किस विभाग में पद खाली है, जहां अनुकंपा नियुक्ति दी जा सकती है। यदि सिचाई विभाग का कोई कर्मचारी है और उसकी सेवा में रहते मृत्यु हो जाती है तो उसके आश्रित को उसी विभाग में नौकरी दिए जाने का प्रावधान है। यदि विभाग में पद खाली नहीं है तो विभागाध्यक्ष को इसका प्रमाण पत्र जारी करना होगा। तब जाकर अन्य विभाग में संबंधित व्यक्ति को नौकरी मिलेगी।