कमाई में पारदर्शिता नहीं दिखा रहे… शिव सरकार के मंत्री

राजनीतिक सुचिता की बात करने वाली राजनीतिक पार्टियां दावे तो तमाम करती हैं, लेकिन अपने दावों को भूल जाती हैं। मप्र में भी ऐसा ही हो रहा है। यहां सरकार और विपक्ष ने मिलकर नियम बनाया है कि हर साल सभी मंत्री और विधायकों को अपनी संपत्ति का ब्यौरा देना होगा। लेकिन माननीय अपना बनाया नियम भूल गए हैं और सदन में संपत्ति का ब्यौरा ही नहीं दे रहे हैं। कांग्रेस विधायक तथा नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह इकलौते ऐसे विधायक है जिन्होंने वर्ष 2022-2023 तक का अपना सम्पत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक किया है। मौजूदा मंत्रियों ने वर्ष 2023 का अपना सम्पत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक ही नहीं किया है।
गौरतलब है कि सरकार के मंत्रियों को हर साल विधानसभा के पटल पर अपनी संपत्ति का ब्यौरा रखना था। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने 2010 में मंत्रिमंडल के सदस्यों द्वारा विधानसभा में बजट सत्र के दौरान संपत्ति का ब्यौरा सदन में पेश करने की शुरूआत की थी। तब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित उनके मंत्रिमंडल के सभी 32 सदस्यों ने अपनी सपंत्ति की जानकारी विधानसभा के पटल पर रखी थी। हालांकि यह सिलसिला 2013 तक चलता रहा। साल 2013 के बाद से पिछले 10 सालों में मध्य प्रदेश के कुछ ही मंत्रियों ने अपनी संपत्ति सार्वजनिक की है, जबकि इस दौरान विधान सभा में लगातार संकल्प पारित होते रहे कि मंत्री सहित सभी विधायक अपनी चल-अचल संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करेंगे। विधान सभा की जानकारी के मुताबिक साल 2019 तक वर्ष 2013 से 2018 के कार्यकाल में मंत्री रहे जयंत मलैया और गौरीशंकर बिसेन को छोड़कर सात साल में दूसरे किसी भी मंत्री ने विधानसभा को संपत्ति की जानकारी नहीं दी।
लगातार कम होती गई रूचि
साल 2011 में सीएम सहित सिर्फ 16 मंत्रियों ने अपनी संपत्ति बताई। 2012 में सीएम और 16 मंत्रियों ने अपनी संपत्ति का रिकॉर्ड पेश किया। साल 2013 में सीएम और 17 मंत्रियों ने संपत्ति की जानकारी दी। साल 2015 में शिवराज सरकार के इकलौते मंत्री वित्त जयंत मलैया ने सदन में अपनी संपत्ति का रिकॉर्ड पेश किया। साल 2017 में संपत्ति का ब्यौरा पेश करने वाले शिवराज सरकार के इकलौते मंत्री गौरीशंकर बिसेन थे। 2017 के बाद शिवराज सरकार दूसरे बार सत्ता में आ चुकी है, लेकिन अभी तक मंत्रिमंडल के द्वारा सदन में संपत्ति का ब्यौरा पेश नहीं किया गया। मुख्यमंत्री, डॉ. गोविंद सिंह और डॉ. प्रभुराम चौधरी के अलावा पूर्व मंत्री रामपाल सिंह (20-21), शैलेंद्र जैन (19-20), अजय टंडन (2019-20), नागेंद्र सिंह (2019-20), आरिफ मसूद (2019-20) और (2021-22), संजय यादव (2019-20) और (2021-22), टामलाल रघुजी सहारे (2020-21), लीना संजय जैन (2019-20), ग्यारसी लाल रावत (2019-20), चैतन्य कश्यप (2019-20) आदि ने ही जानकारी दी है।
कांग्रेस ने सदन में पेश किया था संकल्प
साल 2019 में मध्य प्रदेश विधान सभा में एक बार फिर से पारित किए गए संकल्प के बाद 3 सालों में सिर्फ एक मंत्री डॉ प्रभुराम चौधरी ने 2019-20 में संपत्ति सार्वजनिक की। इस दौरान कुल 29 मंत्रियों ने संपत्ति का कोई ब्योरा विधानसभा सचिवालय से साझा नहीं किया। 2019 के बाद से अब तक कुल 15 विधायकों ने ही 1 या अधिक वर्षों में अपनी संपत्ति का ब्योरा विधानसभा सचिवालय से साझा किया है। इनमें नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह इकलौते ऐसे विधायक हैं जिन्होंने तीनों ही सालों में अपनी संपत्ति का ब्योरा दिया है। विधायक एनपी प्रजापति जो दिसंबर 2019 में संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करने के संकल्प पारित होते समय विधान सभा के अध्यक्ष थे, ने तीन सालों में एक भी बार संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक नहीं की है। वर्तमान विधान सभा अध्यक्ष गिरीश गौतम ने साल 2020-21 में एक बार संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक किया है।
प्रदेश के 29 मंत्रियों ने भी नहीं किया पालन
राज्य मंत्रिपरिषद के 29 सदस्यों ने भी वर्तमान तक का संपत्ति का ब्यौरा नहीं दिया है। इनमें डॉ. नरोत्तम मिश्रा, गोपाल भार्गव, तुलसी सिलावट, कुंवर विजय शाह, जगदीश देवड़ा, बिसाहूलाल सिंह,यशोधरा राजे सिधिया,भूपेन्द्र सिंह, मीना सिंह,कमल पटेल,गोविंद सिंह राजपूत, बृजेन्द्र प्रताप सिंह, विश्वास सारंग, महेन्द्र सिंह सिसौदिया,प्रद्युम्न सिंह तोमर,प्रेम सिंह पटेल,ओम प्रकाश सखलेचा, उषा ठाकुर, अरविंद भदौरिया,डॉ. मोहन यादव,हरदीप सिंह डंग, राजवर्धन सिंह, भारत सिंह कुशवाह, इंदर सिंह परमार, रामखेलावन पटेल, राम किशोर कांवरे,बृजेन्द्र सिंह यादव,सुरेश धाकड़,ओ.पी.एस. भदौरिया शामिल है। इनके द्वारा विधानसभा में पारित संकल्प के अनुसार अभी तक किसी भी वर्ष का सम्पत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक नहीं किया है।
हर साल घटती गई रूचि
सिद्धांतों की राजनीति का उदाहरण पेश करने प्रदेश में 1990 से मंत्रिमंडल के सदस्यों द्वारा सदन के पटन पर हर साल संपत्ति की जानकारी पेश करने की परंपरा रही है। अगस्त 1990 में तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने अपने सभी 27 मंत्रीमंडल सदस्यों के साथ संपत्ति का ब्यौरा सदन के पटल पर रखा था। इसके बाद प्रदेश की सत्ता में कांग्रेस लौटी, लेकिन यह परंपरा जारी रही। फरवरी 1994 में मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सभी 36 मंत्रियों की संपत्ति का ब्यौरा पेश किया था। इसके बाद 1995, 1997, 1999, 2001 और 2003 में भी दिग्विजय सिंह मंत्रिमंडल द्वारा संपत्ति की जानकारी पटल पर रखी जाती रही। विधान सभा के प्रमुख सचिव एपी सिंह का कहना है कि विधायकों द्वारा संपत्ति सार्वजनिक करना स्वैच्छिक है, इसकी बाध्यता नहीं है। 2019 के संकल्प के परिपालन में विधानसभा सचिवालय पत्र जारी करके विधायकों को इस विषय में स्मरण कराता रहता है। विधायकों का तर्क है कि चुनावों में वैसे ही संपत्ति सार्वजनिक करनी होती है।