सरकार के चहेते अफसरों के मामले डाल दिए जाते हैं ठंडे बस्तों मे.
मध्यप्रदेश में ऐसे करीब आधा सैकड़ा आईएएस अफसर हैं, जिन पर आर्थिक अनियमितताओं के कई गंभीर आरोप हैं। उनके खिलाफ प्रदेश की दोनों जांच एजेंसियों लोकायुक्त या फिर ईओडब्ल्यू में से किसी न किसी में जांच चल रही हैं। खास बात यह है कि इन अफसरों की शिकायतों की जांचे तो चल रही हैं , लेकिन कई -कई सालों से आगे नहीं बढ़ पा रही हैं। दरअसल इन अफसरों का रसूख ही ऐसा है कि उन पर कितना भी गंभीर आरोप हो , लेकिन जांच उनकी मर्जी के हिसाब से ही चलेगी। इसका उदाहरण वे अफसर हैं, जिनके खिलाफ मामला दर्ज हुए कई-कई साल बीत गए हैं , लेकिन अब तक जांच है कि पूरा होने का नाम ही नही ले रही है। हद तो यह है कि एक अफसर केे खिलाफ ईओडब्ल्यू ने 18 साल पहले प्रकरण दर्ज किया था , लेकिन उसकी जांच अब तक पूरी ही नहीं हो पायी है। इसी तरह से लोकायुक्त में आईएएस अफसर के खिलाफ सबसे पुरानी जांच आठ साल से लंबित बनी हुई है।
ईओडब्ल्यू में 2017 के बाद से किसी भी आईएएस अफसर के खिलाफ प्रकरण दर्ज नहीं हुआ। इस संबंध में कांग्रेस विधायक आरिफ अकील ने विधानसभा सवाल लगाया था, जिसके लिखित उत्तर में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि प्रदेश में आईएएस अफसरों के खिलाफ लोकायुक्त में 41 जांच चल रही है। इनमें से कुछ विवेचनाधीन भी है। इसी तरह आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) 8 प्रकरण विवेचना में हैं।
यह दी गई जानकारी
लिखित उत्तर में बताया गया कि लोकायुक्त में वर्ष 2014 में आईएएस अफसरों के खिलाफ दो प्रकरण दर्ज हुए थे, उनकी जांच चल रही है। इसी तरह वर्ष 2015 में भी आईएएस अफसरों के खिलाफ दो प्रकरण दर्ज हुए थे उनकी भी जांच की जा रही है। इसी तरह वर्ष 2016 में चार प्रकरण जांच में हैं। वर्ष 2017 के तीन प्रकरण जांच और विवेचनाधीन हैं। वर्ष 2018 और 2019 में एक-एक प्रकरण आईएएस अफसर पर दर्ज हुए इनमें भी जांच और विवेचना चल रही है। इसी तरह वर्ष 2020 में चार प्रकरण, वर्ष 2021 में सात, वर्ष 2022 में 16 और इस साल एक प्रकरण आईएएस अफसर के खिलाफ जांच और विवेचना चल रही है। इसी तरह ईओडब्ल्यू में वर्ष 2004 के एक प्रकरण में आईएएस अफसर के खिलाफ विवेचना चल रही है। इसी तरह वर्ष 2009 में एक, वर्ष 2011 में 2, वर्ष 2012, 2013, 2014, 2015 और 2017 के एक-एक प्रकरण विवेचनाधीन हैं। लोकायुक्त में दर्ज प्रकरणों में से 20 की जांच चल रही है, जबकि 21 प्रकरणों की जांच और विवेचना दोनों ही जारी है। ईओडब्ल्यू में चल रहे सभी मामलों की विवेचना चल रही है।
10 साल बाद एफआईआर दर्ज
1993 बैच के रिटार्यड आईएएस रमेश थेटे के खिलाफ जबलपुर लोकायुक्त पुलिस ने दस साल तक जांच करने के बाद जाकर एफआईआर दर्ज की है। मुख्यालय के निर्देश पर लोकायुक्त पुलिस ने पूर्व आईएएस और उनकी पत्नी मंदा थेटे के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर इसे जांच में लिया है। पूर्व आईएएस रमेश थेटे जबलपुर में 2001-2002 में नगर निगम आयुक्त और संचालक रोजगार एंव प्रशिक्षण जबलपुर के पद पर पदस्थ थे, इस अवधि के दौरान उन्होंने कई बैंकों से लोन लिया और उसे फिर अल्प अवधि में चुका भी दिया। लोकायुक्त को 2012-13 में शिकायत मिली और जांच की, और करीब 10 साल बाद रिटायर्ड आईएएस के खिलाफ कई धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की है। जबलपुर लोकायुक्त पुलिस ने पूर्व आईएएस की पत्नी को भी इस मामले में आरोपी बनाया है।
सरकार के चहेते हैं कई अफसर
खास बात यह है कि जिन आईएएस अफसरों के खिलाफ इन दोनों जांच एजेंसियों में मामले दर्ज हैं और उनकी जांच की जा रही है उनमें से अधिकांश सरकार के चहेते अफसर माने जाते हैं। यही वजह है कि शिकायतों की जांच लंबित होने के बाद भी उन्हें न केवल पदोन्नत किया जाता रहता है बल्कि,मलाईदार पदों पर भी पदस्थ किया जाता रहता है। अगर यही मामला छोटे कर्मचारियों का होता है तो फिर मामला उलटा हो जाता है। चूकि यह अफसर रसूखदार होते हैं , जिसकी वजह से सरकार भी नहीं चाहती है कि उनके मामलों में जांच में तेजी आए। इसका फायदा भी इन अफसरों को जमकर मिलता है। कई अफसर तो ऐसे हैं जिनके खिलाफ जांच लंबित है और वे रिटायर्ड हो चुके हैं।