प्रदेश में अब विधानसभा के चुनाव होने में महज आठ माह का ही समय रह गया है। ऐसे में दोंनो दल के द्वारा कराए गए सर्वे की रिपोर्ट भी आ चुकी हैं। इनमें भाजपा व कांग्रेस में से किसी को भी 80 सीटों से अधिक पर जीत की संभावनाएं नहीं जताई गई हैं, लिहाजा बहुमत के लिए दोनों दलों पर 36 सीटों का संकट बना हुआ है। इन सीटों को लेकर ही दोनों दलों में रणनीति बनाई जा रही है। दरअसल प्रदेश में सरकार बनाने के लिए किसी भी राजनैतिक दल को 116 सीटों का आंकड़ा पाना होता है। यही वजह है कि इन दिनों दोनों ही दल करीब आधा सैकड़ा ऐसी सीटों की तलाश कर हैं, जिनमें मेहनत करने पर उसके दल के प्रत्याशियों की जीत तय हो सके। यह आंकड़ा इसलिए तय किया गया , जिससे की कुछ सीटों पर उलटफेर की स्थिति भी बन जाए तो बहुमत का आंकड़ा पाया जा सके। प्रदेश में भाजपा के सामने सबसे बड़ा सकंट एंटीइंकमबेंसी का बना हुआ है, तो वहीं कांग्रेस के सामने कुछ सीटों पर मजबूत प्रत्याशियों का संकट बना हुआ है। दरअसल भाजपा की कुछ ऐसी सीटें हैं जिन पर उसके नेता बीते कई चुनाव से अजेय बने हुए हैं। भाजपा की तुलना में कांग्रेस के पास ऐसी सीटों की संख्या बहुत कम है।
अगर भाजपा की बात की जाए तो प्रदेश में संगठन , संघ और सरकार के स्तर पर अब तक कई सर्वे कराए जा चुके हैं। इन सभी सर्वे में कोई भी एजेंसी भाजपा को 80 से अधिक सीटें देने को तैयार नही है। यही नहीं कई ऐसी सीटों पर भी भाजपा की हार की संभावना जताई गई है, जहां से प्रदेश सरकार के मंत्री निर्वाचित हुए हैं, तो कई मंत्रियों की सीटें कड़े मुकाबले वाली बताई गई हैं। हारने वाली सीटों में शामिल ऐसी सीटों ने भी भाजपा की ङ्क्षचताए अधिक बढ़ा रखी हैं। इसकी वजह है बीते चुनाव में प्रदेश के परिणाम जिसमें करीब एक दर्जन मंत्रियों को हार का सामना करना पड़ा था। अगर बीते चुनाव में यह मंत्री नहीं हारते तो भाजपा को 2018 में ही बहुमत हासिल हो जाता और उसे 15 माह तक विपक्ष में नहीं बैठना पड़ता। उधर, कांग्रेस की चिंता की बात यह है कि उसके मौजूदा ढाई दर्जन विधायकों पर हार का संकट बताया गया है। इसमें कई नामचीन विधायकों की सीटें भी शामिल है। इसके अलावा कांग्रेस को उन चार सीटों की भी ङ्क्षचता सता रही है , जिन पर उसके चार दिग्गज नेताओं को बीते चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। यही नहीं कांग्रेस की मुश्किलें विंध्य अंचल ने भी बढ़ा रखी हैं। यह वो अंचल है जहां पर बीते चुनाव में कांग्रेस को सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ा था। इसके अलावा कई सीटों पर उसके पास प्रभावशाली नेताओं की कमी भी बनी हुई है। खास बात यह है कि बीते पांच साल में दलबदल की वजह से कांग्रेस के सामने सबसे बड़ा संकट बना रहा है, जो इस बार के चुनाव में भी बने रहने की आशंका है। यही नहीं बीते चुनाव में भाजपा को कड़ी चुनौती देने वाले कुछ चेहरे भी अब कांग्रेस के पास नहीं बचे हैं, जिसकी वजह से उसे नए मजबूत चेहरों की तलाश करनी पड़ रही है। इसके लिए कमलनाथ द्वारा अभी से प्रदेश स्तर पर कवायद शुरु कर दी गई है। पार्टी सूत्रों की माने तो कांग्रेस इस बार कई माह पहले अपने संभावित प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारने की तैयारी कर रही है।
इन मंत्रियों को मिली थी हार …
प्रदेश में बीते आम चुनाव का परिणाम भारतीय जनता पार्टी पर अपने मंत्रियों की हार की वजह से बहुत भारी पड़ा था। इसकी वजह थी उसके 13 मंत्रियों का हार जाना। इस चुनाव में तत्कालीन महिला एवं बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनीस, भोपाल दक्षिण-पश्चिम विधानसभा सीट पर राजस्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता , छतरपुर जिले में मलहरा सीट पर ललिता यादव, शरद जैन जबलपुर उत्तर पर , मंत्री जयंत मलैया दमोह सीट पर ,बड़वानी जिले की सेंधवा सीट पर अंतर सिंह आर्य , जयभान सिंह पवैया ग्वालियर सीट पर, भिण्ड जिले की गोहद सीट पर लालसिंह आर्य, मुरैना सीट पर रुस्तम सिंह , दीपक जोशी देवास जिले की हालपिपल्या सीट पर , ग्वालियर दक्षिण सीट पर नारायण सिंह कुशवाह , शाहपुरा सीट पर ओमप्रकाश धुर्वे तो वहीं खरगोन विधानसभा सीट से बालकृष्ण पाटीदार को हार का सामना करना पड़ा था।
भाजपा में कट सकते हैं बड़े पैमाने पर टिकट
भाजपा में सर्वे की रिपोर्टस के आधार पर इस बार प्रदेश में बड़ी संख्या में भाजपा विधायकों के टिकट काटे जा सकते हैं। इसकी संभावनाएं अधिक बनी हुई हैं। इनमें कुछ मंत्रियों के नाम भी शामिल हो सकते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में भी इसी तरह का कदम उठाया जाना था , लेकिन पार्टी के एक बड़े नेता की वजह से ऐसा नहीं हो सका था, जिसकी वजह से पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। माना जा रहा है कि इस बार संगठन इस मामले में किसी नेता की बात नहीं मानेगा , बल्कि जीत की बेहतर संभावनाओं वाले प्रत्याशियों को ही टिकट देगी।