रेलवे ने गरीबों की जेब काटने का नया तरीका खोजा.
भोपाल/मंगल भारत। रेलवे महकमा लगातार लोगों को दी जाने वाली राहत में तो कटौती कर ही रहा है साथ ही आए दिन ऐसे तरीके खोज रहा है,जिससे की आम आदमी और गरीबों की जेब काटी जा सके। हद तो यह है कि सुविधाओं की कटौती से नेताओं को पूरी तरह से दूर रखा जा रहा है। पहले विश्व स्तरीय रेलवे स्टेशनों के नाम पर यात्रियों की जेब काटने की व्यवस्था की गई और अब जनरल व स्लीपर डिब्बों में कटौती कर उनकी जगह एसी डिब्बे लगाकर महंगे टिकट खरीदने पर यात्रियों को मजबूर किया जा रहा है। यह तब किया जा रहा है, जब रेलवे किराए में मिलने वाली तमाम तरह के यात्रियों के किराए में रियायत देना बंद कर दिया है। अगर भोपाल रेल मंडल से होकर गुजरने वाली ट्रेनों की बात की जाए तो तमाम तरह की 45 ट्रेनों में से स्लीपर श्रेणी एवं जनरल कोच हटाकर उनकी जगह 111 एसी इकोनॉमी और एसी-3 कोच लगा दिए गए हैं।
फलस्वरूप यात्रियों को 40 फीसदी तक ज्यादा किराया देना पड़ रहा है। इसकी वजह से इन गाड़ियों में स्लीपर श्रेणी में अब लंबी वेटिंग चल रही है। रेलवे के इस फैसले से आम यात्रियों पर आर्थिक भार बढ़ गया है। उन्हें वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में अधिकतम 40 फीसदी तक अतिरिक्त किराया देकर इकोनॉमी या एसी-3 श्रेणी में रिजर्वेशन लेकर सफर करना पड़ रहा है। उधर, रेलवे प्रशासन का तर्क है कि लोगों के भुगतान की क्षमता में वृद्धि हुई है, जिसकी वजह से ट्रेनों में स्लीपर व जनरल की संख्या कम कर एसी इकोनॉमी और एसी-3 श्रेणी के कोच लगाए जा रहे हैं। गौरतलब है कि कोरोना महामारी की शुरुआत के बाद से ही रेलवे ने वरिष्ठ नागरिकों, पत्रकारों के अलावा कई अन्य तरह के यात्रियों को किराए में दी जाने वाली सब्सिडी पर रोक लगा दी थी, तब से ही रोक लगी हुई है।
इन ट्रेनों में बदले गए कोच
भोपाल मंडल से गुजरने वाली लंबी दूरी की ट्रेनों में शामिल गरीब रथ , कोयंबटूर एक्सप्रेस, जीटी, केरल, प्रतापगढ़, जम्मूतवी, लखनऊ-पुणे सहित भोपाल रेल मंडल व पश्चिम-मध्य जोन से गुजरने वाली 45 ट्रेनों में 111 एसी इकोनॉमी या एसी-3 श्रेणी के कोच एक साल में अब तक लगाए जा चुके हैं। जैसे-जैसे इनका प्रोडक्शन बढ़ रहा है, उसी तरह से ट्रेनों में बढ़ाई जा रही है। ऐसे ही यह कोच लगातार बढ़ाए जाते रहे तो अगले तीन साल में ट्रेनों में जनरल कोच की संख्या नाम के लिए ही रह जाएगी। वहीं, जिन ट्रेनों में 12 तक स्लीपर श्रेणी के कोच लगाए जाते उनकी संख्या भी अब कम होकर पचास फीसदी तक हो जाएगी। रेल मंडल की उपयोगकर्ता व सलाहकार समिति के पूर्व सदस्य निरंजन वाधवानी का कहना है कि ट्रेनों में स्लीपर व जनरल कोच कम नहीं किए जाना चाहिए। करना पड़ता है दोगुना भुगतान स्लीपर और एसी 3 के बीच किराए का अंतर दोगुना रहता है। इसे इस तरह से समझ सकते हैं। जीटी एक्सप्रेस की स्लीपर श्रेणी में भोपाल से नागपुर तक का सफर करने पर 550 रुपए लगते हैं। एसी इकोनॉमी कोच में ये ही सफर 930 रुपए का पड़ रहा है। इस तरह करीब दोगुना तक किराया इकोनॉमी कोच में सफर करने पर आम यात्री को भुगतना पड़ रहा है। एसी इकोनॉमी श्रेणी के कोचों में बर्थ संख्या सामान्य एसी-3 श्रेणी से ज्यादा होती है। एसी-3 श्रेणी में बर्थ संख्या 64 होती है, जबकि इकोनॉमी कोच में 68 से 70 तक होती है। इस वजह से एसी-3 के मुकाबले यात्रियों को ज्यादा रिजर्व बर्थ मिल जाती हैं।