मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। प्रदेश में भ्रष्ट अफसरों पर भ्रष्ट ही
जमकर मेहरबान बने हुए हैं। यही वजह है कि ऐसे अफसरों को न केवल मलाईदार जगहों पर लगातार पदस्थ किया जाता है, बल्कि उन्हें पदोन्नत करने में भी कोई कोताही नहीं बरती जाती है। अब इस मामले को मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने बड़ा मुद्दा बनाना तय कर लिया है। यही वजह है कि इसे अब सदन से लेकर सड़क तक पूरी ताकत के साथ कांग्रेस द्वारा उठाया जा रहा है। प्रदेश में ऐसे ढेरों उदाहरण भरे पड़े हैं, जिनमें भ्रष्ट अफसरों पर शासन से लेकर सरकार की खुलकर मेहरबानी बनी हुई है। भ्रष्ट अफसरों को बचाने के लिए पहले ही सरकार द्वारा कई तरह की पाबंदियां जांच एजेंसियों पर थोपी जा चुकी हैं। अब हद तो यह है कि जिन मामलों की पूर्व में जांच पूरी हो चुकी हैं और उनमें चालान पेश किया जाना है, ऐसे मामलों में भी लंबे समय से अनुमतियां नहीं दी जा रही हैं।
ऐसे भ्रष्ट अफसर सरकार के खजाने को तो चूना लगा ही रहे हैं साथ ही सरकार के सुशासन को भी पलीता लगाने में पीछे नहीं हैं। खास बात यह है कि इसकी वजह से आम आदमी भी बेहद परेशान हैं। बीते रोज विधानसभा में बजट पर चर्चा के दौरान कांग्रेस विधायकों ने भ्रष्टाचार को लेकर राज्य सरकार पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। कांग्रेस सदस्यों ने आरोप लगाया कि सामान्य प्रशासन विभाग असामान्य होकर अराजकता की भेंट चढ़ गया है, जो अफसर ईमानदारी से अच्छा काम करना चाहते हैं , उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं दी रही है, जबकि भ्रष्टाचार में लिप्त अफसर मनमानी पोस्टिंग पा रहे हैं। संविदा पर रिटायर्ड अफसरों को बार-बार एक्सटेंशन दिया जा रहा है। आजीविका मिशन में एक भ्रष्ट अधिकारी की लोकायुक्त जांच कर रहा है, उसे रिटायरमेंट के बाद दोबारा पोस्टिंग दी गई है, जबकि जांच करने वाली अधिकारी नेहा मारव्या को अटैच कर उनकी गाड़ी भी छीन ली गई है। बड़वानी जिले में एक युवा आईएएस अफसर ने किसी बड़े आदमी के रिश्तेदार प्रमोटी कलेक्टर के भ्रष्टाचार की शिकायत की तो कलेक्टर पर कार्रवाई के बजाए युवा आईएएस को लूप लाइन में भेज दिया। उनका आरोप था कि जो घूस लेते पकड़े गए उन्हें एसडीएम से एडीएम बना दिया गया। 44 केस में 105 क्लास वन अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार के सबूत होने के बावजूद 5 साल से चार्जशीट तक नहीं दी गई है। इसी तरह से सामान्य प्रशासन विभाग की कार्यप्रणाली पर तीखा हमला करते हुए सरकार से पूछा गया है कि भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए 280 कर्मचारियों की अभियोजन स्वीकृति क्यों पेंडिंग पड़ी हुई है, जबकि इसके लिए 4 माह का समय तय है।
यह हैं हालात
ईओडब्ल्यू द्वारा बीते सालों में पदस्थ रहे कलेक्टर, एसडीएम, सीएमओ, इंजीनियर, अस्पताल अधीक्षक, तहसीलदार, सरपंच, सचिव, लेखापाल, शिक्षक सहित 26 विभागों में पदस्थ अधिकारियों और कर्मचारियों को आर्थिक अनियमितता के मामलों में पकड़कर 44 प्रकरण दर्ज कर 105 अधिकारियों और कर्मचारियों के विरुद्ध कार्यवाही की है। लेकिन इनके प्रशासकीय विभागों द्वारा इन मामलों में अभियोजन स्वीकृति ही नहीं दी जा रही है। जिसकी वजह से उनके खिलाफ आगे की कार्रवाई ही नहीं हो पा रही है। अगर पंचायत ग्रामीण विकास की बात की जाए तो दमोह जिले के पथरिया के तत्कालीन विकासखंड अधिकारी वाय एस चौहान पर ईओडब्ल्यू ने नवंबर 1999 में कार्यवाही की और जनवरी 2018 को एसीएस पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के पास अभियोजन स्वीकृति के लिए प्रस्ताव भेजा गया है, जिसमें अब तक अनुमति नहीं दी गई है। इसी तरह एपीओ मनरेगा पनागर प्रशांत शर्मा, पंकज मुडिया उपयंत्री, मेहबूब खान सीईओ पनागर, सुधा यादव सरपंच सोनपुर , सरला यादव सचिव ग्राम पंचायत गधेरी पर 2015 में दर्ज मामले में ईओडब्ल्यू विभाग से सितंबर 2022 से अभियोजन मंजूरी मांग रहा है। तिलगंवा के सरपंच कृष्णा यादव और पनागर के एपीओ प्रशांत शर्मा के खिलाफ 2015 में दर्ज मामले में जनवरी 2021 को अनुमति मांगी है।
एपीओ पनागर प्रशांत शर्मा, उपयंत्री पंकज मुडिया, सीईओ मेबूब खान, सरपंच सोनपुर बेगी बाई ठाकुर, सचिव सोनपुर मोहम्द सलीम के खिलाफ 2015 में दर्ज मामले में सितंबर 2022 से अनुमति नहीं मिली। इसी तरह से नगरीय विकास एवं आवास में नगर पालिका रतलाम के पूर्व महापौर जयंतीलाल , सम्पत्तिकर अधिकारी मनोहर लाल वर्मा पर 2020 से,सीहोर के मुख्य नगर पालिका अधिकारी डीएस परिहार, अनुविभागीय अधिकारी हनीफ खान, सहायक यंत्री अनिल श्रोत्रिय, कार्यवाहक अध्यक्ष अशोक सिसोदिया, उपयंत्री नरेन्द्र सिंह चौहान, लेखापाल हरिभान सिंह बुंदेला,लिपिक श्याम सिंह चंद्रवंशी पर 2021 से, मुख्य कार्यपालन अधिकारी रामशिरोमणि, आरसी साहू, लेखापाल विष्णुदेव,सहायक ग्रेड तीन धीरेन्द्र सिंह,शाखा प्रभारी रामगोपाल मिश्रा पर 2021 से अनुमति लंबित है। इसी तरह से रीवा के मऊगंज में एसडीएम ओएन पाण्डेय, एसडीएम एपी घमह के विरुद्ध 2020 से,सेवानिवृत्त कटनी कलेक्टर अंजू सिंह बघेल के खिलाफ 2011 में दर्ज मामले में 2017 से अभियोजन स्वीकृति लंबित चल रही है। बुधनी के दो तत्कालीन तहसीलदार केएस सेन और एमडी शर्मा, एके बड़कुर, लेखापाल रामचरण सिंह के खिलाफ 2019 से, विदिशा के तत्कालीन कलेक्टर योगेन्द्र शर्मा के खिलाफ 2020 से, खाद्य विभाग के तत्कालीन उपसचिव ललित दाहिमा के खिलाफ 2021 से, तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी सांवेर पवन जैन और कौशल बंसल के खिलाफ फरवरी 2023 से, कटनी की सेवानिवृत्त कलेक्टर अंजू सिंह बघेल के खिलाफ दूसरे मामले में फरवरी 2021 से लंबित है।
डेढ़ सौ अभियोजन की स्वीकृति जल्द देगी सरकार…
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश में भ्रष्ट अफसरों पर कार्यवाही के मामले में कहा है कि वे आश्वस्त करना चाहते हैं कि बेईमानी और भ्रष्टाचार करने वाला कोई नहीं बचेगा। जीरो टॉलरेंस की नीति ही रहेगी। हम लगातार कार्यवाही करेंगे। विस में नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविन्द सिंह और विधायकों के सवालों के जवाब देते हुए सीएम चौहान ने कहा कि अफसरों के विरुद्ध अभियोजन की अभी 70 अनुमति जारी की गई है। 150 प्रकरणों में अनुमति जारी करने की तैयारी हो रही है। कहीं- कहीं विधिक दिक्कतें होती हैं उनमें थोड़ा बहुत समय लगता है। विधि विभाग का अलग-अलग अभिमत होता है और फिर वह एक अलग समिति में आता है।
यह हैं उदाहरण
उमरिया जिले के बिरसिंहपुर पाली में पदस्थ एसडीएम नीलांबर मिश्रा व सुरक्षा गार्ड चंद्रभान सिंह को 24 जुलाई 2019 को क्रेशर संचालन के बदले रिश्वत लेते लोकायुक्त रीवा की टीम ने पकड़ा था। जांच के बीच ही नीलांबर को पन्ना एडीएम बना दिया गया। इसी तरह से लोकायुक्त ने 16 अक्टूबर 2019 को सहायक आबकारी आयुक्त आलोक खरे के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति की शिकायत पर चार शहरों में छापा मारकर 100 करोड़ की संपत्ति का खुलासा किया था। कार्रवाई के वक्त खरे इंदौर में सहायक आयुक्त थे। अब वे रीवा के डिप्टी कमिश्नर हैं और 7 जिलों का प्रभार है।