प्रदेश में भले ही विधानसभा चुनावों में अभी आठ माह का
समय है , लेकिन सभी राजनैतिक दल अपनी-अपनी चुनावी तैयारियों पूरा फोकस करने लगे हैं। ऐसे में भला बसपा कैसे पीछे रह सकती है। बसपा अपने गढ़ उप्र में लगातार दो विधानसभा चुनाव हारने के बाद अपने अस्तित्व को बचाने के लिए मप्र पर फोकस कर रही है। यही वजह है कि बसपा ने चुनाव के पांच माह पहले यानी की जून माह में ही अपने मजबूत माने जाने वाले प्रदेश के दोनों अंचल विंध्य और ग्वालियर -चंबल में प्रत्याशी घोषित करने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। इसकी वजह से यह तो तय है कि बसपा की इन सीटों पर जीत हो या न हो लेकिन वह कांग्रेस व भाजपा का चुनावी गणित जरुर पूरी तरह से बिगाड़ देगी।
इसकी वजह है बीता चुनाव , जिसमें कई जगहों पर बसपा न केवल मुख्य मुकाबले में रही, बल्कि कई सीटों पर उसके प्रत्याशी तीसरे स्थान पर भी रह चुके हैं। बसपा द्वारा की जा रही तैयारियों के तहत जून तक 50 फीसदी टिकट घोषित कर दिए जाएंगे और पार्टी प्रदेश में विंध्य -चंबल क्षेत्र की 100 सीटों पर विशेष फोकस करेगी। चुनावी साल होने की वजह से अगले माह पार्टी प्रदेश भर में अंबेडकर जयंती सहित लगभग एक दर्जन बड़े कार्यक्रम करेगी। चुनावों तक बसपा सुप्रीमो मायावती प्रदेश में 3-4 जनसभाएं भी कर सकती हैं। यही नहीं बसपा के प्रदेश प्रभारी रामजी गौतम ने भोपाल में जिला अध्यक्षों और प्रभारियों की बैठक करने के बाद कहा कि कमलनाथ सरकार द्वारा पार्टी विधायक तोड़े जाने के बाद अब निर्णय किया गया है कि किसी भी सरकार को बाहर से समर्थन नहीं देंगे, अब पार्टी सरकार में शामिल होकर काम करेगी। पार्टी 230 सीटों पर अकेले लड़ेगी। चुनावी तैयारियों पर गौतम का कहना है कि प्रदेश में हर बूथ 10 यूथ योजना पर काम किया जा रहा है। उनका दावा है कि अप्रैल के अंत तक 25 और जून तक 50 प्रतिशत टिकट फाइनल करने की तैयारी की जा रही है। पार्टी बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, एससी-एसटी पर अत्याचार आदि पर आवाज बुलंद करेगी। उनका कहना है कि बसपा को भीम आर्मी और आप जैसे दलों से कोई खतरा नहीं है क्योंकि पार्टी का अपना पारम्परिक वोट बैंक है। गौतम के मुताबिक भीम आर्मी जैसे संगठन भीड़ तो इक_ी कर लेते है पर उन्हें कभी भी वोटों में तब्दील नहीं कर सकती है।
उपचुनाव में 5 सीटों पर बिगाड़ चुकी है कांग्रेस का गणित
मध्य प्रदेश में विधानसभा उपचुनाव में दो सबसे बड़े किरदार थे, जिनमें पहले थे श्रीमंत और दूसरा बसपा। इसमें बसपा कांग्रेस के लिए वोट कटवा साबित हुई थी। बसपा की वजह से ही कांग्रेस को पांच सीटों का बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था। जिसकी वजह से भाजपा 19 सीट पर जीती थी और कांग्रेस 9 सीट पर ही रह गई थी। इनमें भांडेर, जौरा, मल्हरा, मेहगांव और पोहरी जैसी सीटें देखें, तो वहां कांग्रेस की हार के लिए बसपा ही जिम्मेदार रही। जौरा में बसपा-कांग्रेस के वोट प्रतिशत को मिला दें, तो यह भाजपा से 20 फीसदी अधिक हो रहे थे, लेकिन, वोट बंटने से भाजपा आसानी से जीत गई।
तीसरा बड़ा दल है बसपा…
प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के बाद बसपा ही ऐसा दल है, जिसका वोट बैंक दिखता है। 2003 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के दो विधायक जीते थे और कुल वोट 7.26 प्रतिशत मिले थे। 2008 में 8.97 प्रतिशत मत मिले और सात विधायक जीते थे। जबकि, 2013 में मत प्रतिशत 6.29 प्रतिशत रहा और चार विधायक जीते थे। मतदान के प्रतिशत को देखें तो यह लगातार कम होता जा रहा है और पार्टी की परंपरागत वोट बैंक पर जो पकड़ थी, वह ढीली होती जा रही है। नगरीय निकाय चुनाव में भी मात्र 56 पार्षद ही चुनाव जीत सके हैं। इसी तरह के हालात जिला और जनपद पंचायत के चुनाव में रही। जिला और जनपद पंचायत में पार्टी समर्थित 168 सदस्य ही निर्वाचित हुए। ग्वालियर क्षेत्र में भिंड से विधायक संजीव कुशवाह बड़ी ताकत थे लेकिन, वे राष्ट्रपति चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गए। अब पार्टी में विधायक रामबाई अकेली रह गई हैं। लगातार कमजोर होती स्थिति को संभालने के लिए पार्टी ने ग्वालियर, चंबल, विंध्य और बुंदेलखंड क्षेत्र में विशेष ध्यान देने का निर्णय किया है।
प्रदेश में बसपा का प्रदर्शन
अगर बीते आम विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो मध्य प्रदेश में उसे 5.1 प्रतिशत मत मिले थे और दो विधायक जीते थे। इनमें से भी एक संजीव कुशवाह भाजपा में शामिल हो चुके हैं। हाल ही में हुए नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में पार्टी ने बड़ी उम्मीदों के साथ प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में अपेक्षित सफलता नहीं मिली। इसे देखते हुए पार्टी ने ग्वालियर, चंबल, विंध्य और बुंदेलखंड क्षेत्र में ताकत लगाने का निर्णय किया है। इसके लिए जिला और विधानसभा स्तर पर कार्यकर्ता सम्मेलन किए जा रहे हैं।