नड्डा की पहल पर अमल शुरू… आओ मिलकर चुनाव लड़ें

मप्र में अब विधानसभा के आम चुनाव में महज सात माह


की समय रह गया है, इस बीच आए तमाम सर्वे के रिपोर्टस ने भाजपा संगठन की नींद उड़ा रखी है। इसकी वजह से अब प्रदेश संगठन को पार्टी कार्यकर्ताओं व नेताओं की सामूहिकता की याद सताने लगी है। यही वजह है कि अब पुराने व पार्टी के लिए बेकाम बनाए जा चुके कार्यकर्ताओं को मनाने के लिए पार्टी के बड़े नेताओं को लगाया जा रहा है। यह वे चेहरे हैं जिनकी सरकार में पूछपरख समाप्त कर दी गई थी और संगठन ने भी उन्हें हांसिए पर डाल दिया था। इसकी वजह से वे अब पूरी तरह से घर बैठकर अपने कामकाज को देखने लगे थे। इसका परिणाम प्रदेश में हुए नगरीय निकाय चुनाव में सामने आ चुका है, जब पार्टी को आधा दर्जन अपने बेहद मजबूत गढ़ों को गंवाना पड़ा था। यही नहीं इसके बाद पार्टी द्वारा कराए गए तमाम सर्वों में सरकार को लेकर एंटी इनकंबेंसी और पार्टी कार्यकर्ताओं में नाराजगी की बात सामने आने के बाद अखिरकार पुराने कार्यकर्ताओं को फिर से सक्रिय कर चुनाव में सामूहिकता से उतरने की तैयारी की जा रही है। इसकी वजह से ही अब पार्टी ने प्रभावशाली नाराज नेताओं को मनाने का जिम्मा अपने 14 वरिष्ठ नेताओं को दिया है।
इनमें तीन पूर्व प्रदेशाध्यक्ष भी शामिल हैं। यह नेता पूरे हफ्ते अलग-अलग इलाके में जाकर पार्टी के नाराज नेता एवं कार्यकर्ताओं से संवाद कर संगठन को रिपोर्ट देंगे। इस तरह की शुरुआत खुद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भोपाल में पूर्व प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा के आवास पर पहुंचकर कर चुके हैं। जिन प्रदेशाध्यक्षों को यह जिम्मा सौंपा गया है, उनमें पूर्व प्रदेशाध्यक्ष एवं केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, पूर्व प्रदेशाध्यक्ष एवं सांसद राकेश सिंह के अलावा प्रभात झा का नाम शामिल हैं। खास बात यह है कि मप्र भाजपा के मौजूदा संगठन में घर बैठा दिए गए ज्यादातर नेताओं ने तोमर, प्रभात और राकेश सिंह के साथ काम किया हुआ है। इसकी वजह से ही उन्हें इस काम में लगाया गया है। यही नहीं जिन नेताओं को यह जिम्मा दिया गया है उनमें से भी कई नेता इन दिनों हांसिए पर चल रहे हैं।
इनमें माया सिंह, जयभान सिंह पवैया, कृष्णमुरारी मोघे भी भाजपा में खुद हांसिए पर चले गए है। इनके अलावा मंत्री गोपाल भार्गव, कैलाश विजयवर्गीय, माखन सिंह, सत्यनारायण जटिया फग्गन सिंह कुलस्ते, लाल सिंह आर्य, सुधीर गुप्ता और राजेन्द्र शुक्ल को भी रूठों का मनाने का काम दिया गया है। इन नेताओं को अलग-अलग जिलों का इस काम के लिए प्रभार दिया गया है। यह नेता पूर्व नगर पालिका अध्यक्षों, पार्टी की जिला इकाइयों के पूर्व अध्यक्षों, पूर्व विधायकों, पूर्व संसद सदस्यों और अन्य लोगों के साथ बैठक करेंगे। इसके बाद संगठन को रिपोर्ट सौंपेंगे। भाजपा हाईकमान को जानकारी मिली थी कि भाजपा का कार्यकर्ता बेहद नाराज है, उसकी पूछ परख नहीं हो रही है। इसके बाद असंतुष्टों को मनाने का जिम्मा सौंपा गया है।
बीजेपी में परिवार भाव करता है काम
बीजेपी में असंतुष्ट नेताओं को मनाने के लिए मिली वरिष्ठ नेताओं की जिम्मेदारी पर बीजेपी विधायक रामेश्वर शर्मा का कहना है कि बीजेपी में संतुष्ट -असंतुष्ट कुछ नहीं होता, हमारे यहां परिवार भाव है सब परिवार की तरह रहते हैं। हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय संगठन से जुड़े पदाधिकारी भी बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं से संवाद करते हैं। कांग्रेस में आपने कभी नहीं सुना होगा कि कोई बड़े पदाधिकारी बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं से बात कर रहे हैं। यही कारण है कि तमाम बड़े नेताओं को अलग-अलग क्षेत्रों की जिम्मेदारी दी गई है।
अपनों से खतरा अधिक
इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं , जिसकी तैयारियों में पार्टींया लगी हुई हैं। इस बीच राज्य में राजनीतिक दलों को विपक्षी दलों की अपेक्षा अपनों से ही खतरा अधिक बना हुआ है। इसकी वजह से ही प्रदेश की दोनों प्रमुख पार्टियां बीजेपी-कांग्रेस अपनों को मनाने की कवायद में लग गई हैं। इसकी वजह है चुनाव के समय कहीं कोई बड़ी बगाबत न हो जाए या फिर अंदर ही अंदर खेल न कर दिया जाए। बता दें कि चुनावी साल में एक इंटरनल सर्वे ने बीजेपी और कांग्रेस पार्टी को चिंतित कर दिया है। दरअसल, इस सर्वे में बीजेपी और कांग्रेस पार्टी से टिकट के लिए कतार में खड़े नेताओं को टिकट नहीं मिलने पर उनके बागी होने की संभावना जताई गई है। कांग्रेस इस संभावित बगावत को देखते हुए ज्यादा चिंतित हो गई है, इसलिए कमलनाथ ने पीसीसी दफ्तर से जिला अध्यक्षों को इंटरनल पार्टी से जुड़ी हर बैठक में नाराज नेताओं को बुलाने के साफ निर्देश दिए हैं, तो वहीं सत्ताधारी बीजेपी 2018 की तरह भंवर में फंसने का डर लग रहा है। मालवा-निमाड़ को सत्ता का रास्ता माना जाता है, इसकी वजह से ही वहां पर सामंजस्य बिठाने का दौर शुरू हो गया है। 2018 में बीजेपी को सबसे ज्यादा अपनों की ही बगाबत से ही नुकसान हुआ था। कई सीनियर चेहरे चुनाव में या तो निर्दलीय खड़े हो गए थे या फिर बीजेपी को छोडक़र कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में उतर गए थे।
किसे कौन से जिले का जिम्मा
पार्टी द्वारा जिन नेताओं को नाराज कार्यकर्ताओं को मनाने का जिम्मा सौंपा हैं, उनमें नरेंद्र सिंह तोमर को इंदौर, भोपाल, सीहोर , राकेश सिंह को नर्मदापुरम, बैतूल, मंडला, प्रभात झा को खरगोन, बुरहानपुर, गोपाल भार्गव को छिंदवाड़ा, बालाघाट, सिवनी, कैलाश विजयवर्गीय को जबलपुर, धार, रीवा, सतना, जयभान सिंह पवैया को उज्जैन, शाजापुर, देवास , माखन सिंह को गुना, शिवपुरी, श्योपुर ,कृष्ण मुरारी मोघे को विदिशा, रायसेन, सागर, सत्यनारायण जटिया को रतलाम, मंदसौर, नीमच, फग्गन सिंह कुलस्ते को झाबुआ, अलीराजपुर, माया सिंह को राजगढ़, नरसिंहपुर, दतिया, लाल सिंह आर्य को टीकमगढ़, कटनी, पन्ना, छतरपुर, सुधीर गुप्ता को ग्वालियर, भिंड, मुरैना और राजेन्द्र शुक्ल को सीधी, सिंगरौली, अनूपपुर, उमरिया, शहडोल शामिल