इस बार सपा व बसपा अभी से चुनावी तैयारियों में जुट गई हैं…
मनीषद्विवेदी।मंगल भारत । प्रदेश के सर्वाधिक पिछड़े इलाकों में शुमार बुंदेलखंड अंचल में इस बार सपा व बसपा अभी से चुनावी तैयारियों में जुट गई है। यह वो इलाका है जो पड़ोसी राज्य उप्र से सटा हुआ है, जिसकी वजह से इस अंचल में उप्र की दोनों पार्टियों सपा व बसपा का भी व्यापक प्रभाव रहता है।
इस अंचल में इस बार सपा व बसपा पहले की अपेक्षा अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। यह बात अलग है कि उसके प्रत्याशी जीते भले नहीं, लेकिन वे भाजपा के लिए मुश्किलें जरुर बनेंगे। प्रदेश में भाजपा की लगातार सरकार रहने के बाद भी इस अंचल का वैसा विकास नहीं हो पाया है, जैसा की होना चाहिए था। यही नहीं केन्द्र से मिले विशेष पैकेज का लाभ भी जनता को नही मिला है, बल्कि अफसरों की जरूर उससे पौ बारह हुई है। यही वजह है कि इस इलाके में आज भी बेरोजगारी, कुपोषण, अशिक्षा, पलायन जैसी समस्याएं विकराल रुप में खड़ी हुई हैं।
यह बात अलग है कि हर चुनाव में राजनैतिक दलों द्वारा इन मामलों को जोर-शोर से उठाया जाता है, लेकिन मतदान आते -आते यह मुद्दे पीछे छूट जाते हैं और चुनाव जाति आधारित बन जाता है। यही वजह है कि इस बार एंटी इन्कं वेंसी और जातिगत समीकरण भाजपा के खिलाफ माने जा रहे हैं। इस अंचल की तासीर ऐसी है कि जातियों में बंटे वोटर अपने-अपने जाति-समाज के कैंडिडेट के साथ खड़े हो जाते हैं। अगर पुराने चुनाव परिणामों पर नजर डालें तो इस अंचल में सपा व बसपा का खाता खुल चुका है। अगर बीते आम चुनाव की बात करें तो इस अंचल के तहत आने वाली 26 विधानसभा सीटों में से भाजपा ने 17, कांग्रेस ने 7 सपा और बसपा ने एक-एक सीट जीती थी। अगर इस अंचल के जातीय समीकरण को देख जाए तो एससी/एसटी वोटर्स सबसे ज्यादा करीब 32 फीसदी हैं। यहां 18 फीसदी सवर्ण, 26 फीसदी ओबीसी और 24 फीसदी अन्य मतदाता हैं। इनमें मुस्लिम और जैन शामिल हैं।यहां जातिगत समीकरण के आधार पर बसपा तीसरे नंबर की पार्टी है।
कांग्रेस और भाजपा की तैयारी
कांग्रेस का सीएम चेहरा कमलनाथ और संगठन का काम देख रहे दिग्विजय सिंह बुंदेलखंड के पिछड़ेपन को ही मुद्दा बनाकर अपने चुनाव अभियान की रणनीति तैयार कर रहे हैं वहीं, भाजपा अपनी विकास योजनाओं के नाम पर वोट मांगने की तैयारी में है। बुंदेलखंड पैकेज, बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे और 45 हजार करोड़ रुपए की केन-बेतवा लिंक परियोजना को मंजूरी देकर मोदी सरकार ने भी बुंदेलखंड में पार्टी की मजबूती के लिए बड़ा दांव खेला है। यह बात अलग है कि इन योजनाओं का लाभ अब तक आमजन को नहीं मिला है, जिसकी वजह से इन योजनाओं का फायदा भाजपा को मिलना मुश्किल माना जा रहा है।
चुनावी मोड में भाजपा
भाजपा के बारे में कहा जाता है कि वह 365 दिन चुनावी मोड में रहती है,लेकिन इस बार कांग्रेस ने भी बुंदेलखंड में चुनाव से काफी वक्त पहले ही अपना एग्रेसिव प्रचार अभियान शुरू कर दिया है , तो वहीं पूर्व मंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह भी लगातार बुंदेलखंड के दौरे कर रहे हैं। इस दौरान वे भाजपा के स्थानीय मंत्रियों और सरकार पर भ्रष्टाचार के सीधे-सीधे आरोप भी लगा कर उन्हें घेरने का काम कर रहे हैं। बुंदेलखंड में जीत के लिए कांग्रेस ने एक ब्लू प्रिंट भी तैयार किया है। किस सीट पर कितनी ताकत लगानी है? किन मुद्दों को उछालना है? कहां भाजपा कमजोर है? इसकी व्यापक रिपोर्ट तैयार की गई है। इसके अलावा कहा तो यह भी जा रहा है कि समाजवादी पार्टी और बीएसपी के साथ गठबंधन की बातचीत भी अंदरूनी तौर पर की जा रही है। अगर यह गठबंधन हो गया तो बुंदेलखंड अंचल ही नहीं अन्य अंचलों में भाजपा को बड़ा नुकसान हो सकता है।
बसपा व सपा कई सीटों पर दिखा चुकी है ताकत
विधानसभा चुनाव 2013 की बात करें तो बुंदेलखंड के अंतर्गत आने वाली 30 सीटों में से 2 पर बीएसपी दूसरे स्थान पर और 15 पर तीसरे नंबर पर रही थी। इतना ही नहीं, इस चुनाव में बीएसपी करीब 23 फीसदी तक वोट हासिल करने में सफल रही थी। बुंदेलखंड में मप्र के पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थित सात जिले शामिल हैं। इनमें छतरपुर, सागर, पन्ना, टीकमगढ़, निवाड़ी दमोह और दतिया शामिल हैं। छह जिलों में कुल 30 विधानसभाएं हैं। सर्वाधिक छह विधानसभा क्षेत्र छतरपुर जिले में है, जबकि सबसे कम 2 विधानसभा क्षेत्र निवाड़ी जिले में हैं। 2018 में कांग्रेस ने यहां 26 में से 10 सीटें हासिल की थीं और कमल नाथ सरकार ने इसके बदले बुंदेलखंड के दो मंत्री बनाए थे, जबकि अब भाजपा में चार मंत्री हैं।