प्रदेश में अब तेज होगा नेताओं के दलबदल का दौर…

मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने में


अभी चार माह का समय शेष है, इसके बाद भी बीते कुछ दिनों से प्रदेश में नेताओं में दल बदलने का दौर शुरु हो चुका है। जैसे-जैसे चुनावी समय पास आता जाएगा प्रदेश में नेताओं के दलबदल करने का दौर तेज होना तय है। दरअसल प्रदेश में इस तरह की सियासत पुरानी है। अपनी पार्टी से नाराज नेता-कार्यकर्ता अब दूसरी पार्टियों में जाकर अपना भविष्य तलाशने लगे हैं। इस मामले में अब तक कांग्रेस भाजपा पर भारी पड़ रही है। इसकी वजह है बीते दो माह में कई भाजपा के अपने -अपने इलाकों में प्रभावशाली माने जाने वाले बड़े नेता दलबदल कर कांग्रेस के साथ जा चुके हैं। वहीं माना जा रहा है कि कांग्रेस आने वाले दिनों में सत्ताधारी भाजपा में सेंध लगाकर कई और बड़े चेहरों को पार्टी की सदस्यता दिला सकती है।
इनमें भाजपा के कई पूर्व विधायक, पूर्व मंत्री हो सकते हैं। वहीं इस मामले में अब भाजपा भी पीछे नहीं रहना चाहती है। भाजपा भी पलटवार करने की रणनीति बना रही है। इस मामले में कांग्रेस ने अभी से सर्तकता बरतना शुरु कर दिया है। उसके द्वारा अपने नेताओं को अलर्ट मोड पर रख दिया है। जो लगातार अपनी ही पार्टी के नेताओं से सतत संपर्क रखे हुए हैं। इसके अलावा कई क्षेत्रीय दलों के साथ ही आप पार्टी की भी नजर कांग्रेस व भाजपा के नेताओं पर लगी हुई है। दरअसल प्रदेश में हाल ही में जिस तरह से कुछ श्रीमंत समर्थक नेताओं द्वारा भाजपा छोडक़र कांग्रेस में शामिल होने का क्रम बना हुआ है, वह आने वाले समय में भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है। दरअसल जब चुनाव के पहले किसी भी दल का कोई नेता पार्टी छोड़ता है तो उस दल को लेकर लोगों में नकारात्मक माहौल बनता है। प्रदेश के राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आएंगे , वैसे-वैसे नेताओं के दल बदलने का सिलसिला तेज होता जाएगा। फिलहाल भाजपा के सामने अपने नाराज और असंतुष्ट नेताओं से निपटने की बड़ी चुनौती बनी हुई है।
अगर पार्टी इन्हें मनाने में सफल नहीं होती है, तो इसका असर चुनाव परिणाम पर भी पड़ सकता है। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि पहली बार भाजपा के सामने कांग्रेस के अलावा अपने ही असंतुष्ट नेता चुनौती बने हुए हैं। पिछले कई सालों से भाजपा शिवराज सिंह चौहान के चेहरे पर चुनाव लड़ती रही है। वही मुख्यमंत्री बनते आए हैं। अब उन्हें सत्ता विरोधी लहर का सामना भी करना पड़ेगा। पिछले विधानसभा के चुनावों में जनादेश उनके साथ नहीं था। पिछली बार मध्यप्रदेश की जनता ने कांग्रेस को सत्ता सौंपी थी। अब फिर चुनाव आ गए हैं। इसलिए दोनों दलों के बीच छीना झपटी का माहौल शुरू हो गया है। कुछ नेता भाजपा छोड़ कर जा रहे हैं, कुछ जाने वाले हैं। यूं समझिए जैसे प्रवासी पक्षियों के साथ होता है जो एक खास मौसम में प्रवास पर निकल जाते हैं। वैसे ही चुनाव में भी प्रवासी नेताओं का दौर शुरू हो चुका है।
यह नेता कर चुके है दलबदल
अगर बीते दो माह में हुए दलबदल पर नजर डालें तो इनमें मई में दीपक जोशी के कांग्रेस में शामिल होने के बाद प्रजातांत्रिक समाधान पार्टी का कांग्रेस में विलय हुआ। प्रसपा के अध्यक्ष कमल सिंह चौहान अपने 1500 समर्थकों के साथ कांग्रेस में शामिल हुए थे। इसके अलावा कांग्रेस के दो प्रदेश प्रवक्ता भी भाजपा में शामिल हो चुके हैं। इनमें नरेन्द्र सलूजा और शिवम शुक्ला के नाम शामिल हैं। इसी तरह से सेवड़ा के पूर्व विधायक राधेलाल बघेल, मई में ही बालाघाट से भाजपा की पूर्व विधायक अनुभा मुंजारे, उनके पुत्र शांतनु मुंजारे, हरदा में युवा नेता दीपक सारण, सागर से भाजपा विधायक प्रदीप लारिया के भाई हेमंत लारिया भी कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं जबकि सतना से पूर्व मंत्री सईद अहमद, श्रीमंत समर्थक राकेश गुप्ता भाजपा छोड़ फिर कांग्रेसी हो गए। इससे पहले सिंधिया के एक और करीबी बैजनाथ यादव भी कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। हाल ही में कटनी जिले के भाजपा से विधायक रहे ध्रुव प्रताप सिंह और कद्दावर नेता शंकर महतो भी कांग्रेस ज्वाइन कर ली है।
इस तरह के हैं हालात
भोपाल से आने वाले दो कद्दावर नेता जो शिवराज सरकार में राजस्व, विज्ञान-प्रौद्योगिकी और वन-योजना अर्थशास्त्र एवं सांख्यिकी जैसे मंत्रालयों का जिम्मा संभाल चुके हैं। वे भी पार्टी से असंतुष्ट नजर आ रहे हैं। इनमें से एक नेता का अपनी समाज में मजबूत पकड़ मानी जाती है। शिवराज सरकार में विधानसभा अध्यक्ष रहे एक वरिष्ठ नेता और चौहान के बेहद करीबियों में गिने जाने वाले पांच बार के विधायक और एक बार के सांसद भी पार्टी से नाराज चल रहे हैं। प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष रहे एक कद्दावर नेता भी इन दिनों पार्टी में पूछ न होने से असंतुष्ट हैं। एक बड़े कांग्रेस नेता को हराकर संसद पहुंचने वाले एक सांसद भी इन दिनों पार्टी के नेताओं से नाराज हैं। सांसद कई बार अपना दर्द दिल्ली दरबार तक पहुंचा चुके हैं। उनकी समाज में तो मजबूत पकड़ मानी जाती है। बताया जा रहा है कि वे कांग्रेस से भी सम्पर्क में बने हुए हैं। उधर, इंदौर से ताल्लुक रखने एक ब्राह्मण नेता जो प्रदेश के सीएम से लेकर देश के गृह मंत्री अमित शाह के दरबार तक में पहुंच रखते हैं, वेभी इस बात को लेकर नाराज चल रहे हैं कि इन दिनों पार्टी में जानकार और निष्ठावान कार्यकर्ताओं की अनदेखी हो रही है। इसी तरह से पूर्व विधायक और केंद्र की अटल सरकार में मंत्री पद संभाल चुके एक नेता भी पार्टी से निराश हैं। कई बार वे सीएम और प्रदेश अध्यक्ष से मुलाकात कर अपना पक्ष रख चुके हैं। वे इस बार भी उनकी पत्नी टिकट की दावेदार है। सीधी जिले के कद्दावर ब्राह्मण नेता और चार बार से लगातार विधायक बनने के बाद भी मंत्री नहीं बनाए जाने से नाराज है।
भाजपा को लग चुका है झटका…
बीते दो माह में कांग्रेस ने भाजपा के कई नेताओं को पार्टी में शामिल कराया है। इनमें सर्वाधिक बड़ा चेहरा दीपक जोशी का है। वे स्वयं मंत्री रहे हैं , जबकि उनके पिता पूर्व मुख्यमंत्री रहने के साथ ही आठ बार विधायक रहे हैं। वे जनसंघ संस्थापकों में भी शामिल रहे हैं। जोशी को 2018 के विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस के मनोज चौधरी ने हराया था। बाद में चौधरी श्रीमंत के साथ भाजपा में शामिल हो गए थे। इसकी वजह से उनके टिकट पर संकट खड़ा हो गया था और उन्हें संगठन में भी महत्व मिलना बंद हो गया था। इसी तरह से दतिया के पूर्व विधायक राधेलाल बघेल भी कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं।
यह नेता भी चल रहे अंसतुष्ट
दरअसल प्रदेश में अभी भाजपा की 127 सीटों में से 18 ऐसी हैं जिन पर कांग्रेस से इस्तीफा देकर आए विधायक काबिज हैं। नौ सीटें वे हैं, जिन पर कांग्रेस से आए नेता उपचुनाव हारने के बाद फिर टिकट की प्रबल दावेदारी कर रहे हैं। इन सभी सीटों पर भाजपा के सामने आंतरिक असंतोष को साधना एक बड़ी चुनौती बन गई है। इन सीटों पर चुनाव में एक बार फिर श्रीमंत समर्थकों को टिकट मिला , तो पुराने नेताओं का राजनीतिक भविष्य चौपट हो जाएगा। इसलिए आने वाले दिन भाजपा के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं। क्योंकि कई ऐसे नेताओं के नाम सामने आने लगे हैं, जो कांग्रेस के संपर्क में लगातार बने हुए हैं। पार्टी से नाराज चलने वाले नेताओं में सत्यनारायण सत्तन , पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा, अपेक्स बैंक के पूर्व अध्यक्ष भंवर सिंह शेखावत जैसे नाम शामिल हैं। हालांकि सत्तन सीएम से मिलने के बाद से चुप्पी साधे हुए हैं। समय रहते भाजपा ने अगर इन्हें शांत नहीं कराया तो चुनाव में वे परेशानी खड़ा कर सकते हैं।