‘मप्र के मॉडल’ से होगी सात करोड़ आदिवासियों की स्क्रीनिंग

सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन अभियान का मामला…

प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य इलाके के शहडोल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपने दौरे के दौरान प्रदेश का सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन अभियान इस तरह से पंसद आया कि उनके द्वारा यह घोषणा कर दी गई है, कि अब मप्र के इस अभियान को देशभर में लागू किया जाएगा। इससे प्रदेश के उन सात करोड़ आदिवासी भाई बहनों को फायदा होगा, जिनमें इस तरह की बीमारी की संभावना बनी रहती है। दरअसल प्रदेश में आदिवासी बहुल दो जिले झाबुआ और आलीराजपुर में नवंबर 2021 में प्रयोग के तौर पर शुरू हुआ सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन अभियान शुरु किया गया था। इसके सुखद परिणाम आ रहे हैं। यही वजह है कि प्रधानमंत्री ने इस अभियान को पूरे देश में लागू करने का तय किया है। सरकार का लक्ष्य है कि वर्ष 2047 तक इस बीमारी को देश में समाप्त कर दिया जाए। इसके तहत 17 राज्यों के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में सात करोड़ लोगों का रक्त परीक्षण (स्क्र्रीनिंग ) किया जाएगा। इसमें 40 वर्ष तक के लोगों को शामिल किया जाएगा। दरअसल मध्य प्रदेश में इस अभियान के तहत 15 लाख लोगों की जांच की जा चुकी है। इस जांच में छह हजार मरीज और 32 हजार वाहकों की पहचान की गई है। अगर इसके आंकड़ों को देखें, तो मरीजों का प्रतिशत 24 और वाहकों का प्रतिशत दो होता है। अनुमान लगाया जा रहा है कि पूरे देश में लगभग यही आंकड़ा सामने आ सकता है। वाहक को शारीरिक रूप से कोई समस्या नहीं रहती है , लेकिन उससे संतान को बीमारी हो सकती है।
इस तरह होगा उन्मूलन
देशभर में 17 राज्यों में जन्म से 40 वर्ष तक के लोगों के रक्त परीक्षण में जो पॉजिटिव आएंगे, उनमें रक्त की कमी दूर करने और इसके कारण उन्हें होने वाले दूसरे रोगों के उपचार की व्यवस्था की जाएगी। इससे अविवाहित लोगों को रोग के वाहक की जानकारी भी मिल पाएगी, जिससे वे आपस में विवाह करने से बच पाएंगे और इससे संतान के पॉजिटिव होने का खतरा 25 प्रतिशत तक ही रहेगा। बता दें कि पॉजिटिव रोगियों में इस बीमारी के लिए जिम्मेदार दो जीन में दोनों प्रभावित होते हैं, जबकि वाहक में एक ही प्रभावित होता है। दो पॉजिटिव आपस में विवाह करते हैं तो बच्चे भी पॉजिटिव होंगे। माता-पिता में एक पॉजिटिव और एक वाहक है, तो बच्चे के पॉजिटिव या वाहक होने का खतरा रहेगा। वहीं जांच कराने वालों को जेनेटिक कार्ड दिए जाएंगे। शादी के पहले जोड़ों का कार्ड एक-दूसरे के ऊपर रखने पर कार्ड में बने छिद्र के मिलान से जानकारी मिल जाएगी कि शादी करने से संतान पर क्या असर आएगा।
यह है बीमारी
यह बीमार अधिकतर आदिवासियों में ही पाई जाती है। इसमें खून बनाने वाली लाल रक्त कोशिकाओं (आरबीसी) का आकार जन्म से हंसिया की तरह हो जाता है। इस कारण रोगी के शरीर में हमेशा रक्त की कमी बनी रहती है। आरबीसी का आकार असामान्य होने से वह नस में फंस जाती है, जिससे रोगी के शरीर में बहुत दर्द होता है। बार-बार रक्त चढ़ाने से तिल्ली बढऩे समेत अन्य महत्वपूर्ण अंग प्रभावित होते हैं। सिकल सेल एनीमिया के साथ पैदा हुए शिशुओं में कई महीनों तक लक्षण नहीं हो सकते हैं। इसके लक्षणों में एनीमिया से अत्यधिक थकान या उधम मचाना, हाथ और पैर में दर्द और पीलिया शामिल हैं। शिशुओं में तिल्ली की क्षति का भी खतरा रहता है। इससे उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली प्रभावित होती है , जिससे जीवाणु संक्रमण को जोखिम बढ़ता है। जैसे-जैसे सिकल सेल एनीमिया वाले लोग बड़े होते जाते हैं, वे विभिन्न और अधिक गंभीर चिकित्सा समस्याओं का विकास कर सकते हैं जो अंग के ऊतकों को पर्याप्त ऑक्सीजन प्राप्त नहीं होने पर होती हैं। सिकल सेल एनीमिया वाले लोगों में स्ट्रोक, फेफड़े, किडनी, प्लीहा और लीवर की क्षति का खतरा बढ़ जाता है।
सिकल सेल एनीमिया के क्या कारण हैं
सिकल सेल एनीमिया वाले लोगों को यह बीमारी उनके जैविक माता-पिता से विरासत में मिलती है। सिकल सेल एनीमिया में, जीन जो सामान्य लाल रक्त कोशिकाओं को बदलने या बदलने में मदद करता है। जिन लोगों को जैविक माता-पिता दोनों से उत्परिवर्तित हीमोग्लोबिन प्रोटीन जीन विरासत में मिलता है, उन्हें सिकल सेल एनीमिया होता है। जो लोग एक जैविक माता-पिता से उत्परिवर्तित जीन प्राप्त करते हैं, उनमें सिकल सेल की विशेषता होती है।