मोदी के दूत प्रदेश में कर रहे हैं सर्वे…

तैयार हो रही… ‘माननीयों’ की कुंडली.

भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले मंत्र के बाद अल्पकालीन विस्तारकों ने मैदानी मोर्चा संभाल लिया है। भाजपा सूत्रों के अनुसार ये अल्पकालीन विस्तारक विधानसभा और लोकसभा दोनों चुनाव के लिए एक साथ काम कर रहे हैं। मप्र में सक्रिय हुए अल्पकालीन विस्तारक प्रदेश की हर विधानसभा और लोकसभा सीट पर सर्वे कर रहे हैं। इस दौरान माननीयों (विधायकों और सांसदो )के कामकाज व सक्रियता का सर्वे किया जा रहा है। इस सर्वे के आधार पर माननीयों की कुंडली तैयार की जाएगी। मप्र में माननीयों की कुंडली दूसरे राज्यों के अल्पकालीन विस्तारक तैयार कर रहे हैं। गौरतलब है कि 27 जून को भोपाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अल्पकालीन विस्तारकों को जरूरी टिप्स देकर मप्र सहित चुनाव वाले पांचों राज्यों के लिए रवाना किया था। भोपाल में बिहार के कार्यकर्ताओं की ड्यूटी लगाई गई है। प्रदेश के अन्य सभी छोटे-बड़े गांव व शहरों में दूसरे राज्यों से आए ये अल्प कालीन विस्तारक घर-घर जाकर दस्तक दे रहे हैं। मोदी के ये विस्तारक दिन भर मंडल और बूथों पर घूम-घूम कर सांसद-विधायकों की सक्रियता का ब्यौरा भी रहे हैं। ये कार्यकर्ता केंद्र की योजनाओं के हितग्राहियों से पूछ रहे हैं कि उन्हें अब तक केंद्र-राज्य की कौन-कौन सी योजनाओं का लाभ मिला। योजनाओं का क्रियान्वयन कैसा है? स्थानीय बाशिंदों से क्षेत्रीय विधायक- सांसद का नाम भी पूछा जा रहा है। पार्टी सूत्रों की मानें तो कुछ सांसदों ने खुद ये इच्छा जाहिर की है। पार्टी अभी हार-जीत की संभावनाएं खोज रही है। पार्टी अंदरूनी तौर पर सांसदों की छवि और उनके प्रभाव वाले इलाकों में पकड़ को लेकर भी रिपोर्ट तैयार करा रही है। दरअसल, भाजपा का पूरा फोकस विधानसभा चुनाव में अधिक से अधिक सीटें जीतकर सत्ता हासिल करने पर है। निकाय पंचायत चुनाव के दौरान भाजपा को कई जिलों से मैदानी स्थिति की रिपोर्ट मिल चुकी है। वहीं कई विधायकों की स्थिति संतोषजनक नहीं है।
ले रहे हैं फीडबैक
गौरतलब है कि प्रदेश में भाजपा नेताओं की सक्रियता पर लगातार सवाल उठ रहे थे। इसलिए प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों पर भाजपा हाईकमान ने इस बार मैदानी फीडबैक हासिल करने दूसरे राज्यों के कार्यकर्ताओं को तैनात किया है। ये कार्यकर्ता सांसद-विधायकों के कामकाज और फील्ड में उनकी सक्रियता का फीडबैक भी ले रहे हैं। संगठन एप पर यह फीडबैक भी दर्ज किया जा रहा है, कि जनप्रतिनिधि क्षेत्र में पिछली बार कब आए थे। पार्टी के बूथ स्तरीय कार्यकर्ताओं का जुटा कहना है कि दूसरे राज्य से आए के विस्तारक दिन भर क्षेत्र में घूमते हैं और शाम को अपनी दिन भर की सक्रियता का ब्यौरा और वीडियो आदि एप पर अपलोड कर अगले दिन की तैयारी में जुट जाते हैं। बूथ और मंडल स्तर पर ये कार्यकर्ता योजनाओं के हितग्राहियों से चर्चा करने के साथ ही क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों का ब्यौरा भी जुटा रहे हैं। भोपाल शहर के क्षेत्रवासियों ने भाजपा के तीनों विधायकों की सक्रियता और जनता से लगातार संपर्क का फीडबैक दिया, लेकिन भोपाल उत्तर, मध्य और दक्षिण पश्चिम क्षेत्र में स्थिति आज भी पूर्ववत बताई गई है। सांसद की सक्रियता पर लोगों ने सवाल खड़े किए। हर बूथ पर ये कार्यकर्ता 50- 60 लोगों से संपर्क कर संगठन के एप में उनका फीडबैक दर्ज कर रहे हैं। पार्टी कार्यकर्ता, क्षेत्रीय नागरिकों और लाभार्थियों से योजनाओं का ब्यौरा ले रहे हैं। जानकारी के अनुसार भोपाल जिले के सभी आधा दर्जन विधानसभा क्षेत्रों में पिछले तीन दिन से घूम रहे इन कार्यकर्ताओं ने स्थानीय भाजपा इकाई से कार्यक्रम और योजना संबंधी जो ब्यौरा हासिल किया गया उसका फील्ड में सत्यापन भी किया जा रहा है। बूथ समितियों से विस्तारकों को जानकारियां उपलब्ध कराई गई हैं। सोशल मीडिया पर प्रसारित पार्टी से जुड़ी प्रचार सामग्री और बूथ पर चलाए गए सेवा कार्यों का डिटेल भी जुटाया जा रहा है।
जिताऊ को ही टिकट
मप्र में जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आता जा रहा है, वैसे-वैसे राजनीतिक पार्टियों की तैयारी परवान चढ़ती जा रही है। खासकर भाजपा और कांग्रेस सरकार बनाने के लिए चुनावी तैयारी कर रहे हैं। इसी कड़ी में भाजपा का लक्ष्य है कि गुजरात की तरह ही मप्र में भी रिकॉड जीत दर्ज की जाए। इसके लिए पार्टी की रणनीति है कि इस बार के चुनाव में केवल जिताऊ उम्मीदवारों को ही टिकट दिया जाए। इसके लिए पार्टी सांसदों पर भी दांव लगा सकती है। इसलिए सांसदों और विधायकों के कामकाज व सक्रियता का सर्वे एक साथ कराया जा रहा है। पार्टी सूत्रों के अनुसार क्षेत्रीय, जातिय समीकरणों को देखते हुए भाजपा आगामी चुनाव में सांसदों को विधानसभा का टिकट देने की रणनीति पर काम कर रही है। गौरतलब है की मप्र भाजपा के कई सांसद भी विधानसभा चुनाव लडऩे की मंशा जाहिर कर चुके हैं।
2018 के चुनाव से सबक लेते हुए भाजपा इस बार केवल उन्हीं चेहरों पर दांव लगाएगी जो जिताऊ हैं। वहीं पार्टी अपने कुछ सांसदों को भी उतार सकती है। भाजपा इस बात का पता लगा रही है कि सांसदों को उतारने से जातिगत और क्षेत्रीय संतुलन से जुड़े क्या फायदे हो सकते हैं। भाजपा इस कवायद के जरिए मुख्यतौर पर जातीय संतुलन और जीत की संभावना को बढ़ाने की कोशिश ही कर रही है।
लोकप्रियता का सर्वे करा रही पार्टी
विधायकों के साथ ही मप्र की सभी 29 लोकसभा सीटें के लिए भाजपा एक साथ कई मोर्चों पर तेजी से काम करने में जुट गई है। पार्टी का फोकस 2019 में हारी हुई एक मात्र छिंदवाड़ा लोकसभा सीटों के साथ-साथ उन सीटों पर भी है, जहां से भाजपा सांसद लगातार जीत रहे हैं। खासतौर से उन सीटों पर जहां से एक ही नेता ने लोकसभा का पिछला दोनों चुनाव जीता हो। लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पार्टी के सबसे लोकप्रिय चेहरे हैं, लेकिन स्थानीय स्तर पर सांसदों की लोकप्रियता और जनता से उनका जुड़ाव भी जीत हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भाजपा इससे पहले भी कई बार विभिन्न राज्यों में नेताओं के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी की धार को कुंद करने के लिए बड़े पैमाने पर अपने चुने हुए नेताओं का टिकट काट चुकी है और भाजपा को इसका लाभ भी हासिल हुआ है। इसलिए भाजपा के टिकट पर एक ही सीट से लगातार चुनाव जीतने वाले सांसद, खासतौर से ऐसे सांसद जो 2014 और 2019 का चुनाव एक ही क्षेत्र से जीते हैं, उन्हें 2024 में भी अपनी सीट को बरकरार रखने के लिए अपनी लोकप्रियता साबित करनी होगी।